MP में दोबारा हो सकते हैं चुनाव ? जानिए क्या होगा अब !

भोपाल : मध्यप्रदेश में सियासी घमासान के 12वें दिन राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। अब सबकी निगाहें आगामी विधानसभा सत्र के फ्लोर टेस्ट पर है। विशेषज्ञों की माने से

Update: 2021-02-16 06:14 GMT

भोपाल : मध्यप्रदेश में सियासी घमासान के 12वें दिन राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। अब सबकी निगाहें आगामी विधानसभा सत्र के फ्लोर टेस्ट पर है। विशेषज्ञों की माने से मध्यप्रदेश सरकार को लेकर सिसासी संकट देखा जा रहा। 16 मार्च को शुरू होने जा रहे सत्र में फ्लोर टेस्ट बड़ी चुनौती है। उधर, सिंधिया खेमे के जो 22 विधायक बेंगलूरू में हैं, यदि वे अधिक समय तक विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे नहीं सौंपते या सत्र में शामिल नहीं होत, तो भाजपा के लिए मुश्किल होगा और इसका फायदा कांग्रेस मिल सकता है। Elections can be held again in MP? Know what will happen now

यदि कोई विधायक केवल अपना इस्तीफा देता है और अन्य राजनीतिक पार्टी में शामिल होने का फैसला करता है, तो अध्यक्ष उनके खिलाफ दल बदल विरोधी कानून ( एंटी-डिफेक्शन कानून) के तहत सक्रिय कार्रवाई कर सकता है, क्योंकि वे विधायक अभी भी विधानसभा रिकॉर्ड में उसी पार्टी में होंगे। उन विधायकों के अध्यक्ष द्वारा इस्तीफा स्वीकार किए जाने के बाद, फिर वे एक राजनीतिक पार्टी में शामिल होने के लिए स्वतंत्र हैं क्योंकि वे दल बदल विरोधी कानून से बच सकते हैं और उपचुनावों में नए सिरे से चुनाव लड़ सकते हैं।

संविधान में कहा गया है कि अगर सूचना मिली है या नहीं और इस तरह की पूछताछ करने के बाद, जैसा कि वह उचित समझते हैं, तो अध्यक्ष इस बात से संतुष्ट हैं कि इस तरह का इस्तीफा स्वैच्छिक या वास्तविक नहीं है, वह इस तरह का इस्तीफा स्वीकार नहीं करेंगे।

सरकार गिराने-बचाने के लिए वोटिंग का खेल

कमलनाथ सरकार को बचाने या फिर गिराने में फ्लोर टेस्ट में व्हिप का अहम रोल रहेगा। सिंधिया खेमे के 6 मंत्रियों सहित जिन 22 विधायकों ने इस्तीफे दिए हैं, उन्हे लेकर कांग्रेस पार्टी फ्लोर टेस्ट के पहले व्हिप जारी कर सकती है। राजनीतिक पार्टियां सदन में अक्सर किसी महत्वपूर्ण मुद्दे को बहस के बाद पास करवाने या उसे मंजूर करवाने के लिए अपने सदस्यों को व्हिप जारी करते हैं।

व्हिप का उल्लंघन करने पर इस सदस्यों पर कार्यवाई होगी। 'दल बदल विरोधी कानून' (Anti-Defection Law) लागू करने इन्हे अपात्र किया जा सकता है। ऐसे में सरकार रहे या जाए लेकिन इन 22 विधायकों को नुकसान हो सकता है। हालांकि बीते शुक्रवार को 22 बागी विधायकों मे से एक भी विधायक स्पीकर के सामने नहीं आए।

तीन तरह की स्थिति बन सकती है...

पहला - यदि बागी 22 विधायक नहीं विधानसभा अध्यक्ष के सामने नहीं आते हैं और न ही विधानसभा सत्र में आते हैं, तो कांग्रेस व्हिप उल्लंघन के आधार पर कार्रवाई कर सकती है।

दूसरा - यदि 22 बागी विधायक विधानसभा सत्र में आते हैं और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ में वोटिंग करते हैं, तब भी कांग्रेस व्हिप उल्लंघ का आधार बनाकर कार्रवाई करवा सकती है।

तीसरा - यदि सरकार बदलती है, तब इन 22 विधायकों के आने या क्रॉस वोटिंग दोनों सूरत में नए अध्यक्ष को फैसला लेना होगा।

ये है विधायक को अयोग्य घोषित किये जाने के आधार

दल-बदल विरोधी कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है तब, जब निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ देता है। यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

यदि किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है। यदि कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है। और छह महीने की समाप्ति के बाद यदि कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है। तो ऐसी स्थिति में विधायक को अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

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