विश्व स्तनपान सप्ताह: इन कुरीतियों से बचपन से भूखे हैं बच्चे : MP SPECIAL REPORT
MP: एक स्वस्थ्य दुनिया के लिए स्तनपान का समर्थन, यही थीम है इस साल विश्व स्तनपान सप्ताह की. स्तनपान सप्ताह यानी साल के वह सात दिन जिनमें हम मां और शिशु के एक प्यार भरे रिश्ते को हर तरह से मजबूत बनाने की अपनी इच्छाशक्ति दिखाते हैं. 1 से 7 अगस्त तक पूरी दुनिया में विभिन्न तरह के आयोजन होते हैं. अब जबकि दुनिया कोविड-19 के संकट से गुजर रही है तो इस साल की थीम यानी एक स्वस्थ दुनिया के लिए स्तनपान का समर्थन बहुत ज्यादा प्रासंगिक हो गई है
रामसखी पत्नी दिनेश आदिवासी मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के टिकटोली गांव की रहने वाली हैं. कुल पांच बच्चे हुए जिनमें से तीन जिंदा हैं और दो की मौत हो गई, छठवां बच्चा रामसखी के पेट में है. नौवां महीना चल रहा है, चालीस किलो वजन है. वह कमजोर और एनीमिक है. आंगनवाड़ी केन्द्र में उसका नाम दर्ज है. गांव में ज्यादातर प्रसव जनाना करवाने वाली महिलाओं द्वारा करवाए जाते हैं, क्योंकि अस्पताल दूर है और वहां तक जाने के साधन नहीं मिल पाते हैं.
पिछले साल भी रात को दस बजे रामसखी ने एक बच्चे को जन्म दिया था. प्रसव तो हो गया, लेकिन रामसखी पूरी आंवल और बच्चे सहित पड़ी रही. सुबह दूसरे गांव मोरावन से मेहतरानी लेने गए. दिन में करीब 10 बजे दिन रामसखी की आंवल काटी गई. गांव की महिलाएं प्रसव तो करवा देती हैं, लेकिन इस इलाके की परंपरा है कि आंवल मेहतरानी ही काटेगी.
हर गांव में मेहतरानी होती नहीं, तो यदि बच्चा रात में हुआ तो सुबह तक इंतजार करना ही विकल्प है. रामसखी के साथ भी ऐसा हुआ. इस बीच बच्चा बहुत रोया. उसे चुप कराने के लिए रूई के फाये से बकरी का दूध उसके मुंह में डाला गया. बच्चा कमजोर ही पैदा हुआ और कमजोर ही रहा. चार माह बाद उसकी मृत्यु दस्त लगने के बाद हो गई.
मप्र के ही पन्ना जिले के मनकी गांव में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने जब हमें बताया कि चार दिन पहले ही एक आदिवासी के यहां प्रसव हुआ है तो हमारी इच्छा हुई कि जाकर उस परिवार से मिलना चाहिए. टोले के उस घर में जब हम पहुंचे तो सास अपने घरेलू काम में व्यस्त थी, ससुर बिटटू आदिवासी आंगन में बैठकर बीड़ी फूंक रहा था और बहू एक अंधेरे से कमरे में अपने बच्चे के साथ कैद.
बातचीत में हमें पता चला कि उस प्रसूता को पिछले तीन दिन से खाने को एक दाना भी नहीं दिया गया था. यह सुनकर हैरान होने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं था. पता चला कि यह देवता के कहने से उन्होंने ऐसा किया. तीसरे दिन के बाद पुराना चावल उबालकर दिया जाना था. अपने देवता पर उन्हें इतना अटूट भरोसा था कि उनके रहते मां और बच्चे का कुछ भी नहीं हो सकता. उन्होंने बताया कि हमारे पूरे आदिवासी समाज में यही परम्परा है.बहुत पुरानी नहीं यह 2020 के आसपास की ही आंखों देखी कहानियां हैं. ऐसे तमाम और मिथक हैं, जिन्हें सुनना आपको आश्चर्य में डालेगा. इन कहानियों पर गौर करना इसलिए जरूरी है कि क्योंकि 1 से 7 अगस्त तक हर साल विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. इस साल दुनियाभर में यह सप्ताह एक बेहतर दुनिया के लिए स्तनपान का समर्थन करने की अपील के साथ मनाया जाने वाला है.
