Sawan 2023: रीवा के सोहागी पहाड़ स्थित अड़गड़नाथ की कहानी, तेंदू की जड़ से प्रकट हुए थे भगवान भोलेनाथ
Rewa News: मध्यप्रदेश के रीवा जिला अंतर्गत सोहागी पहाड़ में अड़गड़नाथ का मंदिर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि लगभग 5सौ वर्ष पहले पहाडी़ में तेंदू की जड़ से नारियल के आकार के रूप में भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए थे।
Adgadnath Temple Sohagi: मध्यप्रदेश के रीवा जिला अंतर्गत सोहागी पहाड़ में अड़गड़नाथ का मंदिर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि लगभग 5सौ वर्ष पहले पहाडी़ में तेंदू की जड़ से नारियल के आकार के रूप में भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए थे। जिनकी उपासना करने न केवल आसपास बल्कि उत्तरप्रदेश से भी भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां पूस मास की तेरस को भव्य मेला लगता है। सावन के महीने में यहां भगवान अड़गड़नाथ के दर्शन करने दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं।
नारियल के रूप में हुए थे प्रकट
सोहागी पहाड़ स्थित भगवान अड़गड़नाथ शिव मंदिर संवत 1740 का बताया जा रहा है। बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार सोहागी पहाड़ में जिस स्थान पर उक्त मंदिर बना है वहां पहले तेंदू का विशाल वृक्ष था। जिसकी जड़ से भगवान अड़गड़नाथ नारियल के आकार के रूप में स्वतः प्रकट हुए थे। बताया जा रहा है कि उस अवधि के दौरान तत्कालीन गढ़वा नईगढ़ी के सम्राट रणधीर सिंह सेंगर को भगवान शिव ने स्वयं स्वप्न देकर मंदिर निर्माण के लिए आदेशित किया था। जिसके बाद गढ़वा नरेश द्वारा मंदिर का निर्माण व प्राण प्रतिष्ठा कराई गई थी। बताया जाता है कि उक्त मंदिर में भारी संख्या में भक्तों का जमावड़ा होता है। चूंकि श्रावण का माह भगवान शिव को अतिप्रिय माना जाता है ऐसे में सोमवार सहित सावन महीने में सोहागी सहित आसपास के अंचल से भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
वर्ष में एक बार लगता है मेला
ऐसा कहा जाता है कि पहाड़ की चोटी में भगवान शिव का मंदिर होने तथा मार्ग के काफी कष्टदायी होने की वजह से भक्तों ने उन्हें अड़गड़ की उपमा दी थी। यही वजह है कि मंदिर को भगवान अड़गड़नाथ का मंदिर कहा जाने लगा। स्थानीय बुजुर्गों तथा शिव भक्तों के अनुसार श्रावण मास में यहां उत्तरप्रदेश सहित तराई अंचल के लोग भारी संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। वहीं दूसरी तरफ पूस मास की तेरस को विशेष मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें आसपास के व्यापारी भी अपनी दुकान सजाकर कारोबार करते हैं। तो वहीं इस मेले में पहुंचकर श्रद्धालुजन पूजा-पाठ, भंडारा, कनछेदन, मुंडन आदि में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी करते हैं।