Veer Savarkar Controversy: वीर सावरकर और महात्मा गांधी को लेकर बवाल क्यों मचा है, असली इतिहास जान लो आज

सावरकर के वंशज ने दवा किया है कि उनके पास कुछ ऐसे दस्तावेज हैं जिसमे ये लिखा है कि गांधी ने सावरकर को अंग्रेजों से माफ़ी मांगी मांगने के लिए कहा था

Update: 2021-10-14 08:15 GMT

Veer Savarkar Controversy: देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा सावरकर को लेकर दिए बयान से बवाल मच गया है,  वहीं वीर सावरकर के वंशज रंजीत सावरकर के दावे ने देश की राजनीति में भूचाल मचा दिया है। रंजीत ये यह दवा किया है कि उनके पास कुछ ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं जिनसे ये साबित होता है कि सावरकर ने अपनी जान बक्शने के लिए अंग्रेजों से दया याचिका महात्मा गांधी के कहने पर मांगी थी। अबतक कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोग सावरकर को एक कायर और देश द्रोही बताते थे ऐसा कहा जाता है कि मौत के डर से सावरकर  ने अंग्रेजों से हाथ मिला लिया था और अपनी जान बचा ली थी। 

राज नाथ सिंह ने क्या कहा 

रक्षा मंत्री (Defence Minister) राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने हाल ही विनायक दामोदर सावरकर के बारे में लिखी गई एक पुस्तक के विमोचन के मौके पर गए थे उन्होंने वहां कुछ ऐसा कह दिया जिससे सुनने के बाद कांग्रेस  पार्टी और उनके सदस्य आग बबूला हो गए जो वीर सावरकर का पूरा नाम भी नहीं जानते, जिन्हे मॉर्डन हिस्ट्री में नेहरू चाचा और जिन्ना काका के अलावा कुछ मालूम नहीं है वो वीर सावरकर को लेकर सोशल मीडिया में जंग छेड़ दिए। राज नाथ सिंह ने अपने भाषण  में कहा था कि वीर सावरकर को अंग्रेजों से दया याचिका लिखने के लिए गांधी जी ने कहा था. राजनाथ सिंह के सिर्फ इतना कह देने से भूचाल मच गया

रंजीत सावरकर (Ranjeet Savarkar) किस डॉक्युमेंट की बात कह रहे हैं 

वीर विनायक दामोदर सावरकर के वंशज रंजीत सावरकर ने हाल ही में एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा की राजनाथ सिंह के बयां को विपक्ष मैनिपुलेट कर रहा है। उनके पास कुछ ऐसे दस्तावेज है जो ये साबित करते हैं कि वीर सावरकर ने अंग्रेजों से दया याचिका इसी लिए मांगी थी क्योंकि महात्मा गांघी ने उनसे ऐसा करने के लिए कहा था। रंजीत ने कहा की उन्हें ये बात हैरत में डाल देती है की आखिर विपक्षी इस बात का विरोध क्यों जता रहे हैं। इसमें इतहास को तोड़ने मरोड़ने जैसा कुछ नहीं है। सावरकर के नाम पर हमेशा से राजनीती होती आई है, मैं चाहता हूँ की अब देश की युवापीढ़ी सावरकर के असली इतिहास को जाने और इसी लिए उनसे जुड़े डॉक्युमेंट्स देश के सामने लाना ज़रूरी है। रंजीत सावरकर ने कहा कि वो गाँधी को राष्ट्रपिता नहीं मानते। 

विवाद क्यों हो रहा है 

क्या है की अबतक कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की B पार्टी जैसे आरजेडी, सपा बस्पा ये सब सावरकर को अबतक देशद्रोही और कायर कहते थे। देश को आज़ादी दिलाने में सावरकर का कोई योगदान नहीं मानते थे। लेकिन जो असली इतिहास था वो स्कूल में नहीं पढ़ाया गया ये बताया ही नहीं गया की महात्मा गाँधी ने साल 1920 में जो लेख लिखा था उसने उन्होंने सावरकर का समर्थ किया था और अंग्रेजों से सावरकर को छोड़ने की अपील की थी। ये विवाद राजनाथ सिंह के उस बयां से शुरू हुआ है, जिसमे उन्होंने कहा है की सावरकर को अंग्रेजों से माफ़ी मांगने की सलाह गांधी जी ने ही दी थी। राजनाथ सिंह ने ये भी कहा था कि गांधी जी ने ये  कहा था की जिस तरह हम आज़ादी की लड़ाई  लड़ रहे हैं उसी तरह सावरकर भी आज़ादी का प्रयास कर रहे हैं. विपक्ष के नेताओं को बस गांधी और सावरकर की दोस्ती का इतिहास रास नहीं आया है। 

