मंत्री विहीन हुआ REWA-SIDHI, जनता में आक्रोश, 15 में से 14 विधायक भाजपा के..
रीवा: मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर 3 महीने से चल रहे कयास समाप्त हो गया आपको बता दे की 101 दिनों के इंतजार के बाद आखिरकार गुरुवार को प्रदेश की राजधानी भोपाल में मंत्रिमंडल गठन हो गया। मंत्रियों ने शपथ भी ले ली और सीएम ने पहली बैठक भी कर ली। लेकिन इस बैठक में भाजपा को सभी सीटें देने वाला रीवा, सीधी सिंगरौली से कोई नेतृत्व करने वाला नहीं रहा। कारण यह कि REWA-SIDHI-SINGRAULI के किसी विधायक को मंत्रिमंडल में जगह ही नहीं दी गई।
जिले के विकास के लिए अब यहां की आवाम को दूसरे जिले के मंत्रियों का मुंह ताकना पड़ेगा। यदि कहा जाय कि विंध्य में किसी कद्दावर नेता को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई तो भी गलत नहीं होगा। आपसी खींचतान के कारण रीवा जिले के हिस्से का मंत्रीपद छिन गया। आज जिले की आवाम निराश है योंकि उसने तो सभी आठों विधानसभा सीटें भाजपा की झोली में डाली लेकिन भाजपा ने आम जनता की झोली में कुछ डाला ही नहीं।
पिछले तीन दशक में ऐसा कभी नहीं हुआ जब रीवा का मंत्रिमंडल या सरकार में मजबूत प्रतिनिधित्व न रहा हो। 1994 से 2004 तक स्व. श्रीनिवास तिवारी विधानसभा अध्यक्ष के रूप में रीवा ही नहीं पूरे विंध्य के नेता के रूप में काम किया। उनकी सरकार में मजबूत दखल भी रही।
भाजपा के तीन कार्यकाल में लगातार तीन बार रीवा विधायक राजेंद्र शुल पहले राजमंत्री फिर कैबिनेट मंत्री के रूप में प्रतिनिधित्व किया। सरकार के प्रभावशाली मंत्रियों में इनकी गणना भी होती रही है। तीन दशक पूर्व की बात करें तो पूर्व वन मंत्री स्व. शत्रुघ्न सिंह तिवारी, प्रेम लाल मिश्रा, मुनि प्रसाद मिश्रा का तत्कालीन सरकारों में काफी प्रभाव रहा है। लेकिन शिवराज सरकार की चौथी पारी में सब उलट फेर हो गया। 2018 के चुनाव में प्रदेश में कमलनाथ सरकार बनी। रीवा में कांग्रेस के कोई विधायक नहीं होने के कारण कमलनाथ सरकार के मंत्रिमंडल से रीवा वंचित रहा। 2020 में शिवराज सिंह की चौथीपारी की सरकार बनी। रीवावासियों का मानना था कि इस बार रीवा को कम से कम दो मंत्री मिलेंगे लेकिन एक भी नहीं मिला। यह हम नहीं कहते, रीवा की जनआवाज है।
रीवा से मंत्रीपद का छिनना विधायकों की आपसी खींचतान सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। लोगों का कहना है कि इस दफा जिले के कई वरिष्ठ विधायकों ने भी मंत्री पद का दावा किया। पूर्व मंत्री दावेदार थे ही। किसे लें किसे न लें इस में रीवा को किनारे कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि मंगलवार तक रीवा के पूर्व मंत्री व रीवा विधायक राजेंद्र शुल व देवतालाब विधायक गिरीश गौतम दोनों का नाम चल रहा था। बुधवार को कई दौर की हुई बैठक में गिरीश गौतम के मंत्री बनने की बात आई लेकिन जब शपथ की बारी आई तो दो में से एक का भी नाम न होना यह सोचने को विबश करता है कि विधायकों की आपसी खीचतान में जिले ने मंत्री पद गवां दिया। लोगों का तो यह कहना है कि यहां हम नहीं तो कोई नहीं का फार्मूला चला। यही इगो के कारण रीवा को जानबूझकर मंत्री विहीन कर दिया गया।