Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष प्रारंभ, आचार्यों की मानें तो तीन ऋणों में पितृ ऋण सर्वोपरि, 5 प्रकार के होते हैं श्राद्ध

Pitru Paksha: पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 29 सितम्बर से प्रारंभ हो गए हैं।

Update: 2023-09-29 09:08 GMT

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पंद्रह दिन की अवधि पितृपक्ष के नाम से जानी जाती है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों पूर्वजों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर तर्पण व श्राद्ध करते हैं। पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 29 सितम्बर से प्रारंभ हो गए हैं। प्रेत और पितर के निमित्त उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध कहलाता है।

माता-पिता की सेवा सबसे बड़ी पूजा

आचार्यों के मुताबिक हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु उपरांत लोग विस्मृत न कर दें इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों को प्राप्त होता है।

तीन तरह के होते हैं ऋण

भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं जिसमें पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण शामिल हैं। इनमें पितृ ऋण सर्वाेपरि माना गया है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया। पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन, कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं, पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं, निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं।

5 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन

यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम से श्राद्ध है। नित्य श्राद्ध प्रतिदिन किए जानें वाले श्राद्ध को कहते हैं। जबकि नैमित्तिक श्राद्ध किसी के निमित्त किया जाता है। काम्य श्राद्ध किसी कामना की पूर्ति के निमित्त किया जाता है। इसी तरह वृद्धि श्राद्ध किसी प्रकार की वृद्धि में जैसे पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाह आदि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता के लिए जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। जबकि पार्वण श्राद्ध पर्व से सम्बन्धित होता है। वहीं सपिण्डन श्राद्ध का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना होता। गोष्ठी श्राद्ध का अर्थ समूह होता है। वहीं शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं। उसे शुद्धयर्थश्राद्ध कहते हैं।

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