गजब है 'विंध्य की राजनीति', जिसने इसकी महागणित सुलझा लिया, वो....
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रीवा। मध्यप्रदेश समेत देश के 5 राज्यों में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव संपन्न होने हैं. जहाँ मध्यप्रदेश की बात करें तो यहाँ की राजनीति अनोखी रही है, वहीँ मध्यप्रदेश के विंध्य पर प्रदेश ही नहीं पूरे देश की निगाहें होती है. कहा जाता है मध्य प्रदेश में विंध्य का महागणित जिसने समझ लिया वो अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो जाता है. राजनीति के पंडित अक्सर कहते हैं कि विंध्य अंचल की 30 में से आधे पर जो कब्ज़ा करेगा वही मध्य के महासंग्राम का विजेता होगा.
खास बात ये है कि इस बार परेशानियों में सिर्फ कांग्रेस नहीं बल्कि सत्ताधारी बीजेपी भी है. एक ही परिवार के एक से ज़्यादा नेता टिकट के चक्कर एक दूसरे से भिड़ते नज़र आ रहे हैं. यानि रिश्ता जाए लेकिन टिकट न जाए.
ये विंध्य की तासीर है कि रग-रग में राजनीति बसती है. ऐसी ज़मीन जहां एक परिवार में ही कई नेता बड़े बने. दाऊ यानि अर्जुन सिंह और उनके बेटे अजय सिंह समेत कई परिवार हैं जो पुश्तैनी तौर पर राजनीति से जुड़े रहे. हाल ये है कि अब बड़े परिवारों के नेता एक दूसरे के खिलाफ ही रणभेरी बजाने लगे हैं. विंध्य अंचल की कई सीटें ऐसी हैं जहां ये परेशानी बीजेपी और कांग्रेस दोनों के सामने खड़ी हैं. हैरानी इस बात से है कि इस चुनाव में ये परेशानी गुटबाज़ी के लिए बदनाम कांग्रेस में नहीं बल्कि बीजेपी में ज्यादा है.
सतना की रैगांव सीट से बीजेपी के 3 दावेदार हैं. पूर्व मंत्री जुगल किशोर बागरी, उनके बेटे पुष्पराज बाग़री और बड़ी बहू वंदना बागरी. इसी तरह सतना की अमरपाटन सीट से भी बीजेपी के 3 दावेदार हैं, पूर्व विधायक राम पटेल, उनके भाई शिव पटेल और राम पटेल की बहू विजय तारा पटेल.
विंध्य की बात हो और रीवा की सीटों का जिक्र न हो ऐसा तो हो नहीं सकता। अब बारी आती है रीवा के गुढ़ सीट की. इस सीट से कांग्रेस के वरिष्ट लीडर श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी जीतते थे. उनके बाद अब उनके बेटे सुंदरलाल तिवारी विधायक हैं. इस बार वो तो टिकट के दावेदार हैं ही. उनके साथ उनके भतीजे विवेक तिवारी भी दावा जता रहे हैं.
रीवा महाराजा भी पीछे नहीं तिवारी परिवार ने कई चुनावों में जीत हांसिल की. इस मामले में रीवा का राज परिवार भी पीछे नहीं है. रीवा के महाराजा भी विधायक और मंत्री रहने के बाद अब पुनः चुनावी मैदान में कूद रहें है. वो भी अर्से बाद अपनी पार्टी कांग्रेस में घरवापसी कर. हांलाकि अभी यह तय नहीं है की महाराजा पुष्पराज सिंह किस क्षेत्र से चुनाव में कूदेंगे, खुसखुसाहट यह भी है की महाराजा सेमरिया से कांग्रेस का परचम लहराने उतरेंगे। वहीँ उनके सुपुत्र दिव्यराज सिंह ने 2013 विस चुनाव में स्व. श्रीनिवास तिवारी के सुपौत्र विवेक तिवारी को सिरमौर विधानसभा क्षेत्र से शिकस्त दी थी.
परिवारवादी राजनीति में रीवा के लोकप्रिय नेता एवं शिवराज सरकार के मंत्री राजेंद्र शुक्ल भी पीछे नहीं है. श्री शुक्ल के बड़े भाई विनोद शुक्ल भी 2013 में चुनावी शंखनाद कर चुके हैं. उन्हें भी सत्ता चाहिए, बस किसी दल से दिल मिल जाए तो मोहब्बत निखार ला लेगी।
इधर जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्र अपनी पत्नी के साथ सत्ता पाना चाह रहें। पत्नी नीलम मिश्रा भाजपा से सेमरिया विधायक हैं, और श्री मिश्रा जिला पंचायत अध्यक्ष। श्री मिश्रा का राजनैतिक करियर भाजपा से ही शुरू हुआ, बाद में पार्टी के साथ मत एवं मन भेद दोनों हो गया. श्री मिश्रा ने कमल छोड़ पंजा से हाँथ मिला लिया और अब कथित मन-मत भेद के जिम्मेदार मंत्री राजेंद्र शुक्ल के खिलाफ चुनाव लड़ने रीवा विधानसभा से कूदने की चाह रख रहें। हांलाकि श्री मिश्रा की राहें आसान नहीं हैं, कुछ कांग्रेसी उन्हें स्वीकार नहीं रहें, इस वजह से टिकट पर भी बार-बार एक न एक अड़चन आती जा रही है.
बात सिंगरौली की करें तो यहाँ की चितरंगी सीट पर बीजेपी की मुसीबत-सी है. यहां से पूर्व मंत्री जगन्नाथ सिंह के बेटे डॉ रविन्द्र सिंह और जगन्नाथ सिंह की बहू राधा सिंह दोनों दावेदार हैं. उमरिया के बांधवगढ़ में बीजेपी की टेंशन ये है कि यहां सांसद और पूर्व विधायक ज्ञान सिंह और उनके बेटे शिवनारायण सिंह दोनों ताल ठोक रहे हैं.
बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों के लिए ही परिवारवाद परेशानी है. ये लोग इसलिए टिकट नहीं मांग रहे कि परिवार में विवाद है, बल्कि इसलिए टिकट चाहते हैं ताकि कुर्सी घर में बनी रहे. सत्ता किसी की भी हो, घर का सदस्य सत्ता में काबिज होना चाहिए। अगर ऐसा ही चाहिए तो इन परिवारवादी राजनेताओं को एक ही सीट से अपने परिवार के सदस्य के खिलाफ उतरना चाहिए।