एमपी: शिक्षाकर्मी घोटाले में सतना जनपद पंचायत के CEO को सजा, फैसला सुनते ही सीने में उठा दर्द, अस्पताल में भर्ती
MP Satna News: सतना के सोहावल जनपद पंचायत के तत्कालीन सीईओं को कोर्ट ने सुनाई सजा
सतना। एमपी में शिक्षाकर्मी घोटाला सुर्खियों में रहा है। उसी के तहत सतना जिले के सोहावल जनपद पंचायत में शिक्षाकर्मी की भर्ती में हुई गड़बड़ी मामले की सुनवाई करते हुए विद्रवान न्यायाधीश ने तत्कालीन सीईओ अनिल कुमार तिवारी पिता एमपी तिवारी निवासी खरहरी थाना सेमरिया जिला रीवा को दोषी पाया है। जिस पर सीईओं को 5 वर्ष की सजा एवं 27 हजार रूपये जुरमाना मुकर्रर किया है।
सजा सुनते ही उठा सीने में उठा दर्द
शिक्षाकर्मी भर्ती में दर्ज भ्रष्टाचार निवारण मामले में सुनाई गई सजा को सुनते ही पूर्व सीईओ अनिल कुमार को सीने में दर्द हो गया। जिसके चलते उन्हे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। जहां पुलिस की निगरानी में उनका ईलाज चल रहा है।
यह था मामला
मीडिया प्रभारी हरि कृष्ण त्रिपाठी ने बताया कि मप्र स्कूल शिक्षा विभाग मंत्रालय के आदेश दिनांक 24/01/1998 के पालन में शिक्षाकर्मियों की भर्ती अलग-अलग जिलों में 1998 में प्रारंभ की गई थी। जिसके तारतम्य में सतना जिले की अलग-अलग जनपद पंचायतों में शिक्षाकर्मियों की भर्ती प्रक्रिया दिनांक 25/05/1998 को प्रारंभ की गई थी। जनपद पंचायत सोहावल जिला सतना में कुल 209 पदों पर शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी।
लोकायुक्त ने की थी एफआईआर
जानकारी के तहत शिक्षाकर्मी की हुई भर्ती में व्यापक अनियमितता किए जाने की शिकायत की जांच के बाद लोकायुक्त ने सतना जिले के सोहावल सहित अमरपाटन, रामपुर बघेलान, मझिगंवा जनपद में अलग-अलग मामले दर्ज किए गए थें।
जिसमें से सोहावल जनपद पंचायत में 194 पदों पर भर्ती की गई थी, जबकि 14 पद सतना के अधिकारी के द्वारा अलग से जोड़ा गया था। आरोप है कि इसका न तो कोई विज्ञापन प्रकाशित किया गया और न ही नियमों का पालन किया गया। अधिकारियों ने अपने चहेतों तथा रिश्तेदारों की मनमानी पूर्वक भर्ती किए, जो कि मध्यप्रदेश पंचायत शिक्षाकर्मी भर्ती शर्त और नियमों का उल्लघन करके भर्ती की गई।
8 लोगों के खिलाफ दर्ज था मामला
शिक्षा कर्मियों की भर्ती में हुए इस घोटाले में सोहावल जनपद के तत्कालीन सीईओ अनिल कुमार तिवारी, तत्कालीन बीईओ सूर्यबली त्रिपाठी और अन्य 8 लोगों के विरूद्ध धारा 420, 120बी, 467, 468, 471 भादवि एवं धारा 13 (1) डी, 13 (2) का आरोप प्रमाणित पाए जाने पर 28 अक्टूबर 2006 को अभियोग पत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। इस मामले में 16 वर्ष तक चले विचारण के दौरान तत्कालीन बीईओ सूर्यबली त्रिपाठी सहित 3 आरोपियों की मौत हो चुकी है।