ED कैसे बनी देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी? जानिए दिल्ली CM केजरीवाल को गिरफ्तार करने वाले प्रवर्तन निदेशालय के बारे में सब कुछ...
एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी ED के पास आज CBI और NIA से भी ज़्यादा पावर है। पर क्या आप जानते हैं कि कैसे एक छोटी सी यूनिट आज देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी बन गई? तो आइये जानते हैं ED के बारे में सब कुछ...
पिछले कुछ सालों में ताबड़तोड़ कार्रवाई करने वाली एक जांच एजेंसी 'एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट' यानी ED, जिसके नाम मात्र से भ्रष्टाचारी खौफ में आ जाते हैं। हाल ही में ED ने दिल्ली शराब नीति केस में सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की है। एक समय था जब ED महज एक छोटी सी यूनिट थी, तो आज यह देश की सबसे ताकतवर कैसे बन गई? तो आइये जानते हैं ED के बारे में सब कुछ...
बात देश की आजादी के बाद की है। सालों से विदेशों में चल रहे स्टॉक एक्सचेंज में लेन-देन करने वालों की निगरानी और जांच के लिए एक कानून की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए देश की आजादी के समय से एक कानून था, FERA (Foreign Exchange Regulation Act) 1947।
एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी ED का उदय
साल 1956 में भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार थी। सरकार के सामने आर्थिक मामलों के विभाग ने एक अलग यूनिट बनाने का प्रस्ताव रखा। यूनिट का नाम दिया गया 'एन्फोर्समेंट यूनिट'। ठीक एक साल बाद यानी 1957 में इस यूनिट की शुरुआत भी हो गई। मुख्यालय दिल्ली में बनाया गया और लीगल सर्विस से जुड़े अफसर को इस यूनिट का डायरेक्टर नियुक्त किया गया।
आर्थिक मामलों की देखरेख करने वाले विभाग की एक यूनिट जिसका नाम था 'एनफोर्समेंट यूनिट', बाद में इसे 'एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट' यानी ED नाम दिया गया। ED के पास आज CBI और NIA से भी ज़्यादा पावर है।
इस यूनिट में पुलिस विभाग के तीन इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों को शामिल किया गया और बाद में आरबीआई के एक अन्य अधिकारी को एन्फोर्समेंट यूनिट के डायरेक्टर का असिस्टेंट बना दिया गया।
EU की तीन शाखाएँ बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता में खोली गई। इन तीनों शहरों में स्टॉक एक्सचेंज हुआ करते थे, इस वजह से यहां इनकी शाखाओं की जरूरत महसूस हुई थी। कुछ समय बाद एन्फोर्समेंट यूनिट का नाम बदलकर एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी ED कर दिया गया।
FERA 1973 के तहत काम करने लगी ED
1960 की बात है। सरकार ने ED का प्रशासनिक नियंत्रण बदल दिया। ED को आर्थिक मामलों के विभाग से हटाकर राजस्व विभाग को सौंप दिया गया। इधर, कुछ वक्त बाद 1947 का FERA भी निरस्त हो गया। एक्ट में बदलाव हुआ तो FERA 1947 की जगह FERA 1973 आ गया। फिर ED को इस नए कानून के तहत लगा दिया गया। साल 1973 से साल 1977 तक ED पर डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स (कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग) का प्रशासनिक नियंत्रण रहा।
FERA 1973 से ED की ताकत बढ़ने लगी
अब ED की ताकत बढ़ने लगी थी। जांच एजेंसी ने कई बड़े हाईप्रोफ़ाइल लोगों से जुड़े मामले हैंडल किए। FERA 1973 के उल्लंघन के मामले में ED ने महारानी गायत्री देवी, जयललिता, हेमा मालिनी, विजय माल्या, रिलायंस के प्रतिद्वंद्वी ऑर्के ग्रुप, और BCCL के चेयरमैन अशोक जैन जैसे हाईप्रोफ़ाइल लोगों के मामले की जांच की।
90 के दशक तक उद्योगपतियों में ED का खौफ
फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (FERA) 1973 के तहत ED के पास कई तरह की शक्तियां थी। जैसे इस कानून के तहत ED के पास बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने या उसके ऑफिस में घुसकर तलाशी लेने का अधिकार था। FERA के सख्ती के चलते उद्योगपतियों में ED का खौफ था। इस दौरान ED पर थर्ड डिग्री टार्चर के भी आरोप लगे थे।
FERA हटा, FEMA आया और ED कमजोर हो गई
उद्योगपतियों में ED का खौफ इस हद तक था कि उनके दबाव के चलते साल 2000 में FERA 1973 को ही खत्म कर दिया गया। इसकी जगह विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम यानी FEMA ने ले ली। FEMA के तहत विदेशी मुद्रा से जुड़े आपराधों को सिविल ऑफेंस में बदल दिया गया। इसके चलते अब ED लोगों को गिरफ्तार कर हिरासत में नहीं रख सकती थी।
साल 2002 में केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी। इस दौरान प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट यानी PMLA संसद में पेश किया गया। 2004 में कांग्रेस की अगुआई वाले UPA गठबंधन की सरकार बनी। पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे।
1 जुलाई को 2005 को UPA सरकार ने अटल सरकार के समय बने PMLA कानून को लागू कर दिया। फिर UPA सरकार ने ही 2012 में PMLA (संशोधन) अधिनियम लाकर इसके तहत आने वाले अपराधों का दायरा बढ़ाया। इनमें धन छुपाने, अधिग्रहण और धन के आपराधिक कामों में इस्तेमाल को शामिल किया गया।
इस संशोधन की बदौलत ED को कुछ और विशेषाधिकार मिले। मसलन, PMLA, ED को राजनीतिक घोटालों पर कार्रवाई का भी अधिकार देता है। इसके बाद विदेशों में शरण ले लेने वाले आर्थिक मामलों के अपराधियों की तादाद बढ़ी, तो इनसे निपटने के लिए BJP की अगुआई वाली NDA सरकार ने साल 2018 में ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ (FEOA) पास कर दिया। इस कानून के तहत कार्रवाई करने की जिम्मेदारी भी ED के पास आ गई।
ED को कैसे मिलती है ताकत?
