Side Effects of Antibiotics: Alert! ना करें ज्यादा एंटीबायोटिक्स का सेवन, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी
एंटीबायोटिक का ज्यादा सेवन करने से याददाश्त धीरे-धीरे कमजोर होना शुरू हो जाती है.
Side Effects of Antibiotics: आज हम एक ऐसी बीमारी के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद ही कभी आपने सुना हो। उस बीमारी का नाम है डिमेंशिया! एक ऐसी बीमारी जिसमें मरीज के साथ-साथ उसके परिवार के लोग भी बहुत सी मुश्किलों का सामना करते हैं। जी हां! दोस्तों डिमेंशिया से ग्रसित होने पर मरीज की मानसिक स्थिति उसकी उम्र के बढ़ने के साथ-साथ खराब होती रहती है। इसी वजह से मरीज अपने परिवार पर बहुत ज्यादा डिपेंडेंट रहने लगता है। आपको बता दें डिमेंशिया बीमारी का असर बुजुर्गों पर सबसे ज्यादा होता है। बीमारी के लक्षण उस समय नजर आते हैं जब व्यक्ति की उम्र 65 के पार हो गई हो लेकिन इस बीमारी की शुरुआत बहुत पहले से हो जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ाने के पीछे एंटीबायोटिक्स जिम्मेदार हो सकती हैं, जिनके सेवन से इसका खतरा बढ़ सकता है-
क्या कहती है स्टडीज?(What Do Studies Say):
नई स्टडी के मुताबिक जो व्यक्ति अपने मिडिल एज में एंटीबायोटिक का ज्यादा सेवन करते हैं उनकी याददाश्त धीरे-धीरे कमजोर होना शुरू हो जाती है खासतौर पर महिलाओं को यह जोखिम ज्यादा रहता है। आपको बता दें इस स्टडी को PLOS One में पब्लिश किया गया और स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने यह पाया कि जिन antibiotics का सेवन बैक्टीरियल इंफेक्शन से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है उसी से याददाश्त कमजोर होने का जोखिम ज्यादा होता है। एंटीबायोटिक्स का लंबे समय तक सेवन करना याददाश्त पर बुरा प्रभाव डाल सकता है।
रिस्क फैक्टर्स(Risk Factors):
हर बीमारी के कुछ रिस्क फैक्टर्स होते हैं उसी तरह से डिमेंशिया के भी कुछ risk factors है--
● हार्ट अटैक
● हद से ज्यादा शराब का सेवन करना
● डाइट और एक्सरसाइज
● बहुत ज्यादा स्मोकिंग करना
● शरीर में कुछ जरूरी विटामिन और मिनरल्स की कमी होना
● एयर पॉल्यूशन
● सिर पर किसी गंभीर चोट का लगना
लक्षण(Symptoms):
● डिमेंशिया में रोगी एक ही बात को बार-बार दोहराते रहता है।
● मरीज को कोई बात देर से समझ आती है या किसी किसी बात को वह नहीं समझता।
● मरीज की याददाश्त कमजोर हो जाती है।
● पुरानी बातों को मरीज बार-बार याद करता रहता है।
● मरीज के सोचने समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
● आसपास किसी के ना होने पर भी मरीज अपने आप से बातें करता रहता है।
● कभी-कभी व्यक्ति बहकी बहकी बात करता है।
● बात करने में लड़खड़ाना।
अगर सही समय पर हेल्थ एक्सपर्ट्स से अपनी समस्या के बारे में बात करी जाए तो यह बीमारी ठीक भी हो सकती है।