मध्यप्रदेश से अलग फिर विंध्य प्रदेश को अस्तित्व में लाना चाहते हैं BJP MLA, जानिए क्या रहा है इसका इतिहास...
विंध्य जो कभी विंध्य प्रदेश VINDHYA PRADESH के नाम से जाना जाता रहा था. इस प्रदेश का अपना मुख्यमंत्री भी था, इसकी विधानसभा भी थी. HISTORY
HISTORY OF VINDHYA PRADESH / विंध्य जो कभी विंध्य प्रदेश (VINDHYA PRADESH) के नाम से जाना जाता रहा था. इस प्रदेश का अपना मुख्यमंत्री भी था, इसकी विधानसभा भी थी. लेकिन मध्यप्रदेश (MADHYA PRADESH) के गठन के साथ ही VINDHYA PRADESH का अस्तित्व भी नए प्रदेश में मिल गया.
विंध्य को अलग प्रदेश बनाने की मांग प्रायः उठती रही है. मध्यप्रदेश की सत्ता के शीर्ष में बैठकर रीवा के नेता अक्सर विंध्य प्रदेश को अस्तित्व में लाने की जुगत में रहते थें, लेकिन इस बार मांग विंध्य के ही सतना जिले से उठी है. सतना जिले के मैहर विधानसभा से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी इस मांग को आगे लेकर जा रहें हैं.
पहले जानिए विंध्य प्रदेश का इतिहास (HISTORY OF VINDHYA PRADESH)
विंध्य प्रदेश भारत की आजादी के बाद सेंट्रल इंडिया एजेंसी ने पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर वर्ष 1948 में बनाया था. यह मध्यप्रदेश के गठन के 8 साल पहले अस्तित्व में आ गया था. यही नहीं VINDHYA PRADESH में पहली बार 1952 में विधानसभा का भी गठन हुआ, जो वर्तमान रीवा नगर निगम में हुआ करता था. (CHIEF MINISTER OF VINDHYA PRADESH) पहली बार मुख्यमंत्री शंभूनाथ शुक्ला थें, जो शहडोल जिले के निवासी थें. विंध्य प्रदेश की राजधानी रीवा हुआ करती थी (REWA WAS THE CAPITAL OF VINDHYA PRADESH).
विंध्य, बेहद खूबसूरत रियासतों को मिलाकर बनाया गया था. विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग माना जाता है. करीब 4 साल अस्तित्व में रहने के बाद विंध्य प्रदेश का विलय नए प्रदेश यानी मध्य प्रदेश में हो गया था.
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शुरू से ही विरोध
दरअसल, मध्यप्रदेश का गठन 1 नवम्बर 1956 को हुआ था. परन्तु इसी दिन विंध्य का विलय मध्यप्रदेश में हो गया. लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. कई संगठन आगे आएं. कई पार्टियां आगे आईं. परन्तु विंध्य अब मध्यप्रदेश का हो चुका था.
मध्यप्रदेश के तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष एवं कांग्रेस के कद्दावर नेता रहें स्व. श्रीनिवास तिवारी (SHRI NIWAS TIWARI) उन दिनों युवा नेता थें. और उनकी राजनितिक पारी भी विंध्य को अलग प्रदेश बनाने से शुरू हुई थी. वे राजनीति की सीढ़ी चढ़ सत्ता के शिखर पर पहुंचे पर और अपने मुख्य उद्देश्य को पूरा करने में लग गए. परन्तु उन्हें भी सफलता हाँथ न लग पाई. उन्होंने VINDHYA PRADESH के गठन को लेकर विधानसभा में एक प्रस्ताव भी रखा था. उन्होंने कहा था कि उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड (BUNDELKHAND) और मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र को मिलाकर विंध्य प्रदेश बनाया जाना चाहिए.
हालांकि इस मुद्दे पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई और बात आई-गई हो गई लेकिन विधानसभा में प्रस्ताव आने के बाद कभी-कभी यह मांग दोबारा उठती रही. कई बार छोटे-मोटे आंदोलन भी हुए. सन 2000 में केंद्र की एनडीए सरकार ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड प्रदेश बनाने के गठन को स्वीकृति दी थी. उस समय भी श्रीनिवास तिवारी के पुत्र दिवंगत सुंदरलाल तिवारी (SUNDARLAL TIWARI) ने एक बार फिर मुद्दा गर्मा दिया था. उस समय एनडीए सरकार को एक पत्र लिखा था.
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मध्य प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन तब केंद्र ने इसे खारिज कर केवल छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना को हर झंडी दे दी थी.
वर्तमान में विंध्य क्षेत्र अंतर्गत रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, सिंगरौली और कटनी जिले के कुछ हिस्से आते हैं.
अब नारायण ने उठाया बीड़ा
अब विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर BJP विधायक नारायण त्रिपाठी आगे आ गए हैं. उन्होंने अलग विंध्य प्रदेश का बीड़ा उठाया है. उन्हें इस बावत पार्टी हाई कमान की ओर से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी त्रिपाठी ने तलब कर ऐसा न करने की सलाह भी दी थी. लेकिन वे अपनी मांग पर अड़े रहें. उन्होंने समर्थकों का हुजूम जोड़ना शुरू कर दिया. हाल ही में 300 कारों का काफिला चुरहट लेकर पहुंचे थें और वहीं से आंदोलन की शुरुआत कर दी.
नारायण पर सवाल भी...
दरअसल, नारायण त्रिपाठी पर काफी सवाल भी उठते रहते हैं. उन्होंने कई पार्टियों से जीत हासिल कर अपना जनाधार बनाया है. अभी वे भाजपा से एमएलए हैं, लेकिन सूत्र बताते हैं की भाजपा उन्हें सीरियस नहीं लेती, क्योंकि कमलनाथ सरकार के दौरान वे अपने बागी तेवर भाजपा को दिखा चुके हैं. हांलाकि त्रिपाठी का कहना था वे क्षेत्र के विकास के सिलसिले में कमलनाथ से मिलते रहते थें. लेकिन भाजपा उन पर भरोसा नहीं करती.
वहीं राजनीतिक सूत्र यह भी बताते हैं कि नारायण त्रिपाठी अपना जनाधार तैयार करने में जुटे हैं. इसके लिए उन्हें विंध्य प्रदेश की मांग करना सबसे अच्छा विकल्प मिला, वे दरअसल में जानते हैं कि उनकी पूंछ-परख कहीं नहीं है. इसलिए ऐसे नहीं तो वैसे ही सही, वे सिर्फ सुर्ख़ियों में बने रहना चाहते हैं एवं विंध्य के सर्वमान्य नेता बनना चाहते हैं.
वहीं भाजपा के एक दिग्गज नेता का यह तक कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से ही नारायण त्रिपाठी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि सिंधिया के साथ उनके धुर विरोधी श्रीकांत चतुर्वेदी भी बीजेपी में आ गए हैं जो कभी कांग्रेस के नेता रहे हैं.