कौन है आनंद मोहन? जिसे जेल से रिहा कराने पर नितीश कुमार की किरकिरी हो रही, IAS अफसर का कातिल है
Who is Anand Mohan The Murderer of an IAS officer: आनंद मोहन ने 1994 में एक IAS अफसर की हत्या कर दी थी, नितीश कुमार ने इस दोषी को जेल से बाहर निकलवा दिया
आनंद मोहन की कहानी: बिहार में 1994 में एक IAS अफसर जी कृष्णय्या (G. Krishnayya Murder Case) की हत्या हुई थी. IAS जी कृष्णय्या हत्याकांड में बिहार के गैंगस्टर और राजनेता आनंद मोहन (Anand Mohan) को दोषी पाया गया था. उसे 14 की सज़ा हुई थी. बिहार में नितीश कुमार की सरकार ने उसे रिहा करवा दिया। IAS G. Krishnayya की पत्नी ने इस मामले में नितीश कुमार सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे गलत और अन्याय बताया है. उमा देवी ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को इस मामले में दखल देने की बात कही है.
नितीश सरकार ने आनंद मोहन को रिहा करवाने के लिए जेल मैनुअल में बदलाव कर दिए. बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन को 27 अप्रैल की सुबह 6.15 मिनट में रिहा कर दिया गया. बता दें कि पहले आनंद मोहन को IAS अफसर की हत्या करने के दोष में फांसी की सज़ा हुई थी, जिसे उम्रकैद में बदला गया और बाद में सजा को 14 साल कर दिया गया.
आनंद मोहन की असली कहानी
Real Story Of Anand Mohan:बिहार की राजनीति में यह सीन हमेशा रहा है कि जो जितना बड़ा क्रिमिनल वही उतना बड़ा नेता। आनंद मोहन के साथ भी कुछ ऐसा ही था. वो सांसद भी था और आपराधिक दुनिया में भी उसका कद बहुत बड़ा था. बात 4 दिसंबर 1994 की है. इस दिन छोटन शुक्ला नामक शख्स की हत्या हो गई थी. छोटन शुक्ला आनंद मोहन का खास आदमी था.
छोटन शुक्ला बिहार की पीपुल्स पार्टी से जुड़ा था और विधायकी लड़ने की तैयारी कर रहा था. पीपुल्स पार्टी सवर्णों की पार्टी थी जिसे लालू यादव के समय पिछड़े और दलितों की राजनीति से टक्कर लेने के लिए बनाया गया था. यह आनंद मोहन द्वारा ही बनाई गई पार्टी थी.
आईएएस जी कृष्णैया हत्याकांड
IAS G Krishnaiah murder case: 4 दिसंबर 1994 को छोटन शुक्ला की हत्या हुई और अगले दिन 5 दिसंबर को आनंद मोहन और उसके समर्थकों ने छोटन शुक्ला के शव को सड़क में रखकर विरोध कर रहे थे. इसी दौरान हाजीपुर से पड़ने वाले नेशनल हाइवे-28 से गोपालगंज के डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट आईएएस जी कृष्णैया (G krishnaiah) गुजर रहे थे.
जी कृष्णैया (G krishnaiah) दलित थे, और सड़क में प्रदर्शन करने वाले सवर्ण पार्टी के लोग थे. मुजफ्फरपुर में सरकारी अधिकारीयों की मीटिंग थी, उसी मीटिंग के बाद आईएएस जी कृष्णैया गोपालगंज लौट रहे थे. सड़क में चक्का जाम था तो डीएम की गाड़ी आगे निकलने नहीं दी जा रही थी.
लोगों ने डीएम की गाड़ी देखी तो हमला शुरू कर दिया, डीएम को गाड़ी से बाहर निकालकर पीटना शुरू कर दिया गया. डीएम जी कृष्णैया के साथ सरकारी गनर भी थे जो भीड़ के आगे असहाय हो गया. जी कृष्णैया चीख-चीख कर कह रहे थे 'मैं गोपालगंज का डीएम हूं... मुजफ्फरपुर का नहीं' फिर भी लोग उन्हें मारते रहे. कहा जाता है कि आनंद मोहन के उकसाने पर भीड़ में से किसी ने डीएम की कनपटी में गोली मार दी और आईएएस जी कृष्णैया मौके पर मर गए.
