रीवा: लाखों का भ्रष्टाचार करने वाले इंजीनियर की पेंशन से की जा रही वसूली, आर्थिक नुकसान पहुंचाने का आरोप
रीवा (विपिन तिवारी की रिपोर्ट) : प्रदेश सरकार की स्वीकृति मिल जाने के बाद जलसंसाधन विभाग में भ्रष्टाचार करने वाले कई इंजीनियर जो सेवानिवृत्त हो गए हैं। ऐसे इंजीनियरों की पेंशन से भ्रष्टाचार की राशि वसूली करने की प्रक्रिया तेजी से शुरू कर दी गई है। हाल ही में प्रदेश सरकार की कैबिनेट से स्वीकृति मिलने पर गंगा कछार रीवा के मुख्य अभियंता कार्यालय के अधीन रहे रिटायर्ड इंजीनियर की पेंशन से वसूली के आदेश जारी किए गए हैं।
आरोप है कि 61 लाख रुपए का भुगतान अतिरिक्त कर दिया गया। जिससे शासन को बड़ी आर्थिक क्षति पहुंची है। बताया गया है कि महान नहर संभाग सीधी में किए गए कार्यों को लेकर मेसर्स हाइड्रोमिलर के पक्ष में अंतिम देयक 20.84 लाख रुपए का था। जिसके बाद 40.21 लाख रुपए का अतिरिक्त काल्पनिक आधार पर बिल तैयार कराकर भुगतान कर दिया।
यह वर्ष 2009 का मामला है। इस भुगतान को विभाग ने संज्ञान लिया और हुई तो पता चला कि 61.05 लाख रुपए का शासन को आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है। विभाग ने विस्तार से जांच करने के बाद कार्रवाई के लिए शासन को मामला भेजा था। जहां पर लंबे समय से फाइल लंबित थी।
इस दौरान फर्जी रूप से भुगतान करने वाले तत्कालीन कार्यपालन यंत्री तिवारी सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। जिनके स्वत्वों का भुगतान भी हो चुका है। ऐसे में पेंशन की राशि से कटौती करने का प्रस्ताव दिया गया था। जिसे बीते 28 जुलाई को हुई प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक ने भी अनुमति दे दी है। इस कारण अब आदेश जारी किया गया है कि न्यूनतम देय पेंशन को छोड़कर पूरी पेंशन वापस की जाती है।
फर्जी भुगतान का मामला सामने आने के बाद जलसंसाधन विभाग ने तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जेके तिवारी(सेवानिवृत्त), उपयंत्री आरके खरे(सेवानिवृत्त), एसडीओ एसएन गर्ग, उपयंत्री राजेन्द्र सिंह, एसपी चक्रवर्ती, सहायक वर्ग दो आरएस विश्वकर्मा आदि के विरुद्ध जांच कराई थी। जिसमें सभी की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। जेके तिवारी कार्यपालन यंत्री थे इसलिए उनकी पेंशन से राशि वसूली का आदेश जारी हो गया है। बताया जा रहा है कि अन्य अधिकारियों की किस तरह से भूमिका रही है उसके अनुसार उन पर कार्रवाई तय होगी।
- विभागीय जांच को लंबे समय तक टालने का आरोप
जलसंसाधन के अवर सचिव द्वारा जारी किए गए आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि करीब दस वर्ष से अधिक का समय जांच प्रक्रिया के पूरा होने में लग गए। इसमें कई बार तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जेके तिवारी अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए अनावश्यक दस्तावेजों की मांग करते रहे जिससे प्रक्रिया बढ़ती चली गई। कुछ समय के लिए कोर्ट से भी विभागीय जांच पर स्थगन ले रखा था। आखिरकर भ्रष्टाचार साबित होने पर विभाग ने पेंशन से वसूली करने का आदेश जारी किया है।