कमिश्नर अशोक भार्गव को बदला, नए IAS अधिकारियों की जमावट के बाद बराबर में आया SATNA और REWA
सतना(SATNA). प्रदेश सरकार ने IAS अधिकारियों की नई सूची भी जारी कर दी। इसमें रीवा संभाग के संभागायुक्त डॉ अशोक भार्गव के स्थान पर 2004 बैच के राजेश कुमार जैन को लाया गया है। वहीं रीवा (REWA) कलेक्टर को बदलकर रीवा की नई जिम्मेदारी इलैया राजा टी को दी गई है।
बुधवार को जारी एक और तबादला सूची में नये निगमायुक्त रीवा 2016 बैच के मृणाल मीना बनाए गए हैं। हालांकि जिपं सीईओ अर्पित वर्मा जिपं सीईओ का तबादला शहडोल अपर कलेक्टर के रूप में होने के बाद अभी यह पद रिक्त है। लेकिन इस प्रशासनिक सर्जरी के बाद अब सतना और रीवा के जनप्रतिनिधियों में सीधे मुकाबले की घड़ी आ गई है। मामला सीधे तौर पर रीवा और सतना के विकास से जुड़ा है।
पहली बार चार आईएएस एक साथसतना जिले में इस समय जिले के तीन आला अधिकारी डायरेक्ट आईएएस हैं। कलेक्टर अजय कटेसरिया कलेक्टर, जिपं सीईओ ऋजु बाफना और निगमायुक्त अमनवीर सिंह। वहीं बतौर एसडीएम नागौद उचेहरा के एसडीएम दिव्यांक सिंह भी आईएएस ही हैं। अब बात आती है मुकाबले की तो वह विकास के चक्र को आगे बढ़ाते हुए दोनों जिलों को पहचान देने की है।
जनता के सामने अब यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या दोनों जिलों के जनप्रतिनिधि इन अधिकारियों का मुकाबला निचले स्तर पर अपनी जमावट (तबादले पदभार) तक सीमित रहकर अपनी जमावट पर फोकस करेंगे या फिर इन अधिकारियों का उपयोग वे अपने-अपने जिलों के विकास में करेंगे। रीवा में हाल ही में अतिक्रमण पर सख्त रुख दिखा कर राजेन्द्र शुक्ला ने विकास के लिए अपने मजबूत इरादे और ठोस निर्णय का उदाहरण दे दिया है।
सतना जिले की अगर बात करें तो सतना जिले का सीधा मुकाबला रीवा के राजेन्द्र शुक्ला से माना जा रहा है। रीवा में अकेले राजेन्द्र शुक्ला को विकास के ब्लू प्रिंट के रूप में देखा जा रहा है तो सतना में सांसद गणेश सिंह के साथ अनुभवी जनप्रतिनिधियों में नागेन्द्र सिंह सहित युवा तुर्क विक्रम सिंह और खिलाड़ी माने जाने वाले नारायण त्रिपाठी भाजपा से हैं। अर्थात सतना के चार जनप्रतिनिधियों का सीधा मुकाबला रीवा के एक जनप्रतिनिधि से है।
यह है दांव परएक दौर था जब सतना रीवा से काफी आगे माना जाता था लेकिन आज की स्थिति में रीवा की स्थिति सतना से काफी मजबूत है। लेकिन अभी भी सतना की झोली में स्मार्ट सिटी है जिससे अभी रीवा वंचित है। वहीं सतना में विकास और विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। मसलन सतना जिले के जनप्रतिनिधियों के बड़े चैलेंज के रूप में देखे तो क्या जनप्रतिनिधि सतना शहर के विकास को नाली सड़क तक ही सीमित रखना चाहेंगे या सतना को एक नई पहचान देने वाले ब्लू प्रिंट को जमीन पर शीघ्रता से उतार सकेंगे। मेडिकल कालेज की कछुआ चाल को नई गति दिलवाने में अधिकारियों का सदुपयोग कर सकेंगे।
सतना से लगे उचेहरा कस्बों को नये तरह का शहर बनाने में रीवा की तर्ज पर कठोर निर्णय लेने का साहस दिखा सकेंगे या वहीं राजनीतिक गोटियों में इसे उसे बचाने के नाम पर शतरंजी बिसात के घोड़े दौडाएंगे। दशकों से कुछ किलोमीटर तक सीमित सतना शहर का सीमा विस्तार करते हुए कुछ नये प्रोजेक्ट लाने की सफलतना के साथ अधूरे पड़े प्रोजेक्टों को पूरा करवा कर रीवा के मुकाबले में सतना को लाने का साहस दिखा पाएंगे या फिर इस बार भी वहीं पुरानी कहानी न दिखने वाला राग अलापा जाएगा।अकेले स्मार्ट सिटी सतना के जनप्रतिनिधियों को दिला सकती है जीत सतना की जनता अघोषित तौर पर रीवा से सतना को मुकाबले में रखती है और इसका ठीकरा या श्रेय जनप्रतिनिधियों को देती है। हालांकि सतना को नई पहचान देने के लिये स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट है। अगर जनप्रतिनिधि इन्ही प्रोजेक्टों को पूरा कराने में ताकत लगा दें और इसे शीघ्रता से धरातल पर उतार दें तो एक झटके में सतना अपने आप रीवा से आगे हो जाएगा। लेकिन उन्हें राजेन्द्र शुक्ल की तरह विकास के नए ब्लू प्रिंट के लिये पूरी संजीदगी सकारात्मक रूप से दिखानी होगी।