सावरकर का इतिहास क्या है 

वीर सावरकर अंग्रेजों के दोस्त नहीं पक्के दुश्मन थे उन्हें पहली बार साल 1909 में लंदन से गिरफ्तार किया गया था उनपर महाराष्ट्र में नासिक के ब्रिटिश कलेक्टर AMT Jackson की हत्या करने की प्लानिंग बनाने का आरोप था। उनपर ये भी आरोप था की सावरकर ने ब्रिटिश सरकार को हिलाने के लिए युद्ध जैसा माहौल निर्मित कर दिया था। अंग्रेजी सरकार के लिए सावरकर एक बहुत बड़ा खतरा थे और फिरंगियों के वो कट्टर दुश्मन थे। जब महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका में रह रहे थे तब सावरकर अंग्रेजों से भिड़ना शुरू कर चुके थे। साल 1911 में उन्हें अंडमान निकोबार द्वीप के एक जेल में सज़ा काटने के लिए भेज दिया गया था जिसे कालापानी की सज़ा कहा जाता था। सावरकर को उस जेल में अंग्रेजों से बहुत यातनाएं दी बाद में 30 अगस्त 1911 को सावरकर ने अंग्रेजों को पहली चिट्ठी लिखी जिसमे उन्हें माफ़ करने की गुजारिश की गई लेकिन अंग्रेजों ने उस दया याचिका को ख़ारिज कर दिया। 14 नवंबर 1913 को उन्होंने फिर एक दया याचिका लिखी लेकिन वो दया याचिका थी या एक रणनीति इसको लेकर लोगों में मतभेद है। इतिहासकारों का मानना है की अंग्रेजों को लिखी गई दया याचिका एक रणनीति थी क्योंकि सावरकर जानते थे जेल में रह कर वो क्रांति नहीं कर पाते। उन्होंने 10 साल तक कालेपानी की सज़ा काटी और इस दौरन सावरकर ने 5 चिट्ठियां लिखीं। 

गांधी जी के साथ अंग्रेजों का समजौता हुआ था ?

साल 1919 में पहले विश्व युद्ध (World War 1) के बाद ब्रिटिश किंग जॉर्ज 5th ने भारत के जेल में बंद सभी कैदियों को रिहा करने का आर्डर जारी किया था क्योंकि पहले विश्वयुद्ध के दौरान महात्मा गांधी समेत कई नेताओं ने अंग्रेजों के साथ वफादारी  करने का वादा किया था। उस आदेश के बाद कई कैदी अंडमान जेल से रिहा हो गए लेकिन अंग्रेजों ने सावरकर और उनके  भाई गणेश दामोदर सावरकर को छोड़ने से मना कर दिया था। 

तब गांधी ने गणेश सावरकर को दिया था ये सुझाव 

जब विनायक दामोदर सावरकर और गणेश दामोदर दवारकर को ये पता चल गया कि अंग्रेज उन्हें जेल से रिहा नहीं करने वाले तो गणेश सावरकर ने गांधी को 18  जनवरी 1920 में पात्र लिखा था जिसका जिक्र विक्रम सम्पत ने अपनी किताब Savarkar: Echoes from a Forgotten Past में भी किया है। गणेश सावरकर ने अपने पत्र में ये लिखा था कि अंग्रेज उन्हें जेल से नहीं छोड़ रहे हैं ऐसी परिस्थित में क्या।  विनायक की तबियत बिगड़ती जा रही है उनका वजन 45 किलो से भी काम हो गया है। इसके बाद गांधी जी ने 25 जनवरी 1920 को पत्र का जवाब लिखते हुए कहा था कि इस मामले में कोई सलाह देना मुश्किल है तुम मेरा एक सुझाव मानो और एक विस्तृत याचिका तैयार करो जिसमे ये साबित हो जाए की सावरकर एक राजनैतिक कैदी है।  इस सुझाव को मानते हुए सावरकर ने अंग्रेजों को अपनी 6 वीं याचिका भेजी जिसे भी अंग्रेजों ने ख़ारिज कर दिया। गांधी जी ने अपने पत्र में ये भी लिखा था की इस मामले में  (सावरकर भाई को रिहा कराने ) मैं भी काम कर रहा हूँ. उस वक़्त के एक अख़बार चलता था जिसका नाम था Young India उस अख़बार में गांधी जी ने एक आर्टिकल लिखा था जिसका टाइटल था "Savarkar Brothers" इसमें राष्ट्रपिता ने लिखा था कि सावरकर भाइयों पर जो आरोप लगे हैं वो  होते हैं उन्हें किंग जॉर्ज के आदेशानुसार रिहा कर देना चाहिए। 

