Artificial Intelligence Technique: अब आंखें ही बता देंगी आपको कौन सी बीमारी है, इस तरह से शरीर के हर हिस्से का लग जाएगा पता
MP News: अब आंखों के माध्यम से ही शरीर की हर बीमारी का पता लगाया जा सकेगा। एमपी का भोपाल एम्स इस तरह की डिवाइस खरीदने जा रहा है जिससे रेटिना को स्कैन कर बीमारी की जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकेगी।
Artificial Intelligence Technique: अब आंखों के माध्यम से ही शरीर की हर बीमारी का पता लगाया जा सकेगा। एमपी का भोपाल एम्स इस तरह की डिवाइस खरीदने जा रहा है जिससे रेटिना को स्कैन कर बीमारी की जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकेगी। यह सब कृत्रिम बौद्धिकता (एआई) से संभव हो सकेगा। भोपाल एम्स में एआई को लाने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेज दिया गया है। इसके बाद एआई के सेटअप को लगाने पर काम किया जाएगा। इस सेवा के प्रारंभ हो जाने से सीटी स्कैन, एक्सरे की जरूरत में भी कमी आएगी।
हार्ट अटैक की आशंका का भी चल सकेगा पता
भोपाल एम्स प्रबंधन के अनुसार चिकित्सक सही समय पर बीमारियों को चिन्हित कर सकें इसके लिए एआई से ऐसा सिस्टम डेवलप किया गया है। यह साफ्टवेयर के आधार पर ही कार्य करेगा। एआई सिस्टम डायरबेटिक रेटिनोपैथी के अलावा दूसरी चीजों पर भी इनसाइट दे सकता है। इसके अलावा आंख के स्कैन से भी यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति को आगे हार्ट अटैक की आशंका तो नहीं है। इसके साथ ही उसकी बायोलाजिकल सेक्स क्या है, उम्र कितनी है, स्मोकिंग करता है अथवा नहीं इसका भी पता आसानी से चल सकेगा।
तकनीक का यहां हो रहा उपयोग
आंखों में डायबिटिक रेटिनोपैथी के लिए इस तकनीक का उपयोग अभी चेन्नई के शंकर नेत्रालय में किया जा रहा है। गूगल की मदद से इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया जा रहा है। इसका फायदा भी मरीजों को मिल रहा है। इससे प्रेरित होकर इस तनक को भोपाल एम्स में लाने के लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है। भोपाल एम्स में प्रतिदिन रेटिना की अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या तकरीबन 50 रहती है। हर महीने यहां तकरीबन 15सौ ऐसे मरीज पहुंचते हैं जिन्हें रेटिना संबंधित परेशानियां होती हैं।
इनका कहना है
इस संबंध में एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. अजय सिंह का कहना है कि एआई को लाने के लिए कार्य किया जा रहा है। इसको लेकर सरकार के पास प्रस्ताव भी भेज दिया गया है। इसके आने से मरीजों में रोगों की पहचान करना आसान होगी। इस तकनीक का उपयोग अभी कुछ स्थानों पर ही किया जा रहा है। वहां इनके बेहतर रिजल्ट मिल रहे हैं। यही वजह है कि इस तकनीक को एम्स भोपाल में भी प्रारंभ किए जाने की योजना है।