रीवा/सतना :आंखों से देखा पुलवामा कांड, विस्फोट से सब बिखरा, ऐसे मोर्चा संभाला विन्ध्य के लाल ने, ऐसे बचाई इनकी जान, पढिये रुला देने वालो दांस्ता
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रीवा/सतना. जिस पुलवामा कांड ने देश को झकझोर कर रख दिया है, सैनिकों की शहादत से देश रो रहा है, उसी पुलवामा से सतना के लिए राहत की खबर आई है। अपने बेटे के सुरक्षित होने की सूचना मिलने के बाद परिवार सहित पूरे क्षेत्र ने राहत की सांस ली है। दरअसल, उचेहरा के गोबरांव कला निवासी नत्थू लाल चौधरी सीआरपीएफ की ४३वीं बटालियन में लांसनायक के रूप में पदस्थ हैं। वे भी सीआरपीएफ बटालियन के साथ सफर कर रहे थे। हमले के दौरान उनकी बस भी विस्फोट के दायरे में आ गई थी पर अन्य जवानों की अपेक्षा उनका भाग्य अच्छा रहा कि हमले के दायरे में आने के बाद भी बाल-बाल बच गए। हालांकि, वे घायल हैं और आर्मी के मेडिकल कैंप में उनका इलाज जारी है।
पूरा परिवार चिंता में था कोठी निवासी उनके रिश्तेदार दिनकर ने बताया कि पुलवामा में आतंकवादी हमले की सूचना आने के बाद पूरा परिवार चिंता में था। सभी लगातार सीआरपीएफ हेड क्वार्टर सहित अन्य नंबर पर फोन करते हुए जानकारी लेने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन, स्थिति स्पष्ट नहीं हुई। शनिवार को नत्थूलाल ने अपने परिवार को संपर्क किया। साथ ही व्हाटसऐप के माध्यम से अपनी फोटो भेजी। इस तरह उन्होंने खुद के सुरक्षित होने की जानकारी दी। तब परिवार के सदस्यों ने राहत की सांस ली। लांसनायक नत्थूराम परिवार से बात करते हुए भी अपने शहीद साथियों को याद करते रहे। उन्होंने कहा कि वे खुद नहीं जानते कि कितने साथी शहीद हुए हैं। वे उनके परिवार को लेकर भी चिंता जाहिर करते रहे। परिवार की मानें तो नत्थू लाल को नाक, माथे और शरीर के अन्य हिस्सों में चोट आई है। नत्थूलाल के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा रवि चौधरी गांव में ही रहकर खेती करता है। जबकि छोटा बेटा मंजू चौधरी बेंगलुरु में इंजीनियर है। नत्थू लाल की बात उनके दोनों बेटों से हो चुकी है।
पांचवीं बस में था सवार लांस नायक नत्थूलाल चौधरी ने पहले बेटे से बात की, उसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों से बात की। उन्होंने परिजनों को बताया कि बटालियन के मूवमेंट के दौरान वे पांचवीं बस में सवार थे। तभी आगे वाली बस से कोई गाड़ी टकराई और विस्फोट हुआ। उसके बाद सबकुछ बिखर गया। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। जो भी जवान सुरक्षित थे, वे बसों से उतरकर पोजिशन लेना शुरू कर दिए। किसी ने यह भी नहीं देखा कि कौन घायल है? और कौन शहीद हो गया? ज्यादातर जवानों ने मोर्चा संभाल लिया। उसके बाद मदद पहुंची और घायल जवानों को मेडिकल कैंप में पहुंचाने का काम शुरू हुआ।