पैराशूट लैंडिंग पर कांग्रेस का 'पावर ब्रेक', संकट में कई बाहरी नेता

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Update: 2021-02-16 06:02 GMT

रीवा। पैराशूट लैंडिंग पर कांग्रेस आलाकमान राहुल गांधी की दो टूक बयानी ने पंजे की सियासत को फिर गरम कर दिया है। कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं के चेहरे पर न केवल चिंता की लकीरें बन गई हैं। बल्कि उनको अब अपना सियासी भविष्य भी खतरे में नजर आने लगा है।

माना जा रहा है कि विधानसभा में टिकट की मारामारी को लेकर चल रहे घमासान में उन नेताओं को अब मुंह की खानी पड़ेगी, जो दूसरे दलों से कूदकर कांग्रेस में आ गये हैं। विंध्य क्षेत्र में ऐसे नेताओं की संया कुछ ज्यादा ही नजर आ रही है जो भाजपा और बसपा छोड़कर आए हैं। पहले कांग्रेस पार्टी में पिछले कई सालों से ऐसी ही परंपरा थी कि पांच साल में संघर्ष कोई और करता रहा और चुनाव के समय साा की मलाई खाने कोई और आ गया।

ऐसे कई उदाहरण कांग्रेस पार्टी में संभाग में हैं, जो गुटबाजी को स्पष्ट रेखांकित करते हैं। इस बार भी टिकट वितरण में ऐसे ही आसार बन रहे थे लेकिन कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बार ऐसे टिकटों पर ब्रेक लगाने के दिशा-निर्देश दिए हैं। जिले में बीते सालों में राजनीति में कद्दावर नेता स्व. अर्जुन सिंह और स्व. श्रीनिवास तिवारी ही गुटबाजी के दो बड़े ध्रुव रहे। चुनाव के समय जब जिसे मौका मिलता था अपने समर्थकों या रिश्तेदारों को फिट कर देता था। शायद यही बड़ी वजह रही कि कांग्रेस विंध्य क्षेत्र में गर्त में चली गई।

ऐसे मामलों में एक उदाहरण रीवा जिले के सिरमौर का आता है, जहां के ग्राम जवा के पुराने कांग्रेसी ब्रजेन्द्र पांडेय का है जो लंबे समय से संघर्षरत रहे और क्षेत्र में स्वाभाविक नेता के रूप में जाने जाते हैं। उनकी जगह स्व. श्रीनिवास तिवारी के नाती विवेक तिवारी बबला को दे दिया गया। जबकि सिरमौर से श्रीनिवास तिवारी स्वयं चुनाव में विजय प्राप्त नहीं कर सके थे। अब तो ब्रजेन्द्र पांडेय का नाम दावेदारों की सूची में भी नहीं है।

इधर जिले की गुढ़ विधानसभा में भी संघर्षरत और क्षेत्र में लगातार सक्रिय पूर्व विधायक राजेन्द्र मिश्र का भी नाम आता है। पिछले कई पंचवर्षीय से सक्रिय होने के बावजूद टिकट कट जाता है। कभी यहां नागेन्द्र सिंह को मिला तो कभी साधना कुशवाहा को कभी बृजभूषण शुक्ला तो कभी डॉ. ओम प्रकाश मिश्र और पिछले चुनाव में गुटबाजी के चलते सुंदरलाल तिवारी को टिकट मिल गया। उनका संघर्ष और सक्रियता केवल दूसरे को जिताने का काम करती है।

सिंगरौली में पन्द्रह वर्षों से राजनीति में संघर्ष करने वाले जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष अरविंद सिंह चंदेल हैं, जिनकी मेहनत पांच साल तो पार्टी में रंग लाती है लेकिन चुनाव के वक्त उनकी मेहनत का फल कोई और ही खा जाता है। पूर्व के चुनाव में उनकी टिकट पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के दामाद राजा बाबा को मिल गया था। चर्चा है कि इस बार भी बसपा से रेनू शाह को टिकट के लिए ही लाया गया है, लेकिन पैराशूट लैंडिंग के चलते फिलहाल उनके टिकट पर अड़ंगा लगा है।

इसी तरह सतना जिले में मैहर सीट पर कांग्रेसी नेता श्रीकांत चतुर्वेदी का नाम आता है, जहां कई वर्षों से संघर्ष कर रहे थे टिकट की बारी आई तो कभी नारायण त्रिपाठी तो कभी मनीष पटेल को दे दिया। इसी तरह संघर्षरत नेताओं की उपेक्षा में सतना के दिलीप मिश्रा का भी नाम है जो एक दशक से कांग्रेस के लिए समर्पित हैं। उनकी जगह राजाराम त्रिपाठी को स्थापित कर दिया गया।

त्योंथर में अशोक मिश्रा कई सालों से संघर्षरत हैं, वहां उनकी टिकट काटकर रमाशंकर सिंह को पिछली बार दे दी गई थी। मनगवां में सक्रिय वृंदा प्रसाद की जगह गुटबाजी के चलते त्रिवेणी प्रसाद मैत्रेय को पिछली बार उतार दिया गया। इस बार भी कई सीटों पर ऐसा ही होने जा रहा है।

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