- प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी PMLA एक क्रिमिनल लॉ है, जिसके तहत ED को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपियों की संपत्तियों जांच, पूछताछ, गिरफ्तार और संपत्तियां जब्त करने का अधिकार है।
- PMLA अकेला ऐसा कानून है जिसके तहत जांच करने वाले ऑफिसर को दिया गया बयान कोर्ट में सबूत माना जाता है। जबकि बाकी कानूनों के तहत ऐसे बयान की कोर्ट में कोई वैल्यू नहीं होती।
- किसी आरोपी को सिर्फ तब जमानत दी जा सकती है जब कोर्ट इस बात से संतुष्ट हो कि आरोपी वास्तव में दोषी नहीं है।
- मनी लॉन्ड्रिंग कन्फर्म हो जाने पर ईडी संपत्ति की खोजबीन और फिर उसे जब्त करने की प्रक्रिया कर सकता है।
- PMLA के सेक्शन 4 के तहत दंडनीय अपराधों के मामले स्पेशल कोर्ट्स में सुने जाते हैं। इन्हें PMLA कोर्ट कहा जाता है। PMLA कोर्ट के किसी ऑर्डर के खिलाफ उच्च अदालतों में अपील की जा सकती है।
ED के हाथ में कोई मामला कब जाता है?
देश के किसी भी पुलिस थाने में 1 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा की रकम गलत तरीके से कमाने का मामला दर्ज हो तो ये सूचना पुलिस ED को देती है। इसके अलावा अगर ऐसा कोई मामला ED के स्वतः संज्ञान में आए तो वो खुद थाने से FIR या चार्जशीट की कॉपी मांग सकती है। इसके बाद ED यह देखती है कि मामला मनी लॉन्ड्रिंग का तो नहीं है।
CBI और NIA से भी ज्यादा पावरफुल है ED
दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत बनी CBI और नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी यानी NIA का एक दायरा है। सीबीआई को किसी भी राज्य में घुसने और जांच करने के लिए राज्य सरकार की परमीशन की जरूरत होती है। या फिर जांच किसी अदालत के आदेश पर हो रही हो तो सीबीआई वहाँ जा सकती है। करप्शन के मामलों में अफसरों पर मुकदमा चलाने के लिए CBI को उसके डिपार्टमेंट से अनुमति लेनी पड़ती है।
इसी तरह एनआईए को कानूनी ताकत एनआईए एक्ट 2008 के तहत मिलती है। यह पूरे देश में काम तो करती है, लेकिन इसका दायरा सिर्फ आतंकी मामलों तक ही सीमित है।
ED की शक्तियां
लेकिन प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) यानी ED के साथ ऐसा नहीं है। यह सीबीआई और एनआईए के ठीक उलट है। ED केंद्र सरकार की इकलौती जांच एजेंसी है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में नेताओं और अफसरों को तलब करने या उन पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं है। ED छापा भी मार सकती है और प्रॉपर्टी भी जब्त कर सकती है। हालांकि, अगर प्रॉपर्टी इस्तेमाल में है, जैसे मकान या कोई होटल तो उसे खाली नहीं कराया जा सकता।
मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में ED जिसे गिरफ्तार करती है, उसे जमानत मिलना भी बेहद मुश्किल होता है। इस कानून के तहत जांच करने वाले अफसर के सामने दिए गए बयान को कोर्ट सबूत मानता है, जबकि बाकी कानूनों के तहत ऐसे बयान की अदालत में कोई वैल्यू नहीं होती।