मध्यप्रदेश: आजादी के 7 दशक बाद भी इस गांव से नही दर्ज हुआ कोई मुकदमा, दूसरी बार मिला निर्विवाद का अवार्ड
मध्यप्रदेश: आजादी के 70 दशक बाद भी इस गांव से नही दर्ज हुआ कोई मुकदमा, दूसरी बार मिला निर्विवाद का अवार्ड खरगोन। बढ़ते अपराधो से प्रदेश का कोना-कोना भले ही
मध्यप्रदेश: आजादी के 7 दशक बाद भी इस गांव से नही दर्ज हुआ कोई मुकदमा, दूसरी बार मिला निर्विवाद का अवार्ड
खरगोन। बढ़ते अपराधो से प्रदेश का कोना-कोना भले ही अछूता न हो लेकिन इन सब के बाबजूद प्रदेश के खरगौन जिले का एक ऐसा गांव जिसने दूसरी बार इस लिए अवार्ड प्राप्त किए है कि आजादी के इन 70 वर्षो में कठोरा गांव से कोई अपराध दर्ज नही हुआ है।
यह है वजह
बताते है कि गांव में लड़ाई-झगड़ा होने पर लोग मिल-बैठकर सुलझा लेते हैं। यही वजह है कि गांव निर्विवाद है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े ने शनिवार को ग्रामीणों से ऑनलाइन चर्चा कर जिला न्यायाधीश की मौजूदगी में दूसरी बार निर्विवाद गांव का ई-प्रमाण-पत्र दिया गया। इस गांव को 2002 में भी यह प्रमाण-पत्र मिल चुका है।
भगवान भजन में लगाते है मन
कठोरा गांव के लोगो के लिए ताश व जुआ अपराध माना जाता है। यहां के लोग इस तरह के खेल को गलत मानते हैं। इसके दुष्परिणाम को देखते हुए गांव के लोगों ने ही जुए व ताश को सर्वसम्मति से बैन कर रखा है। समय काटने व मनोरंजन के लिए लोग नर्मदा किनारे बने मंदिर में भजन व कीर्तन करते हैं।
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महिला विवाद को सुलझाती है महिलाएं
गांव की सरपंच नर्मदा यादव कहती हैं कि कठोरा में यादवों की आबादी अधिक है। सब आपस में मिल-बैठकर विवाद या समस्या का निपटारा कर लेते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि महिलाओं से संबंधित मामले महिलाएं ही निपटाती हैं। इसके चलते ही करीब 100 परिवारों के 1200 की आबादी वाले कठोरा गांव को 2002 के बाद देश में दूसरी बार निर्विवाद गांव घोषित किए गया है।
गांधी जी है गांव के आदर्श
इस गांव के लोगो के लिए गांधीजी पूजनीय हैं। उनके आदर्शों पर चलते हैं। अहिंसा सबसे बड़ा हथियार है। यहां के बच्चे-बूढ़े और युवा सभी एक-दूसरे को सीताराम कहकर अभिवादन करते हैं।
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