ISRO SSLV Launch: भारत में छोटे सेटेलाइट्स की सफल लॉन्चिंग, लेकिन संपर्क टूटा

ISRO Small Satellite Launch Vehicle: भारत में नए रॉकेट की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग 7 अगस्त को की गई है. लेकिन इसरो का राकेट से संपर्क टूट गया है. जिसे पुनः स्थापित करने की कोशिश जारी है.

Update: 2022-08-07 04:58 GMT

ISRO SSLV Launch

ISRO Small Satellite Launch Vehicle: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 7 अगस्त 2022 को नए राकेट की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग की है. यह लॉन्चिंग रविवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के Launch Pad-1 से की गई है. स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Small Satellite Launch Vehicle - SSLV) में EOS02 और AzaadiSAT सैटेलाइट्स भेजे गए हैं.

इसरो (ISRO) की ये लॉन्चिंग सफल रही. रॉकेट ने सही तरीके से काम करते हुए दोनों सैटेलाइट्स को उनकी निर्धारित कक्षा में पहुंचा दिया. रॉकेट अलग हो गया. लेकिन उसके बाद सैटेलाइट्स से डेटा मिलना बंद हो गया. यानि इसरो का सैटेलाइट्स से संपर्क टूट गया है, जिसे पुनः स्थापित करने की कोशिश जारी है.


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन प्रमुख एस. सोमनाथ (ISRO Chief S. Somnath) ने कहा कि इसरो मिशन कंट्रोल सेंटर लगातार डेटा लिंक हासिल करने का प्रयास कर रहा है. हम जैसे ही लिंक स्थापित कर लेंगे, देश को सूचित करेंगे.

क्या है EOS02

EOS02 एक अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट हैं. जो 10 महीने के लिए अंतरिक्ष में काम करेगा. इसका वजन 142 किलोग्राम है. इसमें मिड और लॉन्ग वेवलेंथ इंफ्रारेड कैमरा लगा है. जिसका रेजोल्यूशन 6 मीटर है. यानी ये रात में भी निगरानी कर सकता है.

क्या है AzaadiSAT

AzaadiSAT सैटेलाइट्स स्पेसकिड्ज इंडिया नाम की देसी निजी स्पेस एजेंसी का स्टूडेंट सैटेलाइट है. इसे देश की 750 लड़कियों ने मिलकर बनाया था. जिसकी भी आज लॉन्चिंग की गई है.

PSLV और SSLV में अंतर

  • PSLV यानी पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल 44 मीटर लंबा और 2.8 मीटर वाले व्यास का रॉकेट हैं. जबकि, SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसका व्यास 2 मीटर है.
  • Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) का वजन 320 टन है, जबकि Small Satellite Launch Vehicle (SSLV) का 120 टन है.
  • PSLV में चार स्टेज हैं. जबकि SSLV में तीन ही स्टेज है.
  • पीएसएलवी 1750 किलोग्राम वजन के पेलोड को 600 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. एसएसएलवी 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है.
  • PSLV को तैयार होने में 60 दिन लगते हैं जबकि SSLV सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है.

क्या है एसएसएलवी (What is SSLV?)

एसएसएलवी का फुल फॉर्म है स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Small Satellite Launch Vehicle - SSLV). यानी छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए अब इस रॉकेट का इस्तेमाल किया जाएगा. यह एक स्मॉल-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल है. इसके जरिए धरती की निचली कक्षा (Lower Earth Orbit) में 500 किलोग्राम तक के सैटेलाइट्स को निचली कक्षा यानी 500 किलोमीटर से नीचे या फिर 300 किलोग्राम के सैटेलाइट्स को सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में भेजा जाएगा. सब सिंक्रोनस ऑर्बिट की ऊंचाई 500 किलोमीटर के ऊपर होती है.

ISRO को SSLV की जरूरत क्यों पड़ी? (Why ISRO needed SSLV)

इसरो (ISRO) को स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Small Satellite Launch Vehicle - SSLV) की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे-छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए इंतजार करना पड़ता था. उन्हें बड़े सैटेलाइट्स के साथ असेंबल करके एक स्पेसबस (Space Bus) तैयार करके उसमें भेजना होता था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं. उनकी लॉन्चिंग का बाजार बढ़ रहा है. इसलिए ISRO ने इस रॉकेट को बनाने की तैयारी की.

SSLV की एक लॉन्च पर लागत (Cost of SSLV per Unit)

स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Small Satellite Launch Vehicle - SSLV) रॉकेट के एक यूनिट पर 30 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपये आता है. यानी जितने में एक पीएसएलवी रॉकेट जाता था. अब उतनी कीमत में चार से पांच SSLV रॉकेट लॉन्च हो पाएंगे. इससे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़े जा सकेंगे.

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