आनंद मोहन को सज़ा कैसे हुई
मामला कोर्ट गया, आनंद मोहन ने अपने बचाव में खूब सफाई थी, बहुत गवाह पेश किए मगर अपराध कहां तक छिपता है? 10 ऐसे गवाह पेश हुए जिन्होंने अपनी आंखों से आईएएस की हत्या होते हुए देखी थी. उन्होंने कोर्ट में यह गवाही दी कि आनंद मोहन ने ही भुटकुन शुक्ला नामक शख्स को गोली मारने के लिए कहा था.
कोर्ट ने इस मामले में आनंद मोहन को फांसी की सज़ा सुनाई। लेकिन हाईकोर्ट ने इसे उम्रकैद में बदल दिया। कायदे से सरकारी अफसर की हत्या पर फांसी या उम्रकैद ही होती है और आनंद मोहन को इस हिसाब से जेल में ही ताउम्र रहना था. मगर 14 साल सज़ा काटने के बाद बिहार सरकार ने उसका रिव्यू किया और आनंद मोहन को बाहर निकलवाने के लिए बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481 (1) ए को हटा दिया गया जिसमें लिखा था कि सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी को किसी भी आधार पर जेल से रिहा नहीं किया जाएगा.
कौन है आनंद मोहन
आनंद मोहन का जन्म 28 जनवरी 1954 को बिहार के सिरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ. आनंद के दादा राम बहादुर सिंह स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा ले चुके थे. 1974 में जब एमरजेंसी लागू हुई तो इसके खिलाफ जेपी आंदोलन शुरू हुआ. जयप्रकाश नारायण ने क्रांति शुरू की जिसमे आनंद मोहन शामिल था. जिसके बाद वह 2 साल जेल में रहा.
यहीं से आनंद मोहन ने राजनीति में कदम रखा, उसने स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता परमेश्वर कुंवर को अपना गुरु बना लिया। 1980 में समाजवादी क्रांति सेना नाम से संस्था बनाई गई जो सरकार का विरोध करती थी. इसी संगठन में रहते हुए आनंद मोहन ने सरकार का पुरजोर विरोध किया। 1983 में उसे 3 महीने की सज़ा भी हुई
1990 तक आनंद मोहन बाहुबली बन चुका था. वह नेता होने के साथ साथ रंगदारी करता था. उसी समय जनता दल ने उसे महिषी विधानसभा चुनाव का टिकट दिया और चुनाव जीतने के बाद जब वो विधायक बना तो उसकी दबंगई और बढ़ गई. उसने पिछड़ी जाति की राजनीती करने वाले दलों के विरोध में अपनी प्राइवेट आर्मी बना ली थी. 1995 तक वह लालू प्रसाद यादव के बराबरी का नेता माना जाने लगा था.
IAS की हत्या के बाद भी आनंद मोहन 1996 में समता पार्टी की टिकट पर शिवहर से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतकर सांसद बन गया जेल में रहते हुए आनंद मोहन ने 1999 और 2004 में भी शिवहर से लोकसभा चुनाव लड़ा मगर जीत नहीं मिली
कुछ सालों बाद जनता दल भी पिछड़ी जातियों के आरक्षण देने का समर्थन करने लगी थी जिसका आनंद मोहन ने विरोध किया और पार्टी को छोड़ दिया। आनंद मोहन ने अपनी खुद की पीपुल्स पार्टी बनाई लेकिन उसी साल उसके खास आदमी छोटन शुक्ला का मर्डर हुआ और उसके विरोध में आनंद मोहन ने आईएएस की हत्या करवा दी.
आनंद मोहन ऐसा पहला नेता था जिसे देश की आज़ादी के बाद फांसी की सज़ा हुई थी. लेकिन बाद में उसे उम्रकैद में बदल दिया गया. लेकिन 27 अप्रैल 2023 को वह बिना उम्र कैद की सज़ा काटे आज़ाद हो गया.
आनंद मोहन का परिवार
आनंद मोहन की पत्नी का नाम लवली आनंद है. दोनों की शादी 1991 में हुई थी. शादी के तीन साल बाद लवली सांसद बन गई, 2020 में लवली ने लालू प्रसाद की पार्टी RJD. दोनों के दो बच्चे हैं चेतन आनंद और सुरभि आनंद, बेटा चेतन आनंद भी RJD में है.