छठ के पहले दिन मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन, दिल्ली AIIMS में ली अंतिम सांस; आज पटना में होगा अंतिम संस्कार
मशहूर लोक गायिका और पद्म भूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा का छठ पूजा के पहले दिन दिल्ली AIIMS में निधन हो गया। जानिए उनके जीवन, गीतों और उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार रात दिल्ली AIIMS में निधन हो गया। 72 वर्षीय शारदा सिन्हा ने छठ महापर्व के पारंपरिक गीतों से जनमानस में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका अंतिम संस्कार आज पटना में किया जाएगा। उनका पार्थिव शरीर इंडिगो की फ्लाइट से सुबह पटना लाया गया, जहां उनके प्रशंसकों और शुभचिंतकों को अंतिम दर्शन का अवसर मिलेगा।
दिल्ली AIIMS के मुताबिक, शारदा सिन्हा का निधन सेप्टिसीमिया (ब्लड इंफेक्शन) की वजह से हुआ। वे पिछले कुछ समय से बीमार थीं और 26 अक्टूबर को तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ, लेकिन 4 नवंबर को उनका ऑक्सीजन स्तर गिरने लगा, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनके गाए मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत सदियों तक याद किए जाएंगे। शारदा सिन्हा ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा। उन्होंने 'मैंने प्यार किया' और 'हम आपके हैं कौन' जैसी फिल्मों में अपनी आवाज दी। 'कहे तोसे सजना' और 'बाबुल जो तूने सिखाया' जैसे गाने आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं।
शारदा सिन्हा को 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' और 'महारानी' जैसी फिल्मों और वेब सीरीज में भी सुना गया। उनकी आवाज मैथिली, मगही और भोजपुरी लोकगीतों की पहचान बन चुकी थी। खासकर छठ महापर्व पर उनके गीतों की गूंज हर घर में सुनाई देती है।
शादी हुई तो उनकी सास ने गाने पर पाबंदी लगा दी थी
जब शारदा सिन्हा की शादी हुई, तो उन्हें अपने संगीत प्रेम के लिए एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। उनकी सास ने घर के बाहर गाने पर सख्त पाबंदी लगा दी थी। सास का मानना था कि घर में भजन गाना तो ठीक है, लेकिन समाज में गाना-बजाना बहू के लिए उपयुक्त नहीं।
शारदा सिन्हा ने एक इंटरव्यू में साझा किया था कि उनकी सास का कहना था, "हमारे परिवार की बहू कभी सार्वजनिक रूप से गाने-बजाने का काम नहीं कर सकती।" हालांकि, शारदा के ससुर और पति ने इस पर अलग दृष्टिकोण अपनाया। शादी के कुछ ही दिन बाद, गांव के मुखिया ने उनके ससुर से आग्रह किया कि शारदा ठाकुरबाड़ी में भजन गाएं।
ससुर ने शारदा को भजन गाने की अनुमति दी, लेकिन यह बात सास को बिल्कुल रास नहीं आई। सास ने नाराज होकर खाना तक छोड़ दिया। इसके बावजूद, शारदा ने तुलसीदास जी का भजन 'मोहे रघुवर की सुधि आई' गाया। गाने के बाद, गांव के बड़े-बुजुर्गों ने उन्हें सराहा और आशीर्वाद दिया।
हालांकि, सास का गुस्सा आसानी से नहीं थमा। दो दिन तक उन्होंने भोजन नहीं किया, लेकिन शारदा के पति ने समझदारी से स्थिति को संभाला। उन्होंने सास को समझाते हुए कहा, "अगर हम गाते तो क्या हमें भी घर से निकाल देतीं?" धीरे-धीरे, गांव वालों की तारीफ सुनकर सास का गुस्सा कम हुआ, और उन्होंने शारदा के गाने को स्वीकार करना शुरू कर दिया।