सतना: गांव के धनवंतरि का औषधीय प्रेम, जड़ी-बूटियों का संग्रहण ही जीवन का लक्ष्य, सरकारी मदद की दरकार...
सतना: गांव के धनवंतरि का औषधीय प्रेम, जड़ी-बूटियों का संग्रहण ही जीवन का लक्ष्य, सरकारी मदद की दरकार...सतना। गांव के एक धनवंतरि
सतना: गांव के धनवंतरि का औषधीय प्रेम, जड़ी-बूटियों का संग्रहण ही जीवन का लक्ष्य, सरकारी मदद की दरकार…
सतना। गांव के एक धनवंतरि ने औषधीय जड़ी-बूटियों का अनुपम संग्रह किया है जो एक मिशाल है। वर्तमान समय में लोग अपने परिवार के लालन-पालन के लिए पैसे से ज्यादा कुछ नहीं सोचते। तब एक व्यक्ति ने मिशाल पेश करते हुए अपना पूरा जीवन जड़ी बूटियों के संग्रहण में लगा दिया। तीसरी पीढ़ी भी उसे अपनाने का मन बना चुकी है।
यदि सरकारी संरक्षण मिल जाय तो जड़ी-बूटियों का संरक्षण मानव कल्याण के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। लेकिन अब तक शासन-प्रशासन की नजर से ओझल है। जिले के उचेहरा जनपद मुख्यालय से 10 और सतना मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव अतरवेदिया के निवासी रामलौटन कुशवाहा गांव में वैद्य जी के नाम से विख्यात हैं।
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एकदम पहाड़ के नीचे लगभग एक एकड़ खेत में औषधीय गुणों से भरी जड़ी बूटियों का संरक्षण और संवर्धन कर रहे हैं। बताया जाता है कि रामलौटन को बवचन से ही जड़ी-बूटियों से अगाध प्रेम है। उनके जीविकोपार्जन का साधन भी यही जड़ी बूटी हैं। उनकी लगभग एक एकड़ की बगिया में 150 से भी अधिक औषधीय पौधे मौजूद हैं।
जिनमें सिंदूर, अजवाइन, शक्कर पत्ती, जंगली पालक, ानिया, मिर्चा के अलावा गौमुख, बैगन, सुई ाागा, हाथी पंजा, अजूबी, बालम खीरा, पिपरमिंट, गरुड़ और पारस पीपल के अलावा अन्य औषधीय पौधे मौजूद हैं। वह बताते हैं कि जड़ी-बूटियों के लिए वह कहीं भी जाते रहते हैं। उन्होंने बताया कि ब्राम्ही लेने के लिए हिमालय गये और अमरकंट के जंगलों में भी जड़ी-बूटियों की खोज की है।
पढ़ाई में रुचि नहीं रही
63 वर्षीय रामलौटन बताते हैं कि उनकी पढ़ाई रुचि बचपन से नहीं रही। पिता का औषधीय प्रेम उन्हें इस ओर खींच लाया। जड़ी-बूटियों से सजी रहने वाली बगिया उनको भा गई और उनका मन रम गया। रामलौटन के 3 पुत्र और एक पुत्री है। बड़े पुत्र को इसमें को रुचि नहीं है। जबकि दो पुत्र शिवानंद और रामानंद को जड़ी-बूटियों के संग्रह में रुचि है। उनकी सात साल की नातिन भी सहयोग करती है।
सरकार से सहयोग की उम्मीद
रामलौटन का कहना है कि यदि सकरारी मदद मिल जाय तो आयुर्वेद नर्सरी जैव विविधता के लिए मिशाल साबित हो सकती है। उनका कहना है कि यदि सरकार आर्थिक मदद कर दे तो बगिया में बहुत कुछ संरक्षित संवर्धित किया जा सकता है। कारण कि जंगली जानवरों के कारण नुकसान हो जाता है। उन्होंने कहा कि एक कुआं और तारबाड़ की बड़ी जरूरत है। हालांकि उन्होंने बताया कि कुछ साल पूर्व में 50 हजार रुपये की सरकारी मदद मिली थी लेकिन वह काफी नहीं है।
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