एमपी के लाखों मजदूर अभी भी दूसरे राज्यों फंसे, हेल्पलाईन में मिलता है गैर-जिम्मेदाराना जबाव
एमपी के लाखों मजदूर अभी भी दूसरे प्रदेशों में फंसे हुए हैं। सरकार द्वारा जारी हेल्पलाईन नंबरों में जब इन बेसहारा मजदूरों द्वारा फोन किया जाता
एमपी के लाखों मजदूर अभी भी दूसरे राज्यों फंसे, हेल्पलाईन में मिलता है गैर-जिम्मेदाराना जबाव
एमपी के लाखों मजदूर अभी भी दूसरे प्रदेशों में फंसे हुए हैं। मध्यप्रदेश की सरकार रोजाना उन्हे वापस लाने के लोक लुभावने वादें तो रही है परंतु जमीनी हकीकत कुछ और है। सरकार द्वारा जारी हेल्पलाईन नंबरों में जब इन बेसहारा मजदूरों द्वारा फोन किया जाता है तो एक तरफ फोन नहीं उठाए जाते, वहीं दूसरी तरफ अगर गलती से हेल्पलाईन नंबर उठ भी गएं तो उस पर गैर जिम्मेदाराना जबाव संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा दिए जा रहे हैं।
महाराष्ट्र, गुजरात समेत देश के अन्य राज्यों में अभी भी एमपी के लाखों मजदूर फंसे हुए है। हालात ये हैं कि सरकार के दावों के बावजूद भी इनको यह तक नही समझ आ रहा कि उन्हे अपने घर लौटना है तो साधन क्या है, योजना क्या है। कुछ तो पैदल ही निकल पड़ते हैं और हादसे का शिकार हो जाते हैं और कुछ सरकार के बुलावे के ताक में बैठे बिना खाने पानी की व्यवस्था के भूखे मरने की स्थिति में पहुंच चुके हैं।
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जिसे जहां उम्मीद दिखाई देती है वे फोन, सोशल मीडिया में अपना दुखड़ा सुना रहे हैं। अकेले रीवा रियासत न्यूज पोर्टल में ही रोजना सैकड़ों फोन आ रहे हैं, जिनकी मदद भी की जा रही है। इनमें से अधिकांश लोगों की शिकायत है कि हमने राज्य सरकार द्वारा जारी भोपाल के हेल्पलाईन नंबर पर फोन किया, परंतु उनका फोन नहीं लगता और लग भी गया तो कोई मदद नहीं मिलती।
वहीं बात रीवा की करें तो रीवा जिले में कलेक्टर द्वारा जारी हेल्पलाईन नंबर के भी यही हाल है। हेल्पलाईन डेस्क में बैठे अधिकारी कर्मचारी बेसहारा मजदूरों को ‘क्यों गए थे? जहां हो वहीं रहो...., हम कोई मदद नहीं कर सकते, मुख्यमंत्री बुला रहें तो उन्ही को फोन करो... जैसे गैर जिम्मेदाराना जबाव देकर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर रहे हैं, यही हाल मध्यप्रदेश के सभी जिलों के द्वारा जारी हेल्पलाइन नंबरों का है।
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इधर, केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने मिलकर श्रमिक स्पेशल ट्रेन तो चला दी। परंतु रेलवे द्वारा बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक से ट्रेन रवाना करने के 3-4 घण्टे पूर्व नोटिफिकेशन जारी कर लोगों को सूचित किया जाता है। इस पर अधिकांश लोग रेलवे के माध्यम से भी घर नहीं लौट पा रहें हैं।
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अगर जिम्मेदारों द्वारा मजदूरों के लाने वाले दावों में थोड़ी भी पारदर्शिता होती, तो शायद आज विन्ध्य के 16 मजदूर औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर काल के गाल में न समाए होते और न ही रोजाना इतने श्रमिकों की मौते होती। खैर अमीर होते तो हैलीकाॅप्टर भी उड़ चलती, गरीब मजदूर जो ठहरें।
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