इंदौर के अवनीश ने रचा इतिहास, जहां स्वस्थ बच्चे नहीं पहुंचते वहां 18200 फीट की ऊंचाई पर दिव्यांग ने लहराया तिरंगा

7 वर्ष के बच्चे अवनीश ने 18200 फीट की ऊंचाई पर पहुंच कर तिरंगा लहराया है।

Update: 2022-04-22 10:09 GMT

Avneesh Tiwari Indore World Record News:  क्या संकल्प इसे ही कहते हैं? हमारे इस प्रश्न का उत्तर आप अवश्य हां में देंगे। क्योंकि अब हम जो बताने वाले हैं उसे पढ़ने के बाद आपको कभी भी किसी से भी संकल्प की परिभाषा पूछने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। हम जा रहे हैं एक ऐसे 7 वर्ष के बच्चे  अवनीश के बारे में जिन्होंने अपनी संकल्प शक्ति के बल पर 18200 फीट की ऊंचाई पर पहुंच कर तिरंगा लहरा दिया। अवनीश को डाउंस सिंड्रोम नामक बीमारी होने से वह दिव्यांग है। फिर भी 7 वर्ष के दिव्यांग अवनीश ने अपने पिता के सहयोग से माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर फतह हासिल कर ली। जहां इस उम्र के आज तक स्वस्थ बच्चे भी नहीं कर पाए हैं।

इंदौर से है अवनीश का नाता है

वर्तमान समय में कुछ वर्षों से मध्यप्रदेश के इंदौर शहर का कालचक्र उसकी बरकत की ओर घूम रहा है। एक ना एक उपलब्धियां हासिल कर आगे बढ़ता इंदौर एक अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि हासिल कर ली है। यह उपलब्धि इंदौर को अवनीश के द्वारा मिली है। आज बच्चे बच्चे की जुबान पर अवनीश का नाम बड़े ही गर्व के साथ लिया जाता है। अवनीश ने किया ही कुछ ऐसा है जिससे उसने इंदौर का नाम रोशन करते हुए मध्य प्रदेश और साथ में देश का नाम ऊंचा किया है।

पिता का मिला भरपूर सहयोग

इंदौर के रहने वाले आदित्य तिवारी के पुत्र अवनीश तिवारी ने माउंट एवरेस्ट जिसकी ऊंचाई 18200 फीट है। वहां तिरंगा लहराया है। हम पहले ही बता चुके हैं कि अवनीश दिव्यांग है फिर भी यह उपलब्धि उन्होंने अपने पिता के उत्साह वर्धन और दृढ़ संकल्प की वजह से हासिल किया है।

अवनीश के पिता आदित्य तिवारी बताते हैं कि उनके पुत्र को डाउंस सिंड्रोम नामक बीमारी है। इस बीमारी की वजह से अवनीश का संपूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो रहा है। इतना कुछ होने के बाद भी वह माउंट एवरेस्ट में चढ़ने का जज्बा दिखाया। जिसका सम्मान करते हुए अवनीश के पिता ने उसका भरपूर सहयोग दिया।

शुरू की गई तैयारी

माउंट एवरेस्ट में चढ़ने के लिए विधिवत तैयारी की गई। जिसमें अवनीश के पिता ने भरपूर सहयोग दिया। उन्होंने अपने पुत्र के साथ माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई में साथ रहे। 70 किलो वजन लेकर माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पर चढ़ना बहुत कठिन कार्य है। सहसा लोग सोचने के बाद ही हिम्मत छोड़ देते हैं। और अपने कदम बढ़ाने से पहले ही पीछे खींच लेते हैं।

माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पर चढ़ने के लिए पिता ने अपने बेटे को स्पेशल ट्रेनिंग दी थी। उसके लिए एक विशेष डाइट प्लान तैयार किया गया था। माउंट एवरेस्ट के वातावरण में रहने के लिए शरीर को अनुकूल बनाने अवनीश अपने पिता के साथ माउंट एवरेस्ट में चढ़ने के पहले गुलमर्ग, सोनमर्ग और पहलगाम जैसे क्षेत्रों में काफी दिनों तक घूमते रहे। जब शरीर मौसम के अनुकूल ढल गया इसके बाद पिता के साथ माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई सफर शुरू कर दिया।

बहुतों का जवाब दे जाती है हिम्मत

माउंट एवरेस्ट में चढ़ने वाले लोगों की अगर माने तो पता चलता है कि इससे पहले इस उम्र के किसी स्वस्थ बच्चे ने भी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई नहीं चढ़ी है। लेकिन अवनीश इस चढ़ाई को सफलता के साथ चढ़ते हुए तिरंगे को लहराना है। अब मध्य प्रदेश ही नहीं देश के सभी युवा अवनीश के सम्मान में उनकी हौसला अफजाई कर रहे हैं।

23 को है वापसी

जानकारी के अनुसार अवनीश का माउंट एवरेस्ट में चढ़ने का सफर 14 अप्रैल से शुरू हुआ। 19 अप्रैल को वाह शिखर पर पहुंच गए। इसके बाद लौटने का क्रम शुरू हुआ। जाता है कि अवनीश तिवारी अपने पिता आदित्य तिवारी के साथ 23 अप्रैल को इंदौर वापस आ रहे हैं। इंदौर के लोग अपने पलक पावडे बिछाए 23 अप्रैल का इंतजार कर रहे हैं जब वह अपने हाथों से इस नन्हे से युवराज का विजय तिलक करेंगे।

अवनीश को है डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी

अवनीश के पिता आदित्य तिवारी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। आदित्य बताते हैं कि अवनीश को डाउंस सिंड्रोम नामक बीमारी है। यह बीमारी हो जाने पर बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास असंतुलित रहता है। लेकिन इस दिव्यांगता के साथ अवनीश और आदित्य ने कोई समझौता नहीं किया बल्कि एक सामान्य बच्चे की तरह वह आगे बढ़ते रहें और आज इस मुकाम पर पहुंच गए है।

बहुत रोचक है अवनीश की कहानी

अविनाश के साथ जुड़ी एक बहुत रोचक बात हम आपको बताना चाहते हैं। आदित्य तिवारी ने अवनीश नामक इस बच्चे को एक अनाथालय से गोद लिया है। अंदाज लगाया जाता है कि अवनीश के बायो लॉजिकल पैरंट्स ने शायद उसकी दिव्यांगता को देखते हुए अनाथालय छोड़ आए थे। जब आदित्य अनाथालय में बच्चा लेने पहुंचे वहां कई बच्चों को देखने के बाद के बात अवनीश के संबंध में कुछ अलग ही महसूस किया। सब कुछ जानते हुए भी आदित्य ने अवनीश को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार किया। और एक संकल्प के साथ अवनीश की परवरिश में लग गए।

कल का वह दिन था जब अवनीश एक अनाथालय में और आज का वह दिन है जब आज अवनीश ने वह कर दिखाया जिसे आमतौर पर पूर्णरूपेण स्वस्थ बच्चे भी नहीं कर पाते। या यह कहें कि करने की बात तो दूर लोग सुनने के साथ ही अपने कदम पीछे कर लेते हैं।

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