Chhatarpur : हीरों के लिये प्रकृति पर कुठाराघात पर्यावरण के लिये अभिशाप, युवाओं ने कहा हीरा नहीं पर्यावरण चाहिए
छतरपुर। प्रकृति के साथ कुठाराघात मनुष्य के साथ ही जीव-जंतुओं, पशु-पक्षिओं के लिये अभिशाप साबित हो रहा है। लेकिन मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिये लगातार प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है। आपको बता दें कि छतरपुर जिले की बकस्वाहा तहसील के घने जंगल में हीरों का विशाल भंडार छिपा है। जहां हीरों के लिए लाखों पेड़ों को बलि चढ़ाने की तैयारी चल रही है लेकिन इसे बचाने के लिये समाजसेवियों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। वहीं युवाओं ने भी मोर्चा संभाल लिया और कहा है कि उन्हें हीरा नहीं पर्यावरण चाहिए।
छतरपुर। प्रकृति के साथ कुठाराघात मनुष्य के साथ ही जीव-जंतुओं, पशु-पक्षिओं के लिये अभिशाप साबित हो रहा है। लेकिन मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिये लगातार प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है। आपको बता दें कि छतरपुर जिले की बकस्वाहा तहसील के घने जंगल में हीरों का विशाल भंडार छिपा है। जहां हीरों के लिए लाखों पेड़ों को बलि चढ़ाने की तैयारी चल रही है लेकिन इसे बचाने के लिये समाजसेवियों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। वहीं युवाओं ने भी मोर्चा संभाल लिया और कहा है कि उन्हें हीरा नहीं पर्यावरण चाहिए।
पेड़-पौधों के उजड़ने से पैदा होंगे कई संकट
बता दें कि हीरों की खोज में 2 लाख 15 हजार 875 हरे-भरे विशाल पेड़ों को जमींदोज किया जाएगा और हजारों वन्यजीव प्रभावित होंगे। वनसंपदा से रोजी-रोटी कमाने वाले आदिवासी परिवारों से अपने परिवारों का पेट पालने का जरिया छिन जाएगा। हाल में कोरोना आपदा ने ऑक्सीजन संकट ने ये समझा दिया है कि पेड़ कितने कीमती हैंए फिर भी विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध बलि चढ़ाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
पहले भी लाखों पेड़ हो चुके जमींदोज
पहले झांसी-खजुराहो फोरलेन हाइवे बनाने में लाखों पेड़ों को काटा गया। बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे में भी करीब दो लाख पेड़ों की बलि चढ़ाई जा चुकी है। केन.बेतवा लिंक परियोजना में 20 लाख से ज्यादा पेड़ डूबने का अनुमान जताया है। अब बकस्वाहा के जंगल में छिपे हीरे निकालने के लिए 2 लाख 15 हजार से ज्यादा पेड़ों को कुर्बान करने की तैयारी पूरी हो गई है। जिसमें 40 हजार पेड़ कीमती सागौन के ही हैं।
पर्यावरण असंतुलन को बचाना बड़ी जंग
बकस्वाहा अंचल के हरे.भरे पेड़ों से आच्छादित वनभूमि के गर्भ में छुपे हीरों पर कंपनियों की ऐसी नजर लगी है कि वनों का विनाश और पर्यावरण असंतुलन को बचाना एक बड़ी जंग बन गया है। 20 साल पहले आस्ट्रेलियन कंपनी रियोटिंटो ने सर्वे करके पता किया कि यहां की जमीन के नीचे 3.42 करोड़ कैरेट हीरों का भंडार छुपा हैं। इसे निकालने के लिए कंपनी ने 900 हेक्टेयर जमीन मांगी। उस जमीन पर लगे करीब 11 लाख पेड़ों को काटने की योजना बनाई गईए तब स्थानीय लोगों के विरोध के बाद यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई और कंपनी को यू.टर्न लौटना पड़ा। हाल ही में एक बार फिर हीरा उत्खनन के लिए बोली लगाकर आदित्य बिरला समूह ने यहां की रत्नगर्भा भूमि को 50 साल के लिए लीज पर ले लिया है। इस पर कंपनी 2500 करोड़ रुपये खर्च करके यहां हीरा तलाशेगी।
समाजसेवियों ने कहा....
आशिक मंसूरी बकस्वाहा ने कहा है कि कोरोनाकाल में ऑक्सीजन के संकट ने संकेत दे दिया कि जीवन के लिए पेड़ अमूल्य हैं। विकास के लिए पेड़ काटकर पर्यावरण का विनाश न किया जाए। यदि पर्यावरण बिगड़ा तो जीवन पर संकट मंडराएगा, तब विकास बेमानी हो जाएगा। सैकड़ों साल उम्र वाले पेड़ों को बचाने के लिए इंटरनेट मीडिया पर अभियान चलाया जा रहा है। इसी तरह अमित भटनागर किसान नेता छतरपुर का कहना है कि बकस्वाहा का जंगल बचाने के लिए सभी अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। गांधी आश्रम में 26 से 30 जून तक पांच दिवसीय हरित सत्याग्रह चलाया जाएगा।