सीमेन्ट म्यूजियम जहां एशिया में सतना को पहचान देगा तो लेक नेक्टर और बघेलखंड आर्ट एंड क्राफ्ट सेंटर सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर का इन डोर चार मंजिला स्टेडियम देश में सतना को नई पहचान देगा। इसके अलावा भी कई प्रोजेक्ट जनप्रतिनिधि चाहे तो केन्द्र से लाने में अपनी क्षमता इन अधिकारियों के कंधे का उपयोग करते हुए दिखा सकते है। लेकिन उन्हें दो जून की रोटी वाले 70 के दशक से बाहर निकलकर विकास की दौड़ को उत्सुक न्यु सतना के सपने पूरे करने होंगे। थोड़ी सी ठसक उन्हें अपनी भूलनी होगी तो कुछ कदम अधिकारियों को भी आगे बढ़ने से ही सतना का विकास चक्र आगे बढ़ सकेगा।
रामपथ क्या फिर कागजों तक ही रहेगासबसे बड़ा सवाल भाजपा के जनप्रतिनिधियों के लिये रामवन गमन पथ का प्रोजेक्ट है। पहले भाजपा राज में इसका गाना तो खूब गाया गया लेकिन यह अस्तित्व में नहीं आ सका। लेकिन इसके बाद कांग्रेस शासन आने पर इस दिशा में काफी तेजी पकड़ी और बड़ा बजट घोषित करते हुए तमाम घोषणाएं की गई। इससे पहले इसकी कसौटी पर कांग्रेस कसी जाती की अब भाजपा का शासन आ गया है। ऐसे में राम वन गमन पथ के प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने का जिम्मा भाजपा के जनप्रतिनिधियों पर भी आ गया है।
चित्रकूट में भू-माफिया को संरक्षण या मिनी स्मार्ट सिटीचित्रकूट धर्म नगरी होने के साथ सतना जिले की पहचान है। लेकिन इस नगरी की दूसरी पहचान यहां व्यापक तौर पर सरकारी जमीनों में अतिक्रमण और गायब होती सरकारी जमीन अर्थात जमीन के बड़े खेल हैं। लाखों लाख श्रद्धालुओं का केन्द्र चित्रकूट क्या मिनी स्मार्ट सिटी के तौर पर नजर आ सकेगा या नहीं या फिर कांग्रेस जनप्रतिनिधि पर विकास न होने देने का कलंक मढ़ने के लिये भाजपा इसे नजरअंदाज करेगी यह भी बड़ा सवाल होगा।सपनों को कागजों से वास्तविकता पर उतारने की कसौटीजिले की तीन आला अधिकारी आईएएस हैं और इनका उपयोग अभी तक तो जनप्रतिनिधि कुछ बड़े तौर पर कर सकें हैं हाल फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। पद और प्रभाव की नूराकुश्ती में विकास प्रभावित हो रहा है तो नेता छोटे छोटे तबादले कार्रवाई और शिकायतों में उलझे नजर आ रहे हैं। जबकि सतना में कोई भी बड़े प्रोजेक्ट को लाने और उसे पूरा कराने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण होती है। अब जनप्रतिनिधियों को तय करना होगा कि वे सकारात्मकता के साथ कितना आगे बढ़ पाते हैं या फिर रीवा अपनी नई जमावट के साथ एक बार फिर आगे निकल जाता है यह यक्ष प्रश्न है।
यह कहा था केके खरे नेजनता के कलेक्टर माने जाने वाले तत्कालीन कलेक्टर केके खरे ने अपनी विदाई के वक्त कहा था कि सतना में विकास की अपार संभावनाएं है लेकिन यहां के जनप्रतिनिधियों में आपसी एकता नहीं है। इनकी ज्यादा शक्ति एक दूसरे को नीचा दिखाने में खर्च हो जाती है या फिर अधिकारियों पर अपना पावर दिखाने में। ऐसा नहीं है कि इनकी अपनी क्षमता नहीं है लेकिन वे विकास के सपने कागजों और अखबारों में ज्यादा दिखाते हैं। उन्होंने भोपाल में तैयार किए गए सतना विकास की विस्तृत योजना का जिक्र भी किया था कि अगर इसी को गंभीरता से जनप्रतिनिधि ले लेंगे तो सतना अपने आप आगे निकल जाएगा। तत्कालीन कलेक्टर संतोष मिश्रा ने भी लगभग यही बात दोहराई थी और इस पर अफसोस जताया था कि सतना जिले की वाइट टाइगर सफारी होने के बाद भी सतना को इसकी पहचान नहीं मिल सकी। वे बेला में वाइट टाइगर सफारी और सतना को लेकर एक भव्य प्रवेश द्वार बनाने की इच्छा रखते थे लेकिन पूरा नहीं कर सके। तत्कालीन कलेक्टर नरेश पाल ने वाइट टाइगर सफारी को सतना की पहचान देने रेलवे स्टेशन सहित सतना में इस पहचान के लिए प्रयास तो किये ने कलेक्टर हाल और कक्ष में पोस्टर लगाने तक ही रह पाए।
अब भी वक्त है इस तरह की तमाम पहचान को वास्तव में सतना की पहचान बना सकें। चित्रकूट आज भी उत्तर प्रदेश के रूप में बाहर पहचाना जाता है इस दिशा में भी कलेक्टर संतोष मिश्रा ने प्रयास किए थे। तत्कालीन कलेक्टर मनीष रस्तोगी भी गुप्त गोदावरी से निर्माण की शुरुआत कर एक पहचान देने की अधूरी कोशिश किए थे। अब ये जिम्मेदारी वर्तमान जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की है।[signoff]