एमपी में चार दृष्टि बाधित बच्चों के लिए रोशनी बनी मां, ऐसा किया कि जमाने के लिए बन गईं मिसाल
MP News: मध्यप्रदेश में चार दृष्टि बाधित बच्चों के लिए मां खुद रोशनी बन गई। उन्होंने ऐसा कार्य किया कि वह जमाने के लिए मिसाल बन गई हैं।
मध्यप्रदेश में चार दृष्टि बाधित बच्चों के लिए मां खुद रोशनी बन गई। उन्होंने ऐसा कार्य किया कि वह जमाने के लिए मिसाल बन गई हैं। अपनी हर सुख और इच्छाओं का त्याग कर मां ने चारों दृष्टिबाधित बच्चों को समाज में ऊंचा मुकाम दिलाया। जिनमें से दो बच्चे नेशनल प्लेयर बनकर कई मेडल अपने नाम कर चुके हैं। मामला एमपी अंतर्गत नर्मदापुरम जिले के निमसाड़िया टील का है।
दिलाया अच्छा मुकाम
निमसाड़िया टील की बसंती कीर अपने पांच बच्चों के साथ रहती हैं। जिनमें से 4 बच्चे दृष्टिबाधित हैं। अपनी हर इच्छाओं का त्याग करते हुए उन्होंने दृष्टिबाधित बच्चों को ऊंचे मुकाम तक पहुंचाया। बताया गया है कि चार दृष्टिबाधित बच्चों में प्रिया कीर 22 वर्ष और रीतेश 18 वर्ष नेशनल खिलाड़ी हैं। प्रिया हाल ही में पहली भारतीय महिला ब्लाइंड क्रिकेट टीम में खेलने नेपाल भी गई थीं। उनका बड़ा बेटा सत्यम 27 वर्ष पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद अब सिविल सर्विस की तैयारी में जुटा हुआ है। जबकि सबसे छोटा बेटा नितिन 14 वर्ष भी दृष्टिबाधित है जो 10वीं क्लास में है। उनकी एक बेटी पल्लवी कीर 24 वर्ष पांच भाई-बहनों में पूरी तरह से नार्मल है। जो मां के कंधे से कंधा मिलाकर इनकी मदद करती है। मां के साथ पल्लवी भी सुबह से लेकर रात तक अपने भाइयों की मदद में जी जान से लगी रहती है।
तीन बच्चे 100 फीसदी दृष्टिबाधित
बसंती कीर के मुताबिक उनके तीन बच्चे 100 फीसदी दृष्टिबाधित हैं। बच्चों के मनोरंजन और एक और हुनर सिखाने के लिए उन्होंने हारमोनियम ले रखा है। सत्यम और नितिन ने अभ्यास कर हारमोनियम पर धुनें निकालना भी सीख लिया है। उनका कहना है प्रिया के जन्म के दो वर्ष बाद पता चला कि उसकी आंखों में रेटिना लैंस टुकड़ों में है। जिसके इलाज के लिए वह चेन्नई तक गए किंतु ऑपरेशन नहीं हो सका। इसके लिए शासन की ओर से भी मदद नहीं मिल सकी। प्रिया ने वर्ष 2018 में नेशनल लेवल पर जूडो में 3 गोल्ड, 3 सिल्वर, 1 ब्रांज मेडल जीता। वह पहली भारतीय महिला ब्लाइंड क्रिकेट टीम में शामिल हुईं। वहीं बेटे रीतेश नेशनल लेवल पर 2 गोल्ड, 2 सिल्वर, 1 ब्रांज मेडल जूडो में जीत चुके हैं।
मन से निकाला कमजोरी का डर
बसंती के पति बृजलाल कीर के मुताबिक उनकी पत्नी भले ही आठवीं पास हैं किंतु उन्होंने बच्चों की परवरिश बहुत ही समझदारी से की। बच्चे जब छोटे थे तो उनकी देखभाल की चिंता के कारण वह कई महीनों तक अपने मायके नसरुल्लागंज तक नहीं गईं। अब उन्होंने बच्चों को इतना सक्षम बना दिया है कि वह स्वयं अपना काम करते हैं। बसंती का कहना है कि जब कोई उनके बच्चों को कमजोर कहता था तो उन्हें बहुत बुरा लगता था। उन्होंने सबसे पहले बच्चों के मन से कमजोरी और कमियों के डर को दूर किया। उन्होंने बच्चों को हर दिन यह एहसास दिलाया कि वह किसी से कम नहीं हैं। ऐसे में बच्चों का हौंसला बढ़ाकर आज उन्हें अच्छे मुकाम तक पहुंचाया।