माँ विंध्यवासिनी ने जन्म के बाद विंध्यांचल को अपना घर बनाया था, देवी माँ का श्री कृष्ण से गहरा नाता है
देवी विंध्यवासिनी भगवान श्री कृष्ण की बहन थीं जिन्होंने जीवनपर्यन्त उनकी रक्षा की
History Of Vindhyavasini Mata: विन्ध्यायंचल की रक्षा करने वाली माँ वसंध्यावासिनी की कृपा हर एक विंध्य के रहने वाले पर बनी रहती है. आज नवरात्री का चौथा शुभ दिन है आज रीवा रियासत आपको विंध्यांचल पर्वत में रहने वाली माँ विंध्यवासिनी के चमत्कारी स्वरुप उनका इतिहास और महत्वता के बारे में बताएगा। देवी विंध्यवासिनी योगमाया माँ दुर्गा का एक परोपकारी स्वरुप हैं, माँ तीन देवियों के स्वरुप को धारण करती हैं माँ के त्रिकोणीय स्वरुप में महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली हैं। माँ विंध्यवासिनी की कृपा आप पर बनी रहे।
कहां है विंध्यवासिनी माँ का मंदिर
उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर जिले से लगभग 8 किलोमीटर दूर विंध्यांचल पर्वत श्रृंखला के बीच में माँ का भव्य मंदिर है। मंदिर के उत्तर दिशा में माँ गंगा बहती हैं। प्रयागराज और बनारस के बीच मौजूद मिर्जापुर में विंध्यांचल तीर्थस्थल है जहाँ माँ विंध्यवासिनी विराजी हैं. यह पवित्र स्थल देश के 51 शक्तिपीठों में से एकलौता ऐसा शक्तिपीठ है जहाँ मंदिर के बगल से गंगा बहती हैं। इस मंदिर की खास बात ये है की मंदिर के 3 किलोमीटर के दायरे में दो और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। जहाँ देवियां विराजमान है।
विंध्यवासिनी का अर्थ क्या है
माँ का नाम विंध्य पर्वत के आधार पर रखा गया है। ऐसा कहा जाता है की जब भारत में हिमालय ने भी अकार नहीं लिया था उसके करोडो साल पहले से विंध्य पर्वत का अस्तित्व है। विंध्यवासिनी का अर्थ है विंध्य में निवास करने वाली। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गाशप्तसती के 11 वे अध्याय में वर्णित एक मान्यता के अनुसार। माँ विंध्यवासिनी से देवताओं ने अनुरोध किया था की वो शुम्भ और निशुम्भ नामक दो असुरों का सर्वनाश करें। तब माँ ने देवताओं को यह आश्वासन दिया था कि जब वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवें युग में शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो महादैत्य उत्पन्न होंगे तब मैं नन्दगोप मर घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लूंगी और गर्भ से अवर्णित होकर विन्द्यांचल में रहूंगी और दोनों असुरों का नाश करुँगी।
श्री कृष्ण की बहन हैं विंध्यवासिनी
गौर करने वाली बात ये है की जब मथुरा के कारागार में देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था तब उसी वक़्त गोकुल में माँ यशोदा को एक पुत्री की प्राप्ति हुई थी। वासुदेव बाल कृष्ण को गोकुल छोड़ आये और उस पुत्री की उठा कर ले गए थे। ये सब कार्य ईश्वर की मंशानुरूप हुआ था। श्री कृष्ण की माँ देवकी के सातवे को योगमाया ने बदल दिया था और रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया था जिससे बलराम का जन्म हुआ था इसके बाद योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया। रात को वासुदेव ने कृष्ण को यशोदा के बगल में सुला दिया और योगमाया को मथुरा ले आये। तब दुष्ट कंस ने योगमाया को देवकी की आंठवी संतान मान कर उन्हें एक चट्टान में पटकने की कोशिश की और तभी योगमाया आकाश में पहुँच गईं। कंस के वध की भविष्यवाणी करने के बाद योगमाया वापस विंध्यांचल में रहने के लिए लौट गईं।