रीवा: एसजीएमएच में रक्तदाताओं की फजीहत, खून के साथ पैसे भी देने पड़ते हैं...
रीवा (विपिन तिवारी ) । सरकारी अस्पतालों में मुफ्त जांच और दवाएं देने वाली सरकार रक्तदाताओं से करोड़ों की कमाई कर रही है। यह कमाई खून देने वालों से प्रोसेसिंग चार्ज के रूप में की जा रही है। यदि आपको एसजीएमएच में अचानक रक्त की जरूरत है तो पहले आपको घंटों इसके लिए मशक्कत करनी पड़ेगी, इसके साथ ही प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर 1050 रुपए का भुगतान भी करना पड़ेगा। इसके बाद जब आप रक्तदाता को साथ लेकर जाएंंगे तब आपको खून एसजीएमएच ब्लड बैंक से दिया जाएगा।
यदि आपको एमरजेंसी में रक्तदाता नहीं मिलते हैं तो आपको रक्त भी नहीं दिया जाएगा। ब्लड बैंक के कर्मचारी साफ अल्टीमेटम आपको दे देंगे। बिजली का बिल, कर्मचारियों की सैलेरी, मशीनों की मरम्मत और स्टेशनरी का खर्च भी मरीजों से ही वसूला जा रहा है। एसजीएमएच में एक यूनिट खून के लिए मरीज से ब्लड बैंक में 1050 रुपए लिए जा रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो इसमें जांच और ब्लड बैग मिलाकर सिर्फ 250 रुपए का खर्च होता है। यह पैसा प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर लिया जाता है। चार्ज ज्यादा होने के पीछे स्वास्थ्य विभाग के अफसर नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (एनबीटीसी) को जिम्मेदार बताते हंै लेकिन जानकारों की मानें तो एनबीटीसी ने ही सभी राज्यों के लिए एक समान प्रोसेसिंग फीस तय की है। रक्तदाताओं से इस प्रकार की वसूली को लेकर कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। मरीजों के परिजनों का कहना है कि जब रुपए देकर ही रक्त देना है तो प्रबंधन रक्त के बदले रुपए क्यों नहीं जमा कराता। रक्तदाता भी ढूंढ कर लाओ और रुपए भी खर्च करो, यह कैसी व्यवस्था है।
दरअसल, रक्तदाता का ब्लड लेकर मरीज को चढ़ाने के पहले करीब पांच टेस्ट किये जाते हैं। इसमें मलेरिया, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, एचआईवी और वीडीआरएल (यौन संक्रमित रोग) की जांच होती है। ये टेस्ट रैपिड किट से किये जाते हैं। सूत्रों की मानें तो पांचों टेस्ट की किट करीबन 200 रुपए में आती है। इसमें भी करीब 25 फीसदी किट मप्र स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी द्वारा सरकारी अस्पतालों को मुफ्त दी जाती है। इसके अलावा डोनर और मरीज के ब्लड की क्रॉस मैचिंग की जाती है। इसमें कोई खर्च नहीं होता। फिर भी इन पांच टेस्ट और क्रॉस मैचिंग के लिए एसजीएमएच में चार्ज 1050 रुपए लिया जाता है। ---------------
मशक्कत के बाद मिला ब्लड
एसजीएमएच में हाल ही में सामने आए एक मामले में बताया गया कि आईसीयू में उपचार के लिए रखे गए एक मरीज को अचानक चिकित्सकों ने देर रात बी पॉजिटिव ब्लड की जरूरत बता दी। इसके बाद मरीज के परिजन ब्लड के लिए ब्लड बैंक गए तो बताया गया कि बिना रक्तदाता ब्लड नहीं दिया जाएगा, इसके बाद जब वह बी पॉजिटिव रक्त वाले रक्तदाता को लेकर पहुंचे तो उन्हें टेस्ट की बात कही गई। टेस्ट हुए और जब रक्तदाता पहुंचा तो उससे कहा गया कि पहले 1050 रुपए की रसीद कटाकर ले आइए। रसीद कटाने के बाद रक्त लिया गया और घंटों बाद आईसीयू में मरीज तक ब्लड पहुंचा। एक ही प्रकार के ब्लड के लिए एक्सचेंज के नाम पर घंटों मशक्कत कराई गई। हालांकि ब्लड देने के बाद भी अगले दिन सुबह मरीज की मौत हो गई। इस बात को लेकर परिजनों का आक्रोश प्रबंधन पर फूटा। उन्होंने कहा कि यदि इतनी प्रक्रियाओं की जगह आसानी से रक्त मिलता तो शायद उनके मरीज की जान नहीं जाती।
मरीज के परिजनों ने बताया कि जब वह रसीद कटाने काउंटर पर पहुंचे तो वहां एक लड़का कम्प्यूटर में बैठा हुआ था, जबकि एक आदमी नीचे जमीन पर सो रहा था। जब उससे रक्तदान के लिए रसीद कटाने की बात कही गई तो उसने नीचे जमीन पर लेटे व्यक्ति से कहा कि रक्तदान के लिए काटी जाने वाली रसीद में नि:शुल्क दिखा रहा है, ऐसे में वह परिजनों से रुपए ले कि न ले। लेकिन नीचे लेटे हुए व्यक्ति ने कोई जवाब नहीं दिया। करीब 20 से 25 मिनट बाद कम्प्यूटर पर बैठे लड़के ने 1050 रुपए लेकर उन्हें रसीद दी और वह रक्तदान करने पहुंचे। यहां सवाल यह है कि यदि पोर्टल में नि:शुल्क था तो आपरेटर ने परिजनों से रसीद के रुपए क्यों लिए।