कटनी की जालपा मैया मंदिर का 250 साल पुराना इतिहास आप को जानना चाहिए
आज नवरात्री का तीसरा दिन है, माँ जालपा की कृपा आप सब पर बनी रहे
नवरात्री का अर्थ होता है नौ पावन दुर्लभ, दिव्य व शुभ रातें। नवरात्री का त्यौहार तब मनाया जाता है जब नौ शक्तियां यानि के नवनक्षत्र एक साथ हों। ये पर्व सनातन काल से हिन्दुस्तान में मनाया जाता रहा है आज नवरात्री का तीसरा पावन दिन है आज रीवा रियासत आपको मध्यप्रदेश के कटनी जिले में विराजी माँ जालपा के 250 साल पुराने इतिहास के बारे में बताएगा। ऐसा माना जाता है की जो भी माँ के दर्शन करता है उसकी हर बला टल जाती है। कटनी को बारडोली की धरा भी कहा जाता है इस शहर में विराजी माँ जालपा के दरबार में साल के 365 दिन भक्तों की कतार लगी रहती है. वहीं नवरात्री और रामनवमी में तो माँ केदरबार की अलग की चमक रहती है।
जब पंडा के स्वप्न में आईं थीं मइया
ऐसा कहा जाता है कि आज से करीब 250 साल पहले कटनी में कुछ नहीं था सिर्फ घना जंगल था। उस वक़्त कटनी में बांस के जंगलों की भरमार थी और उसी जंगल के बीच माँ जालपा की प्रतिमा विराजमान थी यहाँ एक पंडा माँ की सेवा करते हैं जिनका नाम लालजी पंडा है वो बताते हैं की उनके पूर्वजों को माँ ने स्वप्न दिया था और उसके बाद माँ खुद घनघोर जंगल से प्रगट हुई थीं. तभी से उसी जगह पर माँ के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है।
मंदिर में भगवान हनुमान और कालभैरव की प्रतिमा भी है।
कटनी के मंदिर में माँ ज्वाला के रूप में जालपा मैया विराजमान है उनकी प्रतिमा सिल के अकार की है. वहां के पांडा बिहारीलाल ने पूरे विधिविधान से माता की मूर्ति का प्राणप्रतिष्ठा कराई। धीरे धीरे भक्त बढ़ने लगे माता की कृपा कटनी से पूरे प्रदेश में फ़ैल गई। कुछ दिन बाद माँ के मंदिर को भव्य रूप दिया गया। मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद यहाँ माँ काली और माँ शारदा की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई और साथ में भगवान हनुमान और भैरव बाबा को भी विराजित किया गया।
64 योगिनी की हुई स्थापना
आज से 4 साल पहले मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया उसी दौरन पट्टाभिरामाचार्य महाराज के सानिध्य में 64 योगनियों की स्थापित किया गया. ना सिर्फ नवरात्री बल्कि यहाँ साल भर भक्त आते रहते हैं। यहाँ के पुजारी लालजी की पिछले 5 पूर्वजों ने लगातार माँ की सेवा की है।