एमपी में मिले परमारकालीन मंदिरों के अवशेष, अपने संरक्षण में लेगा पुरातत्व विभाग

एमपी के जंगलों में परमारकालीन मंदिरों के अवशेष पाए गए हैं। यह मंदिर 12वीं-13वीं शताब्दी के हैं। तकरीबन 900 से 1000 साल पुराने इन मंदिरों को पुरातत्व विभाग अपने संरक्षण में लेने जा रहा है।

Update: 2023-02-08 09:52 GMT

एमपी के जंगलों में परमारकालीन मंदिरों के अवशेष पाए गए हैं। यह मंदिर 12वीं-13वीं शताब्दी के हैं। तकरीबन 900 से 1000 साल पुराने इन मंदिरों को पुरातत्व विभाग अपने संरक्षण में लेने जा रहा है। जिसके लिए पुरातत्व विभाग द्वारा वन विभाग से मंजूरी मांगी गई है। जबकि एक साइट का सर्वे विभाग द्वारा किया जा चुका है।

900 साल पुराने मिले तीन मंदिर

भोपाल के इतिहास में चार मंदिर और जुड़ गए हैं। रातापानी सेंचुरी में 3 मंदिरों के अवशेष परमारकालीन हैं। यह बाड़ी तहसील के नीलगढ़ गांव में आदिवासी बहुल वन ग्राम से लगभग चार किलोमीटर दूर है। बताया गया है कि पुरातत्व विभाग को नीलगढ़ में मंदिर के अवशेष मिलने की सूचना सैय्यद इम्तियाज द्वारा दी गई थी। इस दौरान जब पुरातत्व विभाग की टीम मौके पर पहुंचकर आसपास चार किलोमीटर क्षेत्र में घूमी तो दो और मंदिर के अवशेष पाए गए। टीम में आयुक्त शिल्पा गुप्ता, डाॅ. अहमद अली, डाॅ. वसील खान, जितेंद्र अनंत शामिल थे।

13वीं शताब्दी की हैं ब्रह्मा, विष्णु व महेश की प्रतिमाएं

पहला मंदिर नीलगढ़ के दक्षिण में 500 मीटर दूर है। यह शिव मंदिर 12वीं सदी का बताया गया है। जबकि दूसरा मंदिर इससे करीब एक किलोमीटर दूर धनवानी तक जाने वाले वन मार्ग के उत्तर में है। जिसके अवशेष मध्यकालीन बस्ती के हैं और पंक्तिबद्ध पडे़ हैं। यहां मिले सिरदल में ब्रह्मा, विष्णु व महेश की प्रतिमाएं हैं जो 13वीं शताब्दी की बताई गई हैं। मंदिर के पास एक बावड़ी होने के भी निशान पाए गए हैं। तीसरा मंदिर भी दक्षिण छोर पर है किंतु इसके अवशेष मूल स्वरूप में नहीं हैं। यहां से 50 मीटर दूर कुछ और अवशेष पाए गए हैं जिनमें भगवान गणेश की प्रतिमा मूल स्वरूप में सुरक्षित है। चूंकि यह क्षेत्र वन विभाग के अंतर्गत आता है इसलिए पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिरों को अपने संरक्षण में लेने के लिए वन विभाग से मंजूरी मांगी गई है।

बाजरा मठ निकला सूर्य मंदिर

भोपाल के ग्यारसपुर में जिसे अब तक बाजरा मठ कहते थे वह प्राचीन सूर्य मंदिर निकला। यह मंदिर भी 13वीं शताब्दी के आसपास बना है और कोणार्क के सूर्य मंदिर और खजुराहो के मंदिरों के समकालीन है। इसका भी संरक्षण आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया द्वारा की जाएगी। जिसके लिए पुरातत्वविदों की टीम ने काम भी प्रारंभ कर दिया है। पत्थरों से बने इस मंदिर की ऊंचाई तकरीबन सात मीटर बताई गई है। वर्तमान में यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में है। यहां भगवान सूर्य सात घोड़ों पर सवार हैं। इनके आजू-बाजू गंगा और यमुना हैं। इसके अलावा अन्य देवियों की प्रतिमाएं भी नजर आती हैं। उत्तरायण सूर्य के समय का मंदिर होने के कारण सूर्य की किरणें मंदिर में सीधे प्रवेश करती हैं।

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