सावरकर और गांधी दोस्त थे 

इसी सवाल को लेकर तो बवाल मचा हुआ है विपक्ष ये मानने को तैयार ही नहीं है की गांधी और सावरकर की दोस्ती थी। जब गांधी जी लंदन की स्कूल में लॉ की पढाई कर रहे थे तब वो सावरकर से मिलने जाते थे। एक दिन सावरकर ने हॉस्टल में मांसाहार खाना बनाया था जिसे देश गांधी जी असहज हो गए थे तब सावरकर ने कहा था उन्हें ऐसे लोग चाहिए जो अंग्रेजों को ज़िंदा खा जाएं तुम तो मांसाहार खाना देश कर ही दर गए। 

सावरकर ने अपनी ज़िन्दगी के 23 साल जेल में काटे 

सावरकर 10 साल कालापानी में कैद रहे और 13 साल रत्नागिरी की जेल में नज़र बंद रहे वो अंग्रेजों के दोस्त कैसे साबित हो गए. जिस व्यक्ति ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी ज़िन्दगी के 23 साल जेल में  बर्बाद कर दिए उसको लेकर आज भी राजनीति होना जितना जायज है। दूसरी तरफ जिन नेताओं को आज भारत की आज़ादी का श्रेय दिया जाता है वो जब जेल जाते थे तो उनके सुख सुविधा की पूरी व्यवस्था की जाती थी। जवाहर लाल नेहरू को पढ़ने के लिए अंग्रेजी किताबें दी जाती थी।  

हिंदुत्व शब्द सावरकर की देन 

जेल में रहते हुए सावरकर ने साल 1923 में 'Hindutva: Who Is Hindu' नामक किताब लिखी थी जिसमे उन्होंने कई बार हिन्दू और हिंदुत्व शब्द का इस्तेमाल किया था। 1924 में रत्नागिरी जेल में नज़रबंदी से तो राहत मिली लेकिन रत्नागिरी से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी गई। जेल से  छूटने के बाद सावरकर ने हिन्दुओं को एक करने का प्रयास करना शुरू कर दिया। उन्होंने हिन्दू धर्म से छुआ छूट को ख़त्म करने का अभियान चलाया, अनुसूजित जाती और सवर्णों को एक साथ खाना खिलाने का काम किया साल 1937 में वो हिन्दू महासभा के प्रेसिडेंट बने और 1948 में जब गांधी जी का नाथूराम गोडसे ने हत्या कर दी तो सावरकर पर भी इसके आरोप लगे लेकिन कोई सबूत ना मिलने से उन्हें रिहा कर दिया। RSS ने वीर सावरकर को अपना  आदर्श पुरुष माना फिर जनसंघ और भाजपा ने भी सावरकर को अपना आदर्श माना। सावरकर के लिए देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक कविता भी लिखी थी उन्होंने लिखा था कि याद करें काला पानी को,अंग्रेजों की मनमानी को,कोल्हू में जुट तेल पेरते,सावरकर से बलिदानी को। 

गांधी ने भी  खाई थी अंग्रेजों से वफादारी की कस्मे 

जैसे वीर सावरकर ने जेल में रहते हुए वहां से छूटने के लिए और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए याचिका पत्र लिखा था उसी तरह महात्मा गाँधी ने भी अंग्रेजों के प्रति वफादारी की कस्में खाएं थीं। गांधी जी को अंग्रेजों ने यह दिलासा दिलाया था कि वह अगर देश के जवानों को अंग्रेजों की तरफ से वर्ल्ड वार 1 लड़ने के लिए भेजेंगे तो अंग्रेज भारत को आज़ाद करने पर सोचेंगे। और गांधी जी ने अंग्रेजों को विश्वास कर लिया था। महात्मा गाँधी ने वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड को पत्र लिख कर ये भी कहा था की वो अंग्रेजी हुकूमत से प्यार करते हैं और हर भारतीय में अंग्रेजों के प्रति वफादारी पैदा करना चाहता हूँ। 

इतिहास के पन्नों में ऐसे कई वाकये दफन हैं जिन्हे खोदने पर लोगों को भूत दिखने लगता है। अब सावरकर के सच्चे इतिहास को देश के सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है तो लोग इसका विरोध करने लगे हैं। लेकिन टेंशन लेने वाली बात नहीं है रीवा रियासत हर एक सच्चे इतिहास को आप तक पहुंचाने का प्रयास करेगा। 


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