REWA की अंजू ने प्रेग्नेंसी में की PSC की तैयारी, आंखों में आंसू ला देगी इनकी कहानी, ऐसे बनी जेल अधीक्षक.
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सतना। मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है..., खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं, धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं, हमें क्या रोकें ये जमाने वाले, हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं...। अक्सर घरेलू काम में व्यस्त रहने वाली महिलाएं चार-दीवारी से निकल जब खुद मकाम हासिल करती है तो जमाने वाले सफलता की कहानी बताने लगते हंै। आज मैं आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहा हूं, जो एक हाउस वाइफ से लेकर राज्य प्रशासनिक सेवा में चयनित हुई है।
हम बात कर रहे है मूलत: रीवा जिले के खटखरी ग्राम में पली बढ़ी अंजू मिश्रा की। जिन्होंने 1 फरवरी को एमपी पीएससी द्वारा घोषित रिजल्ट में जेल अधीक्षक का पद पाया है। आपने प्रेगनेंसी में ही एमपी पीएससी की पूरी तैयारी की और बच्चे को गोद में लेकर इंटरव्यू देने गई थी। डॉक्टर के मना करने के बाद भी नहीं मानी क्योंकि उनको जो सफलता हासिल करनी थी।
गांव में हुई शुरुआती शिक्षा मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग परीक्षा में जिला जेल अधीक्षक पद पर चयनित होने पर अंजू मिश्रा घर से तीन किमी. दूर खटखरी गांव से 8वीं, 10वीं, 12वीं की पढ़ाई शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल से की। स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद जबलपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की। फिर 2011 में अंजू की शादी अनुपम मिश्रा से हो गई। सतना पहुंचकर पति के साथ रहने लगीं। यहां पति के साथ हाउस वाइफ का पूरा रोल अदा किया। लेकिन अपनी तैयारी कभी नहीं बंद की। पति के आफिस चले जाने के बाद वह खुद एक कोचिंग सेंटर की मदद ली। महज 8 महीने की तैयारी के बाद उसी संस्थान में खुद पढ़ाने लगीं। यहां बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ खुद लगातार अध्ययन किया। एमपी पीएससी में चार बार असफला के बाद पांचवीं बार जेलर बनकर मेरे परिवार का सपना पूरा कर दिया।
सफलता पर क्या बोली अंजू मिश्रा वक्त और हालात कब बदल जाये ये कोई नहीं जानता. लेकिन बहुद हद तक हमारी जिंदगी की दशा और दिशा इस बात पर निर्भर करती है की हम बुरे हालात का सामना कैसे करते हैं। जब मैं एमपी पीएससी का फार्म सम्मिट की उसी समय प्रेगनेंसी आ गई। इधर परीक्षा की तिथि भी घोषित हो गई। अब बेबी के स्वास्थ्य के साथ-साथ परीक्षा की तैयारी करना किसी की चुनौती से कम नहीं था। क्योंकि 3 घंटे का पेपर देते समय पूरे पैर में सूजन आ गईं। फिर मैं जबलपुर की जगह इंदौर को सेंटर चुना। क्योंकि यहां हर कॉलेज-स्कूलों के आसपास हॉस्टल और होटल मिल जाते है। कारण सेंटर पहुंचने में ज्यादा परेशानी न हो। फिर इंटरव्यू के समय 1 माह का बेबी लेकर गई, कई प्रकार की परेशानियां हुई। लेकिन अंत तक हार नहीं मानी।