कोरोना से ठीक होने वालों पर हार्टअटैक और लकवा का खतरा, पढ़ें पूरी खबर...
देश भर में कोरोना वायरस से संक्रमियों की रिकवरी दर में तेजी से इजाफा देखा गया है. लेकिन कोरोना से ठीक होने वाले लोगों पर एक और खतरा मडराने लगा;
कोरोना वायरस (COVID-19) के संक्रमण के मामले देश में अब धीरे धीरे कम हो रहें है. देश भर में कोरोना वायरस से संक्रमियों की रिकवरी दर में तेजी से इजाफा देखा गया है. लेकिन कोरोना से ठीक होने वाले लोगों पर एक और खतरा मडराने लगा है.
बता दें कोरोना से जंग जीतने के बाद अधिकाँश लोग ये समझ बैठते हैं कि वे अब पूरी तरह से ठीक हो गए हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. कोरोना से ठीक होने के डेढ़ माह बाद भी संक्रमित हुए लोगों के शरीर पर कुछ दुष्प्रभाव देखे जा रहें हैं. ऐसे लोगों पर हार्ट अटैक और लकवा का खतरा मंडरा रहा है.
गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल के छाती व श्वास रोग विभाग के एचओडी व राज्य सरकार के कोविड सलाहकार डॉ. लोकेंद्र दवे ने कहा कि मध्यम या गंभीर रूप से कोरोना पीड़ितों में 20 से 30 फीसद में ठीक होने के बाद D-Dimer तय मात्रा से पांच गुना तक ज्यादा मिल रहा है.
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डॉ दवे ने बताया कि हमीदिया अस्पताल में रोजाना 1-2 ऐसे मरीज आ रहें हैं, जिन पर तय मात्रा से बढे हुए D-Dimer मिल रहें हैं. अभी भी एक ऐसा मरीज अस्पताल में भर्ती है जिसका D-Dimer 24 हजार नैनोग्राम/एमएल है. जबकि सामान्यतः D-Dimer की मात्रा 500 नैनोग्राम/एमएल से कम होनी चाहिए.
बताया जा रहा है कि 20-30 फीसद लोगों में कोरोना से ठीक होने के बावजूद भी D-Dimer की मात्रा बढ़ी हुई पाई जा रही है. ऐसे लोगों में हार्टअटैक और लकवा की संभावना बढ़ जाती है.
क्या है D-Dimer
खून के गाढ़ा होने पर थक्का (Blood Clots) बनते हैं. इन्ही Blood Clots में Fibrin नाम का जाल बनता है. धीरे-धीरे ये Clots घुलते हैं, जिसकी वजह से Fibrin जाला टूट जाता है. और इसी का टुकड़ा D-Dimer कहलाता है.
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यह एक तरह का Protine होता है. जिसके बढ़ने का सीधा मतलब है कि थक्का बना हुआ है. डी-डाइमर तय सीमा से जितना ज्यादा होता है, उसका मतलब यह है कि Clotting उतनी अधिक है.