नवरात्रि 2020: बेहद प्रसिद्ध है विंध्य क्षेत्र में स्थित माता के ये मंदिर, मौका मिले जरूर जाएं दर्शन के लिए

नवरात्रि 2020 : इस समय देशभर में शारदेय नवरात्रि की धूम हैं। हर तरफ मां के भजन सुनाई दे रहे हैं। दुर्गा पंडालों पर देवी मां विराजित हो चुकी हैं। लोग उनकी भक्ति में डूबे हुए;

Update: 2021-02-16 06:36 GMT

नवरात्रि 2020: बेहद प्रसिद्ध है विंध्य क्षेत्र में स्थित माता के ये मंदिर, मौका मिले जरूर जाएं दर्शन के लिए

नवरात्रि 2020 : इस समय देशभर में शारदेय नवरात्रि की धूम हैं। हर तरफ मां के भजन सुनाई दे रहे हैं। दुर्गा पंडालों पर देवी मां विराजित हो चुकी हैं। लोग उनकी भक्ति में डूबे हुए हैं। हालांकि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस त्यौहार की धूम बेहद कम देखने को मिल रही है। जिसका सबसे बड़ा कारण है कोरोना वायरस।

इस वायरस को लेकर पूजा-पाठ में भी काफी ऐहतियात बरती जा रही है। पिछले साल की अपेक्षा इस साल उतनी भीड़ मंदिरों में नहीं देखी जा रही हैं। सभी लोग सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर ही मां की आराधना कर रहे है। साथ ही मां से इस वायरस को जल्द समाप्त करने की दुआ कर रहे हैं। ऐसे में आज हम आपको विंध्य क्षेत्र में स्थित मां के प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है।

शारदा देवी

सतना जिले के मैहर में स्थित मां शारदा देवी का मंदिर है। यह मंदिर बेहद प्रसिद्ध हैं। यहां साल के 12 महीनों भक्तों की भीड़ लगी रहती है। शारदा माता पहाड़ों पर बसी है। जिसके दर्शन करने के लिए देशभर से लोग आते हैं। नवरात्रि के समय यहां भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ होती हैं। लेकिन इस साल कोरोना महामारी देशभर में छाई हुई हैं। लिहाजा उतनी भीड़ देखने को नहीं मिल रही हैं। बावजूद इसके प्रशासन पूरी तरह से एलर्ट है। पूरी सुरक्षा-व्यवस्था के तहत ही भक्तों को दर्शन के लिए इजाजत दी जा रही है। ऐसे में अगर आप भी माता के भक्त हैं तो एक बार दर्शन के लिए मातारानी के दरबार जरूर जाएं।

रानी तालाब

रानी तालाब की मेढ़ पर स्थित मां कालिका माता का मंदिर हैं। यह मंदिर भी बेहद प्रसिद्ध हैं। जानकारों की माने तो कालिका माता की मूर्ति तकरीबन साढ़े 400 वर्ष पुरानी है। मूर्ति के संबंध में जानकार बताते है कि यहां से एक बार व्यापारी गुजर रहे थे। उनके पास कालिका माता की मूर्ति थी। रात्रि विश्राम के लिए वह यहां रूके और मूर्ति को तालाब की मेढ़ पर टिकाकर रख दिए थे।

सुबह जब वह यहां से जाने लगे तो मूर्ति उठाने लगे, लेकिन मूर्ति उठी नहीं। लिहाजा वह मूर्ति को छोड़ आगे बढ़ गए। इस बात की जानकारी जब तत्कालीन महाराजा व्याघ्रदेव सिंह को हुई तो उन्होंने एक चबूतरा तैयार कर इस मूर्ति को वहां स्थापित कर दिया और पूजा-अर्चना आदि करने लगे। प्रशासन की पहल पर आज यहां काफी सौन्दर्यीकरण हो चुका है। यहां साल के 12 महीना भक्तों की भीड़ लगी रहती हैं। नवदुर्गा के समय यह भीड़ कई गुना बढ़ जाती है।

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