'जेल से बाहर आई तो खूंखार बन जाऊंगी'! खुशी दुबे...एक ब्राह्मण लड़की, जिससे खौफ खाती है योगी सरकार
खुशी दुबे एक ऐसी लड़की है, जिसके चलते कई ब्राह्मण आज योगी सरकार से नाराज हैं. लोगो का मानना है उसे जातिगत राजनीति का शिकार बनाया गया है.
कानपुर का बिकरू कांड आपको याद ही होगा? 2 जुलाई 2020 की वो रात जब विकास दुबे और गुर्गों ने 8 पुलिसकर्मियों की बेरहमी से हत्या कर दी थी और सभी आरोपियों को पुलिस ने दो हफ्ते के अंदर चुन चुनकर एनकाउंटर किया था. इसी कांड से एक किरदार निकलकर आता है, जिसका नाम है 'खुशी दुबे'. दरअसल में ख़ुशी, अमर दुबे की पत्नी थी और अमर विकास का खासम ख़ास वाला. जेल जाने के चार दिन पहले ही खुशी की शादी हुई थी.
खुशी को जब जेल भेजा गया तब वह नाबालिक थी. खुशी पर बिकरू में मारे गए 8 पुलिसवालों की हत्या में साजिश रचने, पति अमर दुबे को पुलिस की लोकेशन बताने, कारतूस देने के गंभीर आरोप हैं. 8 जुलाई को पुलिस ने गिरफ्तार किया। एक महीने बाद कानपुर देहात के एंटी डकैती कोर्ट ने फैसला दिया कि घटना के समय वह नाबालिग थी. उस वक्त के एसएसपी दिनेश कुमार ने कहा कि आईपीसी की धारा 169 के तहत खुशी को जेल से छोड़ने का आदेश दे दिया गया है. लेकिन उसे छोड़ा नहीं गया...
खुशी जेल में क्यों है
कोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस ने खुशी को नहीं छोड़ा. वकील शिवाकांत दीक्षित ने पुलिस से पूछा, 'किस आरोप में अब बंद किए हैं?' जवाब नहीं मिला. शिवाकांत ने आरटीआई डाल दी. पता चला कि सितंबर 2020 में खुशी पर हत्या, हत्या का प्रयास, डकैती, साजिश रचने, चोरी की संपत्ति को बेईमानी से लेने, बलवा से जुड़े 17 अन्य धाराओं में केस दर्ज कर लिया गया है.
चुनाव में हावी हो गया खुशी दुबे मुद्दा
खुशी की मां गायत्री देवी मीडिया के सामने आईं. उन्होंने कहा, 'कोर्ट ने धारा 169 के तहत पुलिस को छोड़ने का आदेश दे दिया लेकिन सरकार ने अड़ंगा लगा दिया.' वकील ने कहा, 'खुशी निर्दोष है वह जातिगत राजनीति का शिकार हो गई है.' जातिगत राजनीति शब्द आते ही स्थिति बदल गई. सारी पार्टियां खुशी के घर पनकी रतनपुर पहुंचने लगीं.
ब्राह्मणों का सम्मान बन गई खुशी
12 जून 2021 को आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह खुशी की मां गायत्री के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. उन्होंने कहा, 'योगी हमेशा गरीबों पर अपनी ताकत दिखाते हैं. अगर कोई आवाज उठाता है तो उसे जेल भेज देते हैं.'
21 जनवरी को खुशी की मां गायत्री कहती हैं, 'आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस, बसपा और सपा ने विधानसभा चुनाव लड़ने का ऑफर दिया. पर मैंने मना कर दिया.' मना करने के कारणों का जिक्र करते हुए गायत्री ने कहा, 'हमारी बेटी जेल में है, हम चुनाव कैसे लड़ लें. हमारे पास केस लड़ने तक का पैसा नहीं है. संजय सिंह के सहयोग के लिए आभारी हूं, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में खुशी के लिए विवेक तनखा जैसे बड़े वकील दिए.'
चुनाव लड़ने से मना किया और मुद्दा हो गया ठंडा
कानपुर के पत्रकार नितिन अग्रवाल बताते है, 'खुशी की मां ने जब चुनाव न लड़ने का फैसला किया तभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.' फिर गायत्री देवी ने कहा, 'हमने आज तक सिर्फ और सिर्फ भाजपा को वोट दिया है, हम कहीं भी मंदिर में कसम खा सकते हैं.'
नितिन कहते हैं, 'विपक्षी पार्टियां खुशी दुबे मामले में आक्रामकता चाहती थीं. वे चाहती थीं कि परिवार योगी आदित्यनाथ पर हमलावार हो जिससे मीडिया कवरेज मिले, लेकिन परिवार डिफेंसिव मोड में है. राजनीतिक माइलेज न मिलता देख पार्टियों ने खुद ही किनारा कर लिया.'
'जेल से बाहर आई तो खूंखार बन जाऊंगी'
निर्भया और हाथरस केस में पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा कहती हैं, 'इस सरकार ने अपनी ईगो की वजह से उस बच्ची को जेल में रखा है. उसकी बिकरू कांड में उसकी कोई भूमिका नहीं है.'
सीमा कुशवाहा खुशी दुबे के बारे में एक चौंकाने वाली बात बताती हैं, 'पुलिस-प्रशासन ने कोर्ट में बताया है कि खुशी दुबे ने कहा है कि जेल से बाहर आई तो खूंखार बन जाऊंगी. इसी डर से उसे अंदर रखा गया है.'
आखिरकार चुनाव में उतर आया परिवार
मां ने तो नहीं, लेकिन चुनाव से ठीक 10 दिन पहले खुशी की बड़ी बहन नेहा तिवारी ने कांग्रेस से टिकट ले लिया है. 30 साल की नेहा के पति की एक एक्सीडेंट में मौत हो चुकी है. अब वह कल्याणपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगी.
फिलहाल खुशी जेल में हैं. एक साल पहले वह यूपी की राजनीति में सबसे चर्चित चेहरा थी, लेकिन अब नहीं हैं. पिछले एक महीने से खुशी दुबे नाम कानपुर के बाहर चर्चा में नहीं हुई. ब्राह्मण वोट की राजनीति में अब दूसरे मुद्दे शामिल हो गए हैं.