जन्म लेते ही आ जाते हैं 5 तरह के ऋण, इनको न चुकाने पर ऐसे बढ़ता है कर्ज, आती है कई परेशानियां

इंसान जन्म लेने के बाद 5 तरह के ऋण से घिर जाता है।

Update: 2022-02-03 05:52 GMT

इंसान जन्म लेने के बाद 5 तरह के ऋण से घिर जाता है। वैसे तो जीवन में अपनी आवाश्यकता के अनुसार हम और आप बैंक या साहूकार से ऋण लेते हैं। जिसे समय से न चुकाया जाय तो यह कर्ज बढ़ता ही जाता है। लेकिन क्या आपको पता है इंसान के जन्म लेते ही उस पर 5 तरह के ऋण आ जाते है। जो व्यक्ति इन ऋणों को नहीं चुकाता उसे भौतिक जीवन में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। वहीं मृत्यु के बाद भी यह ऋण समाप्त नहीं होते हैं। इन्हे अगले जन्म या फिर नर्क में रहकर चुकाना पड़ता है।

कौन से हैं वह 5 ऋण

हमारे शास्त्रों में 5 तरह के ऋण बताए गये हैं, जो जीव के जन्म लेते ही उस पर आ जाते हैं। इसमें मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण और मनुष्य ऋण शामिल है। शास्त्रों में बताया गया है कि जो मनुष्य इन ऋणों को नहीं उतारता उसे कई प्रकार के दुखों का सामना करना पड़ता है। आइये जाने कैसे उतारे यह ऋण।

1-ः क्या है मातृ ऋण

मातृ ऋण के सम्बंध में बताया गया है यह सबसे बड़ा ऋण होता है। जीव मां के गर्भ से पैदा होता। 9 माह तक मां अपने गर्भ मे रखकर आपने हिस्से का भोजन भी जीव को करवाती है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार आप पर मातृऋण आ जाता है।

ऐसे उतारे मातृ ऋण

  1. कहा गया है कि माता की निःस्वार्थ भाव से सेवा करने से मातृ ऋण समाप्त हो जाता है।
  2. अगर आपकी पत्नी पुत्री को जन्म देती हैं तो आप मातृ ऋण से मुक्त हो सकते हैं।
  3. वृद्ध महिलआें की सेवा करने से भी व्यक्ति मातृ ऋण से मुक्त हो सकता है।

2 -ः क्या है पितृ ऋण

पितृ ऋण के सम्बंध में बताया गया है कि जीव को पृथ्वी में लाने का श्रेय माता तथा पिता दोनो को होता है। लेकिन पुत्र के जन्म लेने से उस पर पितृ ऋण आ जाता है। यह ऋण पुत्रियों पर नही होता है।

ऐसे चुकाएं पितृ ऋण

  1. पितृ ऋण चुकाने के लिए पुत्र को अपने पिता की जीवन पर्यंत सेवा करनी चाहिए।
  2. साथ में पुत्र अगर अपने वंश को बढ़ाते हुए पुत्र पैदा करता है तो वह मातृ ऋण से मुक्त हो जाता है।
  3. साथ में कहा गया है कि पिता तथा माता की मृत्यु के बाद उनके श्राद्ध कर्म विधि विधान से करने पर ही पुत्र को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

3- क्या है देव ऋण

देवी-देवताओं के आर्शीवाद से जीव का जन्म होता है। ऐसे में जीव पर देव ऋण होता है। साथ ही जीवन का निर्वहन भी देवताओं की कृपा से होता है।

ऐसे चुकाएं ऋण

  1. कहा गया है कि अगर जीव भगवान की सेवा पूजा करता है तो उसे देव ऋण से मुक्ति मिलती है।
  2. देव ऋण से मुक्ति के लिए अपने कुल देवता की पूजा करनी चाहिए।

4-ः क्या है ऋषि ऋण

हम जिस कुल में पैदा होते हैं उस कुल का नाम किसी न किसी ऋषि के नाम पर होता है। ऐसे में हमारे उपर ऋषि ऋण हो जाता है। इसे भी जीवन पाने के बाद चुकाना आवश्यक होता है।

ऐसे चुकाएं ऋषि ऋण

  1. ऋषि ऋण चुकाने के लिए जब भी हम तर्पण आदि का कार्य करें तो पितरों को जल देने के पहले ऋषियों को जल देना चाहिए।
  2. कहा गया है कि हर पूजा अनुष्ठान में अपने गोत्र का उच्चारण अवश्य करना चाहिए। इससे ऋषि प्रसन्न होते हैं।
  3. कहा गया है कि अगर कोई अपना उपनाम बदल देता है तो उसका कई बार गोत्र भी बदल जाता है। ऐसा करने परहेज करना चाहिए। फिर   दूसरे  गोत्र का उच्चारण करने से जल उस ऋषि को प्राप्त नही होता।

5-ः क्या है मनुष्य ऋण

मानव जन्म लेने के बाद उसका पालन-पोषण परिवार के साथ समाज में होता है। कई रिस्तेदार, मित्र तथा अन्य सम्बंधी अपना योगदान देते है। जिस स्थान में उसका जन्म होता है वहां पलता बढ़ता है वहां का जल, वायु ग्रहण करता है। ऐसे में यह मनुष्य ऋण के रूप में जीव पर आ जाता है।

ऐसे चुकाएं मनुष्य ऋण

  1. कहा गया है कि मनुष्य ऋण चुकाना ज्याद कठिन नहीं होता है। इसके लिए केवल जन्म स्थान का सदैव सम्मान करें, उस स्थान के विकास के   लिए सदैव प्रयास करें।
  2. परिवार तथा गांव के लोगों तथा रिस्तेदारों का यथा सम्भव सहोग कर जीव मनुष्य ऋण चुका सकता है।

नोट-ः उक्त समाचार में दी गई जानकारी सूचना मात्र है। रीवा रियासत समाचार इसकी पुष्टि नहीं करता है। दी गई जानकारी प्रचलित मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।

Tags:    

Similar News