अहमदिया मुस्लिम कौन हैं? जिन्हे जमीयत उलेमा-ए-हिंद और वक्फ बोर्ड मुसलमान नहीं मानता!
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के पक्ष में प्रस्ताव पास किया है जिसमे Ahmadiyya Muslims को मुस्लिम ना मानाने की बात कही गई है;
Ahmadiyya Muslims Kaun Hai: आंध्र प्रदेश में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द और वक्फ बोर्ड को लेकर विवाद शुरू हो सकता है. इन दोनों ने मिलकर अहमदिया समुदाय (Andhra Pradesh Ahmadis) को मुस्लिम मानाने से ही इंकार कर दिया है. Jamiat Ulema-e-Hind और Andhra Pradesh Waqf Board ने अहमदियाओं के मुस्लिम ना होने की बात कही है. जमीयत का कहना है कि अहमदियाओं को मुस्लिम ना मानाने का आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड का रुख पर भी सभी मुस्लमान सहमत हैं. लेकिन केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड की इस हरकत का विरोध जताया है.
दरअसल अहमदिया मुस्लिम समुदाय के 20 जुलाई को अल्पसंख्यक मंत्रालय को पत्र लिखा था. जिसमे कहा गया था कि- कुछ चुनिंदा वक्फ बोर्ड अहमदिया समुदाय का विरोध कर रहे हैं और उन्हें इस्लाम से बाहर करने के लिए प्रस्ताव पास कर रहे हैं. यह अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ हेट कैम्पेन है. ऐसा करना वक्फ बोर्ड के कार्यक्षेत्र में नहीं आता, उनके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वो अहमदिया सहित किसी भी मुस्लिम समुदाय को इस्लाम से हटा सकें। वक्फ बोर्ड की किसी समुदाय की पहचान निर्धारित करने का अधिकार नहीं है.
इसके बाद आंध्र प्रदेश सरकार ने भी राज्य के वक्फ बोर्ड को चिट्ठी लिखकर अहमदिया मुसलमानों को इस्लाम से हटाने का विरोध जताया था. लेकिन 25 जुलाई को जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड की तरफ से उस प्रस्ताव को पास कर दिया जिसमे अहमदिया मुसलमानों को मुस्लमान ना होने की बात कही गई है.
साल 2012 में भी आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया समुदाय के लोगों को ग़ैर मुस्लिम घोषित कर दिया था. जिसके बाद मामला हाईकोर्ट गया और कोर्ट ने इस प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी. इसके बावजूद इसी साल फरवरी में वक्फ बोर्ड ने दोबारा अहमदिया मुसलमानों को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया।
अहमदिया मुसलमान कौन हैं?
हिंदुस्तान से लेकर पाकिस्तान तक अहमदिया मुसलमानों ने कत्लेआम सहा है. इनके दुश्मन कोई और नहीं खुद मुसलमान हैं जो अहमदिया को मुसलमान नहीं मानते। वक्फ बोर्ड अहमदिया समुदाय को काफिर मानता है. अहमदिया समुदाय पैगंबर मुहम्मद को आखिरी पैगंबर नहीं मानता, उनका यकीन है कि मिर्जा गुलाम अहमद मुहम्मद के बाद दूसरे नबी थे. जबकि पूरी दुनिया के मुसलमान पैगंबर मुहम्मद को ही आखिरी पैगम्बर मानते हैं.
अहमदिया मुसलमान को मुस्लिम क्यों नहीं मानते
बात 1889 की है, मिर्जा गुलाम अहमद ने खुद को खलीफा घोषित किया था. उनका जन्म पंजाब के कादियान में हुआ था. अहमदिया खुद को कादियानी भी कहते हैं. इस्लाम में पैगंबर मुहम्मद को आखिरी प्रॉफेट माना गया है लेकिन अहमदिया कहते हैं कि आखिरी नबी मिर्जा गुलाम अहमद थे.
पाकिस्तान और हिंदुस्तान के मुसलमान जो खुद कनवर्टेड है वो अहमदिया समुदाय को दुश्मन मानते हैं, उन्हें काफिर कहते हैं जबकि इस समुदाय की शुरुआत हिंदुस्तान से हुई है. लेकिन अफ़्रीकी देशों में इनके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं होता। इसी लिए अपनी जान बचाने के लिए कई अहमदिया अफ़्रीकी देशों में बस गए. लेकिन जो पाकिस्तान और इंडिया में रहे उनका कत्लेआम शुरू हुआ. उन्हें मजबूरन अपनी पहचान छिपाकर रहना पड़ता है. कट्टरपंथी मुस्लिम उन्हें मुस्लिम नहीं मानते
अहमदिया मुसलमानों को हज पर भी जानें नहीं दिया जाता, सऊदी भी उन्हें मुसलमान नहीं मानता। अगर कोई अहमदिया हज पर चला जाता है तो उसे जेल भेज दिया जाता है.
अहमदिया मुसलमान सेक्युलर हैं इसी लिए उन्हें कट्टरपंथी स्वीकार नहीं करते, अहमदिया कृष्ण, जीजस, बुद्ध सभी को नबी मानते हैं. यही बात बाकी मुस्लिम समुदाय को बर्दाश्त नहीं होती है.