जल है तो कल है, विद्वानों ने संगोष्ठी में बताई जल की महत्ता : REWA NEWS
रीवा। शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय रीवा के समाज कार्य विभाग द्वारा विश्व जल दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रभारी प्राचार्य प्रोफेसर शालिनी दुबे के द्वारा की गई। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहीं प्रभारी प्राचार्य प्रोफेसर शालिनी दुबे ने जल के महत्व को निरूपित करते हुए कहा कि विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है। साथ ही हमें जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। यह समय की मांग है। ब्राजील में रियो डी जेनेरियो में वर्ष 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में विश्व जल दिवस मनाने की पहल की गई तथा वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने सामान्य सभा के द्वारा निर्णय लेकर इस दिन को वार्षिक कार्यक्रम के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों के बीच में जल संरक्षण का महत्व, साफ पीने योग्य जल का महत्व आदि बताना है। इस संगोष्ठी का भी मुख्य उद्देश्य यही है कि लोग जल का संरक्षण करें, क्योंकि जल के बिना जीवन नहीं है।
रीवा। शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय रीवा के समाज कार्य विभाग द्वारा विश्व जल दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रभारी प्राचार्य प्रोफेसर शालिनी दुबे के द्वारा की गई। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहीं प्रभारी प्राचार्य प्रोफेसर शालिनी दुबे ने जल के महत्व को निरूपित करते हुए कहा कि विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है। साथ ही हमें जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। यह समय की मांग है। ब्राजील में रियो डी जेनेरियो में वर्ष 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में विश्व जल दिवस मनाने की पहल की गई तथा वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने सामान्य सभा के द्वारा निर्णय लेकर इस दिन को वार्षिक कार्यक्रम के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों के बीच में जल संरक्षण का महत्व, साफ पीने योग्य जल का महत्व आदि बताना है। इस संगोष्ठी का भी मुख्य उद्देश्य यही है कि लोग जल का संरक्षण करें, क्योंकि जल के बिना जीवन नहीं है।
संगोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर अखिलेश शुक्ल ने संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि जल संस्कृति जीवन का मूलाधार है। भारतीय संस्कृति में जल का महत्व हमेशा से रहा है। खुद प्यासे रहकर दूसरों को पानी पिलाना सबसे बड़ा पुण्य निरूपित किया गया है। पानी जीवन का अभिन्न अंग है और इसके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। अन्न के बिना तो कुछ दिन जीवित रहा जा सकता है लेकिन पानी के बगैर ऐसा संभव नहीं हैं। हमारे समाज में प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम माना जाता रहा है।
जीवन चाहिए तो जल और वृक्ष को संरक्षित करना होगा
प्रोफेसर रामेश्वर पांडे ने जल और वृक्ष दोनों को जीवन के लिए अति आवश्यक निरूपित किया और कहा कि यदि मनुष्य को जीवन चाहिए तो उसे जल और वृक्ष दोनों का संरक्षण करना पड़ेगा। प्रोफ़ेसर अच्युत पांडे ने कहा कि किसी भी पूजा से पहले कलश स्थापना की बात हो या कलश यात्रा की। इस कलश में समस्त नदियों के जल को साक्षी भाव से आमंत्रित किया जाता है। हमारी संस्कृति की यह विशेषता रही है कि हमारे पूर्वजों ने कर्मों को पाप और पुण्य के बन्धन से बांधकर रखा। इसी कड़ी में प्यासे को पानी पिलाना सदियों से पुण्य का काम माना जाता रहा है। इस मौके पर काॅलेज के छात्र-छात्रा उपस्थित रहे।