72 Hoorain Film Review, 72 हूरें फिल्म रिव्यू: मजाक-मजाक में गहरा सन्देश देती है यह फिल्म
72 Hoorain Film Review: फिल्म में मेकर्स ने बड़ी आसानी से बता दिया कि कैसे मुस्लिम युवा जन्नत की 72 हूरों के नाम पर ब्रेनवाश किए जाते हैं
72 Hoorain Film Review: 72 हूरें फिल्म रिलीज हो गई है, मेकर्स ने बड़ी आसानी से किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुंचाए बगैर अपना मैसेज दुनिया तक पहुंचाने में सफल रहे हैं. 72 हूरें फिल्म ऐसे कॉन्सेप्ट पर बेस्ड है जो फिक्शन होकर भी रियल लगता है. मेकर्स ने बड़ी आसानी से उस गुत्थी के धागे खोल दिए हैं जो मुस्लिम युवाओं को आतंकवादी बनने के लिए प्रेरित करते हैं.
देखा जाए तो 72 हूरें फिल्म से उन्ही को एतराज हो सकता है जो आतंकवाद का समर्थन करते हैं. क्योंकी समझदार इंसान तो जानता है कि मरने के बाद क्या है किसे मालूम। लेकिन जिन्हे आतंकवाद करने के लिए ब्रेनवाश किया जाता है उन्हें तो यही बताया जाता है कि 'यहां कुछ नहीं है, जो है सब ऊपर है, अल्लाह का काम करने पर वहां 72 हूरें मिलेगीं, जो बेहद खूबसूरत होगीं, शराब की नदियां होगीं, असली मजा वहीँ होगा''
72 हूरें फिल्म रिव्यू
ये कहानी है दो दोस्त हाकिम और बिलाल की, एक मौलाना इन्हे 72 हूरों का लालच देकर इंडिया गेट में आतंकी हमला करने का लालच देता है. ये भारत आकर आत्मघाती हमला करते हैं. सैकड़ों लोगों के साथ दोनों आतंकी भी मर जाते हैं. अब इनकी आत्मा इसी दुनिया में भटकती रहती है. दोनों सोचते हैं 'अबतक तो 72 हूरों को हमें लेने आ जाना चाहिए था' 72 हूरें कहां हैं?. दिन बीतते हैं, महीने गुजरते हैं और साल निकल जाते हैं मगर मौलाना द्वारा जिस जन्नत और उसकी हूरों का जिक्र किया गया था वो कहीं नज़र नहीं आता है. तब जाकर उन्हें समझ आता है कि उनके साथ धोखा हुआ है, 72 हूरें जैसी कोई चीज़ नहीं होती। उन्होंने काल्पनिक हूरों के चक्कर में ना जानें कितने बेक़सूर लोगों की जान लेली।
72 हूरें फिल्म कहीं से भी इस्लाम को नीचा दिखाने का काम नहीं करती, बल्कि ऐसी फिल्म तो सभी को देखनी चाहिए जो इन 72 हूरों के चक्कर में यहां अपने जीवन को खराब कर रहे है. मेकर्स ने इस फिल्म को मुस्लिम विरोधी नहीं बनाया।
इस फिल्म का निर्देशन संजय पूरण सिंह चौहान ने किया है और हाकिम-बिलाल का रोल पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने किया है. फिल्म के प्रोड्यूसर अशोक पंडित हैं.