REWA Flood: रीवा में बाढ़ के प्रमुख कारण, फिर से बाढ़ आने का फुल माहौल बन रहा!

REWA Flood: रीवा में बाढ़ क्यों आती है आइये जानते हैं. वैसे बीते 2 दिन से जो लगातार झमाझम मचा है उससे एक बार फिर से रीवा में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है

Update: 2022-08-21 09:33 GMT

REWA Flood: मध्य प्रदेश में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जहां प्रकोप कम हो रहा है वहीं अब रीवा जिले में बाढ़ आने का खतरा बढ़ने लगा है. बीते दो दिन से नॉन स्टॉप बारिश हो रही है. एक बार फिर बाढ़ आने का फुल माहौल बन रहा है. वैसे तो रीवा में उस लेवल का फ्लड नहीं होता जितना देश के अन्य राज्य में देखने को मिलता है मगर जब रीवा में बाढ़ आती है तो तबाही का मंजर देखा नहीं जाता। गौरतलब है कि रीवा सिटी से लेकर ग्रामीण इलाकों में भरने वाला बाढ़ का पानी कोई प्राकतिक आपदा नहीं है, यहां जब डूब मचती है तो उसका कारण सिर्फ और सिर्फ कृतिम आपदा यानी मानव निर्मित बाढ़ होती है. कैसे? आइये जानते हैं. 


साल 2016 और 2017 में बैक टू बैक दो साल लगातार रीवा जिले को बाढ़ का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद यहां के सेवा निवृत इंजीनियर्स ने रीवा में होने वाली बाढ़ के प्रमुख कारणों की बारीकी से स्टडी की थी, कॉज़ ऑफ़ फ्लड को बड़ी शिद्धत से समझा था. उन इंजीनियर्स ने 600 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी। लेकिन यहां के अड़ियल प्रशासन और सरकार ने इंजीनियर्स की मेहनत को ज़रा सी भी तवज्जो नहीं दी.

उस रिपोर्ट में क्या था 

इंजीनियर्स और एक्सपर्ट्स की बनाई 600 पन्नों की रिपोर्ट में बताया गया था कि रीवा से गुजरने वाली नदी बिछिया और बिहर का मैक्सिमम फ्लो 3747, 3422, 3415 और 1466 घनमीटर है.नदियों में पानी तो पर्याप्त आता है लेकिन नदियों के ऊपर बने पुलों के डिज़ाइन की वजह से प्रवाह उतनी मात्रा में नहीं होता जितना होना चाहिए। 

रीवा में बाढ़ क्यों आती है? 

Why Rewa Floods: रिपोर्ट में बताया गया था कि रीवा सिटी का बिछिया पुल हमेषा खतरे के निशान में ही रहेगा, जब-जब यहां तेज बारिश होगी तो पानी खतरे के निशान के ऊपर पहुंच ही जाएगा। 

समाधान- इंजीनियर्स ने सुझाव दिया था की बिछिया पुल की ऊंचाई बढ़ाने की जरूरत है और पिलर के बीच के गैप को और बढ़ाना चाहिए। 

बिहर बराज का पानी बाढ़ की वजह 

रीवा सिटी में दो प्रमुख नदियां हैं बिछिया और बिहर, इन नदियों का पानी बिहर बराज डैम में जाता है. डैम में पानी रोक दिया जाता है जिससे नदी का बहाव उल्टा हो जाता है. और गांव-शहर में प्रवेश करने लगता है. 


समाधान- रिपोर्ट में कहा गया था कि बैराज के संचालकों के लिए एक प्रोटोकॉल होना चाहिए, जैसे ही पानी का स्तर बढ़ने लगे वैसे ही धीरे-धीरे पानी छोड़ते रहना चाहिए 

रेड ज़ोन एरिया चिन्हित नहीं किए 

नगर निगम और आपदा प्रबंधन बाढ़ के मामले में सिर्फ एक काम करता है. पुरानी नाव और दो-चार लाइफ जैकेट की व्यवस्था कर अधिकारीयों को कागजी रूप से ड्यूटी निर्धारित कर देता है. जो करना चाहिए वो इनके बस में नहीं है. 


रिपोर्ट में कहा गया था कि RMC और आपदा प्रबंधन को शहर और गांव से गुजरने वाली नदी-नालों में खतरे का निशान वाले लेवल को चिन्हित करना चाहिए, 2016 की बाढ़ के बाद RMC ने कुछ स्थानों में ऐसा किया था. लेकिन इस करवाई को नदियों के किनारे और पुलों के पास अनिवार्य रूप से हर साल आई बाढ़ के स्तर को चिन्हित करना चाहिए। 

अतिक्रमण सबसे बड़ा कारण 

रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों ने अपने घर नालों के ऊपर बना दिए हैं. वहीं ग्रेन बेल्ट में भी एक कतार से घर बना दिए गए हैं. अमहिया क्षेत्र में सबसे ज़्यादा मकान नालों को दबाकर बनाए गए हैं. जहां थोड़ी सी बारिश में बाढ़ के हालात बन जाते हैं. 


सुझाव- शहर में इंटर्नल ड्रेनेज सिस्टम को स्थानीय मोहल्लों में स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज की क्षमता लेवल और जल निकासी पर ध्यान देना चाहिए। बिहर बिछिया के कैचमेंट एरिया में वनीकरण होना चाहिए। जल संरक्षण होना चाहिए। शहर के ग्रीन बेल्ट में अतिक्रमण हटाकर वृक्षारोपण करना चाहिए। 

रीवा में बाढ़ का कारण प्राकर्तिक नहीं कृतिम है 

रियायार्ड जल संसाधन एसआई डॉ एनपी मिश्रा ने बताया था कि रीवा में बाढ़ का कारण प्राकर्तिक नहीं मानव निर्मत है. हर बार शहरी क्षेत्र में इसी लिए बाढ़ जैसे हालात बनते हैं क्योंकि कभी गंभीरता से समस्या का समाधान करने के लिए प्रयास नहीं किए गए. 20 करोड़ के स्टॉर्म वॉटर ड्रेनेज सिस्टम को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया, उधर सैकड़ों करोड़ के एसटीपी प्रोजेक्ट का बंटाधार हो गया. 

जानें रीवा में कब कब बाढ़ ने मचाई तबाही, रीवा में आई बाढ़ की तस्वीरें देखने के लिए इधर क्लिक करें 

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