कोविड-19 के संकट में यह सप्ताह और यह अपील और भी सार्थक इसलिए लगती है क्योंकि हमने देखा है कि कोविड के संक्रमण ने मानव शरीर को किसी चीज ने बचाए रखा है तो वह है इम्युनिटी पावर यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता. और इस क्षमता के लिए आपके बचपन की देखभाल और सुरक्षा बहुत मायने रखती है. वैसे भी स्तनपान नवजात शिशुओं का मौलिक अधिकार है. इससे किसी भी तरह वंचित नहीं किया जा सकता.लेकिन आंकड़ों और कहानियों में देखा जाए तो इन दोनों ही मोर्चों पर हम एक ऐसे मुकाम पर खड़े हैं जहां से अभी हमें बहुत आगे जाना है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक देश में पहले घंटे में केवल 41 प्रतिशत शिशुओं को मां का दूध नसीब हो पाता है, इसका मतलब यह है कि बच्चों की एक बड़ी आबादी जन्म से ही भुखमरी का शिकार हो जाती है. इस मामले में सबसे आगे गोवा है जहां कि 75 फीसदी से ज्यादा बच्चों को पहले घंटे में मां का दूध नसीब हो जाता है, लेकिन दूसरी ओर उत्तरप्रदेश है जहां कि केवल 25 प्रतिशत बच्चों को ही पहले घंटे में यह नसीब होता है, यानी सबसे बेहतर स्थिति और सबसे बदतर स्थिति में अभी बहुत बड़ा फासला है.
एक स्वस्थ्य दुनिया के लिए स्तनपान का समर्थन:
एक स्वस्थ्य दुनिया के लिए स्तनपान का समर्थन, यही थीम है इस साल विश्व स्तनपान सप्ताह की. स्तनपान सप्ताह यानी साल के वह सात दिन जिनमें हम मां और शिशु के एक प्यार भरे रिश्ते को हर तरह से मजबूत बनाने की अपनी इच्छाशक्ति दिखाते हैं. 1 से 7 अगस्त तक पूरी दुनिया में विभिन्न तरह के आयोजन होते हैं. अब जबकि दुनिया कोविड-19 के संकट से गुजर रही है तो इस साल की थीम यानी एक स्वस्थ दुनिया के लिए स्तनपान का समर्थन बहुत ज्यादा प्रासंगिक हो गई है.इसे थोड़ा गहराई से समझने की जरूरत है. इस संकट से दुनिया को बचाए रखने में किसी का योगदान है तो वह है इम्युनिटी पावर. इंसान की रोगों से लड़ने की यह क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि जन्म से किस तरह की देखरेख हुई है, उसे पहले घंटे में मां का गाढ़ा दूध मिला है या नहीं, उसने जन्म से छह माह तक एक्स्क्लूसिव फीडिंग यानी केवल स्तनपान किया है या उसे कुछ और भी दिया जाते रहा है.
स्तनपान केवल कोविड जैसी बीमारियों में ही प्रासंगिक नहीं बना है, इसने शिशु और बाल मृत्यु दर के गंभीर आंकड़ों को भी सुधारा है. अब समाज में इसके लिए चेतना आ रही है. इसमें केवल महिलाओं की ही भूमिका नहीं है, पुरुषों ने भी इस बात को समझा है. शिशु की देखरेख में अब वह भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं. हालांकि मंजिल अभी दूर है, पर सामाजिक चेतना और सभी के मिले-जुले प्रयासों से वह वक्त जल्द ही आएगा. इसके लिए जरूरी नहीं कि यह जिम्मेदारी केवल मां के कांधों पर हो, पुरुषों को भी समझना होगा कि एक स्वस्थ और बेहतर बचपन बनाने की जिम्मेदारी मां और पिता दोनों के कांधों पर है.
क्या कोविड में सुरक्षित है स्तनपान?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस संबंध में जारी गाइडलाइन में अब तक स्तनपान को कोविड संक्रमण से सुरक्षित बताया गया है. इस संबंध में हुए तमाम अध्ययनों में यह बात सामने नहीं आई है कि स्तनपान के जरिए यह वायरस मां के शरीर से शिशु तक पहुंचा हो. हां, इसको किया कैसे जाना चाहिए इस संबंध में उन सारे सुरक्षा उपायों को जरूरी बताया गया है जोकि किसी भी संक्रमित व्यक्ति के लिए जरूरी हो सकते हैं.जन्म के एक घंटे के भीतर सबसे ज्यादा स्तनपान कराने वाले राज्य1. गोवा – 75.4 प्रतिशत2. मिजोरम – 73.4 प्रतिशत3. सिक्किम – 69.7 प्रतिशत4. ओड़ीसा – 68.9 प्रतिशत5. मणिपुर – 65.6 प्रतिशत6. असाम – 65.4 प्रतिशत7. पुदुचेरी – 64.6 प्रतिशतजन्म के एक घंटे के भीतर सबसे कम स्तनपान कराने वाले राज्य1. उत्तर प्रदेश – 25.4 प्रतिशत2. राजस्थान - 28.4 प्रतिशत3. उत्तरखंड – 28.8 प्रतिशत4. दिल्ली - 29.9 प्रतिशत5. पंजाब – 29.9 प्रतिशत6. झारखण्ड – 33.0 प्रतिशत7. मध्यप्रदेश – 34.6 प्रतिशत[विपिन तिवारी की स्पेशल रिपोर्ट]