MP Vidhansabha Elections 2023: त्रिपुरा की जीत से एमपी में होगा खेल, CM शिवराज पर भारी पड़ सकता है गुजरात-उत्तराखंड फॉर्मूला!

MP News: एमपी में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा गुजरात और उत्तराखंड का फार्मूला दोहरा सकती है, इसकी चर्चाएं लोगों के बीच तेज हो गई हैं।

Update: 2023-03-05 07:38 GMT

एमपी में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा गुजरात और उत्तराखंड का फार्मूला दोहरा सकती है, इसकी चर्चाएं लोगों के बीच तेज हो गई हैं। इसकी काफी समय से बीच-बीच में लोगों द्वारा चर्चाओं का बाजार गर्म किया जाता रहा है कि एमपी में भाजपा क्या सीएम बदल सकती है? त्रिपुरा चुनाव के नतीजों के बाद नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं एक बार पुनः जोर पकड़ने लगी हैं। एमपी बीजेपी के कई नेताओं से अनौपचारिक बातचीत में इस बात के संकेत मिले हैं कि पार्टी के अंदर इसकी चर्चा जोर-शोर से चल रही है कि क्या अप्रैल-मई माह में भाजपा मध्यप्रदेश को नया सीएम कैंडीडेट दे सकती है? जबकि भाजपा के एक नेता का कहना है कि इसकी जानकारी पार्टी नेतृत्व को है कि पार्टी के भीतर नेता और कार्यकर्ता क्या सोचते हैं। आरएसएस की मध्यप्रदेश इकाई ने भी इस संबंध में अपना फीडबैक दिया है।

भाजपा बदल सकती है सीएम

एमपी में नई विधानसभा का गठन नवम्बर माह में किया जाना है। इस संबंध में एक भाजपा नेता का कहना है कि इसकी संभावना ज्यादा लग रही है कि भाजपा यदि बदलाव करेगी तो यह बदलाव अप्रैल-मई महीने में किया जा सकता है। जिससे यदि किसी ऐसे व्यक्ति को सीएण्म बनाया जाता जो अभी तक विधानसभा का सदस्य नहीं है तो चुनाव के पहले किसी सीट पर उपचुनाव की नौबत नहीं आएगी। नियम के मुताबिक यदि किसी ऐसे व्यक्ति को सीएम बनाया जाता है जो विधानसभा का सदस्य नहीं है तो उसको छह माह के भीतर सदस्य बनना जरूरी है। पार्टी सूत्रों की मानें तो भाजपा के अंदर कयासबाजी का दौर जारी है। नए सीएम के लिए कई नामों पर कयास लगाए जा रहे हैं।

बीजेपी आदिवासी चेहरे पर लगा सकती है दांव

पार्टी सूत्रों के मुताबिक भाजपा आदिवासी चेहरे पर दांव लगा सकती है। इसके पीछे उनके द्वारा तर्क भी दिए गए हैं। एमपी में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। जिनमें से 80 विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासियों का प्रभाव है। यहां आदिवासी वोटर ही निर्णायक माने जाते हैं। एमपी में अनुसूचित जाति की रिजर्व सीट 47 हैं। गत विधानसभा चुनाव में आदिवासियों ने बीजेपी को झटका दिया था। उस दौरान एसटी रिजर्व सीट में से 30 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। अब भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दलों द्वारा आदिवासी वोट बैंक के लिए अपना जुगाड़ भिड़ा रही हैं। भाजपा जहां आदिवासियों को अपने पाले में लाने की कवायद कर रही है तो वहीं कांग्रेस पार्टी भी अपना दबदबा कायम रखने जुगत लगा रही है। 80 सीटों पर आदिवासियों के एक बड़े संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) द्वारा भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया गया है। गत चुनाव में यह कांग्रेस के पाले में थी। जयस के संरक्षक कांग्रेस विधायक हैं किंतु इस समय वह बागी रुख अपनाए हुए हैं। किंतु कांग्रेस द्वारा इस बार भी जयस को अपने साथ रखने का जुगाड़ भिड़ा रही है।

त्रिपुरा की जीत से चर्चाओं का बाजार गर्म

भाजपा का चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने का फार्मूला गुजरात, उत्तराखंड और त्रिपुरा में कारगर हुआ है। यहां पार्टी द्वारा चुनाव के पूर्व सीएम बदल दिया और सत्ता में वापसी प्राप्त की। यहां यह फार्मूला कारगर होने के बाद एमपी में भी इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। भाजपा ने राज्य में विकास यात्रा निकाली तो कई जगह आदिवासी संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा। जिसको लेकर बीजेपी द्वारा मंथन भी किया गया। मध्यप्रदेश में जीत के लिए आदिवासी वोटर्स को साथ लाना भाजपा के लिए आवश्यक है।

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