RewaRiyasat की खबर का असर: ओलम्पिक मेडलिस्ट सीता साहू को DM ने दी 10 हाज़र की सहायता राशि, दुकान और घर भी मिलेगा
रीवा की ओलम्पिक मेडलिस्ट सीता साहू ने देश को एथेंस ओलंपिक्स में 2 ब्रॉन्ज मेडल लाकर दिए थे, लेकिन उनकी परिवार की माली हालत इतनी ख़राब थी के एथिलीट को घर चलाने के लिए समोसा बेचना पड़ता था
रीवा की ओलंपिक मेडलिस्ट सीता साहू: RewaRiyasat.com की आवाज आखिरकार प्रशासन तक पहुंच गई. साल 2011 में आयोजित हुए एथेंस पैरा-ओलंपिक्स गेम्स में देश के लिए 2 ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली सीता साहू को कलेक्टर मनोज पुष्प ने सहायता के राशि के रूप में 10 हाज़र रुपए दिए हैं. इतना ही नहीं सीता साहू और उनके परिवार को रीवा प्रशासन ने घर और दुकान का बंदोबस्त कराने का भी वादा किया है. दुर्भाग्य और सरकार की नज़रअंदाजी के चलते सीता इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने के बाद अच्छा जीवन जीने की मोहताज थीं, जबकि देश के अन्य ओलम्पिक मेडलिस्ट को सरकारी नौकरी, पैसे, शोहरत सबकुछ मिला है.
सीता साहू पूरे देश में 'समोसा बेचने वाली ओलम्पिक गर्ल' के नाम से जानी जाती हैं, जाहिर है ओलंपिक्स में 2 मैडल जीतने वाली एथिलीट के लिए यह टाइटल बिलकुल सूट नहीं करता है. साल 2011 में एथिलीट सीता साहू ने 200 और 1600 मीटर की रेस में पार्टिसिपेट किया था जिसमे उन्होंने दोनों गेम्स में स्थान हासिल किया और उन्हें 2-2 ब्रॉन्ज मेडल मिले।
जब सीता साहू अपनी उपलब्धि लेकर वापस भारत लौंटी तो उनके लिए सरकार ने कई घोषणाएं की लेकिन सीता को वो सब कभी नहीं मिला जो एक ओलम्पिक मेडलिस्ट को मिलता है. बीते 11 वर्षों से सीता साहू अपने परिवार को चलाने के लिए समोसे और पानीपुरी बेचने का काम करती थीं. इतनी बड़ी सफलता मिलने के बाद भी उनके जीवन से संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ था. लेकिन जब RewaRiyasat.com द्वारा 13 अप्रैल 2022 को "ओलम्पिक में देश को दो मेडल जिताने वाली रीवा की सीता साहू परिवार चलाने के लिए समोसे बेचती हैं" वाले टाइटल से सीता साहू की कहानी प्रकाशित की गई तो प्रशासन ने इस मामले को अपने संज्ञान में लिया और उन्हें रीवा कलेक्टर मनोज पुष्प द्वारा 10 हाज़र रुपए की आर्थिक सहायता और आवास सहित दुकान देने का आश्वासन दिया गया।
रीवारियासत की आवाज से जागा प्रशासन
रीवा की ओलम्पिक गर्ल सीता साहू के पिता के गुजरने के बाद बीते 11 सालों से वह अपने परिवार के साथ घर चलाने के लिए समोसा और पानीपुरी बेचने का काम करती थीं. मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से उन्हें वो हक़ नहीं मिला था जिसे पाने की वो हक़दार थीं. सीता साहू ने देश का नाम ऊंचा किया और दो-दो मेडल जीते और बदले में उन्हें मिला तो सिर्फ संघर्ष। रीवारियासत ने जब सीता साहू के मुद्दे को उठया तो प्रशासन की नींद खुली और अब जाकर सीता वो वो सब मिल रहा है जो सालों पहले मिल जाना चाहिए था. खैर देर आए दुरुस्त आए वाली कहावत यहां फिट बैठती है।
सीता साहू को पूरे देश में 'समोसा बेचनी वाली ओलम्पिक गर्ल' टाइटल से नहीं एथिलीट सीता साहू के नाम से पुकारा जाना चाहिए'
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