Pitru Paksha 2022: गया धाम से 8 गुना अधिक फल देता है यहां पिंडदान करना, ब्रह्मदोष से शिवजी को यहीं से मिली थी मुक्ति
Shradh Paksha: शास्त्रों में एक ऐसा स्थान बताया गया है जहां पिंडदान करने से गयाधाम से 8 गुना ज्यादा पुण्यफल मिलता है।
Pitru Paksha 2022: जीवन में हर व्यक्ति को धार्मिक कार्यों में अवश्य सहयोगी बनना चाहिए। इससे पुण्यफल तो प्राप्त होते ही हैं साथ में हमारे धर्म की धर्मध्वजा बिना किसी बाधा के चारों दिशाओं में लहराती है। इस समय पित्रपक्ष (Pitru Paksha) चल रहा है। अपने पितरों को मोक्ष प्रदान करने के लिए हर पुत्र और परिजन यथासंभव प्रयासरत है। शास्त्रों में एक ऐसा स्थान बताया गया है जहां पिंडदान (Pinddan) करने से गयाधाम (Gayadham) से 8 गुना ज्यादा पुण्यफल मिलता है। आइए जानें वह स्थान कौन सा है।
स्कंदपुराण में है वर्णन
ज्यादातर लोग पितृपक्ष (Pitru Paksha) के समय पितरों का श्राद्ध-तर्पण (Shradh-Tarpan) करने गयाधाम जाते हैं। लेकिन हमारे वेदों में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जहां पिंडदान करने से गयाधाम से 8 गुना अधिक फल प्राप्त होता है। इस स्थान पर पिंडदान करने के पश्चात और कहीं भी पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए इस स्थान (Pinddan Places) के महत्व और महिमा (Importance) के बारे में जानना बहुत आवश्यक है। स्थान का नाम ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) है। इसके बारे में स्कंद पुराण (Skand Puran) में बताया गया है।
ब्रह्म कपाल कहां स्थित है
Brahmakapal Kahan Sthit Hai: ब्रह्मकपाल बद्रीनाथ धाम से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान के पास पवित्र अलकनंदा नदी (Alaknanda River) विद्यमान है। यहां पर एक कुंड विद्वान (Vidwan Kund) है। जहां पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान कर हवन किया जाता है।
अकालमृत्यु आत्मा को मिलती है शांति
Bramhkapal Pinddan Mahatv: ब्रह्माकपाल के बारे में कहा जाता है कि यहां पर एक बार पिंडदान करने के पश्चात कुल के सभी लोगों का उद्धार हो जाता है। अगर किसी की अकालमृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्माशांति के लिए ब्रह्म कपाल में अवश्य पिंडदान करना चाहिए। ऐसा करने से मृतआत्मा को शांति प्राप्त होती है।
शिवजी को यहीं से मिली थी मुक्ति
Shiv Bramhdosh Mukti Bramhkapal Katha: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव शंकर को एक बार ब्रह्मा हत्या लगी थी। तब भगवान भोलेनाथ पृथ्वी में ब्रह्म हत्या से मुक्ति पाने के लिए यही आए हुए थे।
पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा सृष्टि उत्पन्न कर रहे थे उसी समय ब्रह्माजी मां सरस्वती के रूप पर मोहित हो गए थे। ऐसे में नाराज होकर भगवान शिव शंकर ने अपने त्रिशूल से उनका एक सिर काट दिया। ब्रह्महत्या की वजह से यह कटा हुआ सिर भगवान के त्रिशूल से चिपक गया।
शिवजी ने की बद्रीनाथ भगवान की उपासना
Bramhkapal Ka Naam Kaise Pada: कहते हैं भगवान भोलेनाथ जो सभी का कष्ट हरते हैं वह स्वयं ही अपनी इस परेंशानी से मुक्ति नही पा रहे थे। तब भोलेनाथ ने बद्रीनाथ भगवान की उपासना करने लगे। भोलेनाथ की उपासना से जैसे ही श्री बद्रीनाथ विष्णु जी प्रसन्न हुए त्रिशूल से चिपका हुआ सिर दूर जाकर गिर गया।
जिस स्थान पर गिरा वहीं स्थान ब्रह्मकपाल (Bramhkapal) कहलाया। यह एक पवित्र तीर्थ स्थल बन गया। भगवान श्री विष्णु और भोलेनाथ के आर्शीवाद कहा गया है कि जो भी इस पवित्र ब्रह्मकपाल पर श्राद्ध और पिंडदान करेंगे उनके पितरो को मोक्ष मिलेगा।
पांडवों ने भी किया था पिंडदान
Pandavon Ne Pinddan kaha Kiya tha: कई जगह लेख प्राप्त होते हैं कि जब पांडव स्वर्ग पधार रहे थे उस समय पांडवों ने अपने पितरों का तर्पण इसी स्थान पर किया था। पांडवों के इस स्थान पर तर्पण करने से उनके कुल के सभी लोगों का उद्धार हुआ था।