रीवा: गरीब बुजुर्गों और भिखारियों का कौन ? खुला आसमान और फैलाया हुआ हांथ, प्रशासन क्यों नहीं देता ध्यान...
रीवा: गरीब बुजुर्गों और भिखारियों का कौन ? खुला आसमान और फैलाया हुआ हांथ, प्रशासन क्यों नहीं देता ध्यान...रीवा। सरकारें राम राज की
रीवा: गरीब बुजुर्गों और भिखारियों का कौन ? खुला आसमान और फैलाया हुआ हांथ, प्रशासन क्यों नहीं देता ध्यान…
रीवा। सरकारें राम राज की बातें करती हैं। प्रशासन उनके हां में हां मिलाता है। जमीनी स्तर पर तो सरकार की योजनाएं अपना जमीर खोजती हुई दिखती हैं। इसी राम राज का ताजा उदाहरण इंदौर में दिखा, जिसे देश क्या विदेशों में भी देखा गया। स्वच्छता में फस्ट आने के लिए गरीबों को शहर से निकालकर बाहर हाइवे पर छोड़ दिया गया।
वही जब इस घटना का कवरेज मीडिया ने किया तो प्रशासन के आला अधिकारियों को लगा कि यह तो गलत हो गया है। कुछ कार्रवाई की गई, कइयों को निलंबित कर दिया गया। पूरा प्रदेश इस घटना से वाकिव हुआ। उसके बाद भी आज भी प्रदेश के कई शहरों में आज भी गरीब बुजुर्ग और भिखारियों का कोई नही है। उनके हिस्से में तो वही खुला आसमान और लोगों के सामने फैलाया हुआ हांथ है। जो मिल गया उसे खा कर पेट भर लिया और जहां मिला वहीं सो गये। इस समय ठंड का सीजन होने से अलाव तथा कुछ कम्बल की आस इन गरीबों को लगी रहती है।
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कई सवाल जिनका उत्तर खोज रहे गरीब
इंदौर में तो सीएम का कड़ा रुख देखकर व्यवस्था बना दी गई। वापस लाने इंदौर का ननि अमला भारी मन से पहुंचा और भेड़ बकरियो की तरह भर लाया गया। लेकिन क्या प्रदेश के अन्य जिलों में गरीब बुजुगों तथा भिखारियों की ओर कोई ध्यान दिया गया। क्या बारी-बारी से हर जिले के प्रशासनिक अधिकारियो के लिए सीएम शिवराज सिंह को आदेश देना पडेगा। होना तो यह चाहिए कि जनहितैसी निर्देश को सभी जिलाधीश एक साथ स्वीकार करें।
रीवा में मंदिर बना आसरा
कभी विध्य की राजधानी रहा रीवा जो जिला मुख्यालय के साथ सम्भागीय मुख्यालय भी हैं। यहां बडी-बडी इमारते हैं। करोडो का रोज व्यापार होता है लेकिन इन गरीबों को इनसे क्या। उन्हे तो बस भगवान का ही सहारा है। मंदिर की चैखट पर अगर किसी तरह बीमार, वृद्ध, गरीब, बेसहारा, अंधा, लूला, लंगडा पहुंच गया तो फिर उसे भोजन के लाले नहीं पडेंगे। रीवा का चाहे कोठी का शिव मंदिर हो, चाहे सांई बाबा का मंदिर या फिर चिरहुला नाथ स्वामी का दरबार। वही किला के माहमृत्युंजय भोलेनाथ सभी ने रीवा के गरीब बुजूर्गों और भिखारियों को आसरा दिया हुआ है।
शहर में और बने मंदिर, गरीबों की चाह
जिन गरीब बुजूर्गों और भिखारियों के पास रहने का ठिकाना नही है वह मंदिर के आसपास ही अपना गुजारा कर लेता है। मंदिर के बाहर बैठे ये लोग शायद भगवान से यहीं कहते होगों की हमारा भिखारी कौम बढ़ रहा है। लेकिन शहर में तो दुकाने, सापिंग मंाल, इमारतें तो बहुत बन रही है लेकिन कोई बड़ा मंदिर नहीं बन रहा है। अगर दो-चार वर्ष में एक बड़ा मंदिर बने तो तभी हमारी भी बात बनेगी।
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