यहां के पत्थरों को कीडे़ कुतरकर बना देते हैं भगवान, पूजे जाते हैं घर-घर...
यहां के पत्थरों को कीडे़ कुतरकर बना देते हैं भगवान, पूजे जाते हैं घर-घर...कहा जाता है कि भगवान तो कण-कण में होते हैं। यह बात सत्य तब हो जाती
यहां के पत्थरों को कीडे़ कुतरकर बना देते हैं भगवान, पूजे जाते हैं घर-घर…
कहा जाता है कि भगवान तो कण-कण में होते हैं। यह बात सत्य तब हो जाती है जब एक नदी के मिलने वाले पत्थर के बडे़ कण को लोग भगवान मानकर उसकी पूजा शुरू कर देते हैं। यह आज से नही कई हजार वर्षों से चल रहा है। वही आज कें विज्ञानी लोगों का मानना है कि उस नदी के पत्थर को कीडे़ कुतर कार एक स्वरूप में बदल देते हैं और लोग उन पत्थरों को भगवान मानकर पूजा करने लगते हैं। उन्हे ठाकुर जी कहा जाता है।
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जिस नदी में यह इस तरह के पत्थर पाये जाते हैं उस नदी को गंडक कहते हैं। यह नदी हिमालय से निकलकर नेपाल के रास्ते कुशीनगर होकर बिहार के सोनपुर के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी के कई नाम हैं। इसे गंडकी के अलावा, नारायणी, गंडक, शालिग्रामी, सप्तगंडकी कहा जाता है।
इस नदी में मिलने वाले इन पत्थरों को लोग भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। और इनकी पूजा घर-घर में होती हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। जिसमें बताए अनुसार एक पतिव्रत स्त्री जिसका नाम वृंदा था। वृंदा ने भागवान विष्णु को स्राप दिया था कि आप गंडकी नदी के पत्थर हो जाओ। तब से लोग इस गंडकी नदी के पत्थर को भगवान विष्णु का रूप मानकर पूजा करते हैं।
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