Story Of Bengal Genocide 1946: विवेक अग्निहोत्री की Delhi Files बंगाल नरसंहार पर बेस्ड है! जानें क्या हुआ था?

Story Of Bengal Genocide 1946: Vivek Agnihotri ने पोस्ट शेयर करते हुए बतया है कि Delhi Files बंगाल नरसंहार 1946 पर बेस्ड है

Update: 2023-05-07 14:45 GMT

बंगाल नरसंहार की असली कहानी/ कलकत्ता दंगा 1946 की असली कहानी: 1990 में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर The Kashmir Files फिल्म बनाने वाले निर्देशक विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) ने फाइल्स सीरीज की तीसरी फिल्म द दिल्ली फाइल्स (The Delhi Files) अनाउंस कर दी है. हाल ही में उन्होंने बतया है कि The Delhi Files कलकत्ता दंगा 1946 (Kolkata Riots 1946) पर बेस्ड है. और उसी दौरान शुरू हुए खिलाफत आंदोलन का असर दिल्ली दंगों (Delhi Riots) में देखने को मिला था. 

विवेक अग्निहोत्री ने पोस्ट शेयर करते हुए लिखा- 

हाल ही में मैं कलकत्ता में अपनी अपकमिंग फिल्म The Delhi Files की अनाउंसमेंट करने के लिया गया था. जब मैंने बतया कि मेरी फिल्म द दिल्ली फाइल्स बंगाल नरसंहार 1946/47/71 पर बेस्ड है और कैसे खिलाफत आंदोलन की विचारधारा हाल ही में हुए दिल्ली कम्युनल दंगों पर असर डाली है तो मुझपर हमला हो गया. मेरे खिलाफ FIR दर्ज हो गई. मुझे मेरी लिखी हुई किताब पर साइन करने से बैन कर दिया गया जो कोलकाता मॉल में हैं. 

बंगाल नरसंहार 1946/47/71 


Bengal Genocide 1946/47/71: देश की आज़ादी के ठीक एक साल पहले कलकत्ता में इस्लामिक कट्टरपंथ का वो रूप देखा गया था जिसे हिन्दुओं को कभी नहीं भूलना चाहिए था. लेकिन बंगाल में हुए हिन्दुओं के नरसंहार को कोलकाता दंगा कह दिया गया और इतिहास के पन्नों में यह खुनी दास्तान दब गई. लेकिन उन जख्मों को वापस से कुरेदने और लोगों को सच्चाई बताने के लिए विवेक अग्निहोत्री बंगाल नरसंहार पर फिल्म बना रहे हैं.
 

बंगाल नरसंहार 1946 की कहानी 

बात 16 अगस्त 1946 की है. मुस्लिम लीग के नेता और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने 'डायरेक्ट एक्शन डे (Direct Action Day)' की घोषणा की थी. जिसके बाद कोलकाता में रहने वाले लाखों कट्टरपंथी मुस्लिम इक्कठा हुए थे और कुछ ही घंटों में हजारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था. इस मजहबी नरसंहार को The Great Kolkata Killing नाम दिया गया था कलकत्ता दंगे में कितने हिन्दुओं को मार डाला गया इसका कोई हिसाब नहीं है. 

1946 में जब भारतीय स्वतंत्रता संगम चरम पर था. अंग्रेज देश छोड़ने की तैयारी कर रहे थे. 250 सालों से भारत की स्वतंत्रता का जो सपना देखा जा रहा था वो पूरा होने वाला था. तब ब्रिटिश प्रधान मंत्री मेंट एटली ने एक 3 सदस्यीय दल, जिसे कैबिनेट मिशन कहा गया, भारत भेजा। कैबिनेट मिशन का उद्देश्य था भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करने की अंतिम योजना को मूर्त रूप देना। 

16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन के  द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों से चर्चा की गई. जिसके बाद यह तय किया गया कि एक भारतीय गणराज्य की स्थापना होगी और सत्ता हस्तान्तरित की जाएगी। 


लेकिन मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना को उसका नापाक मकसद पूरा करना था जो था भारत का बंटवारा। जिन्ना ने तत्कालीन अविभाजित भारत के उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी भाग में एक अलग ऑटोनॉमस और संप्रभु राज्य की माँग रख दी और संविधान सभा का बहिष्कार भी कर दिया। वो आजादी के बाद मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग कर रहा था. इसी लिए जुलाई 1946 को जिन्ना ने तब के बॉम्बे में अपने घर में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और कहा- मुस्लिम लीग एक अलग मुल्क 'पाकिस्तान' के लिए 'संघर्ष की तैयारी' कर रही है और अगर मुस्लिमों को पाकिस्तान नहीं दिया गया तो वो (मुस्लिम) 'डायरेक्ट एक्शन' को अंजाम देंगे।अंततः जिन्ना ने घोषणा कर दी कि 16 अगस्त का दिन 'डायरेक्ट एक्शन डे' होगा।


कलकत्ता दंगा 1946 

16 अगस्त के एक दिन पहले तक किसी को मालूम नहीं था की Muslim League का Action Day क्या है? तब के बंगाल में मुस्लिम लीग का ही शासन था और सत्ता में बैठा हुआ हसन शहीद सुहरावर्दी इसी ताक में बैठा था कि कब बंगाल से हिन्दुओं का सफाया कर दिया जाए. 

बंगाल नरसंहार का साजिशकर्ता हसन शहीद सुहरावर्दी को ही माना जाता है. उसकी शह पर मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन के नाम पर बंगाल में खुलकर अपने हिन्दू विरोधी मंसूबे पूरे किए।  16 अगस्त की सुबह सब कुछ सामान्य था. लेकिन दोपहर होते तक लाखों की संख्या में मुसलमान इकट्ठा हुए और घरों-दुकानों में तोड़फोड़-आगजनी शुरू कर दी. तब तक हिन्दू यह समझ ही नहीं पाए कि यह उनके नरसंहार के लिए किया जा रहा है. भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जो मुस्लिम साथ में देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं वो भारत के लिए नहीं पाकिस्तान के लिए लड़ रहे थे और जिन्हे वो अपना भाई मानते थे वो उनकी जान लेने में तुले हैं. 


दोपहर 2 बजे की नमाज के बाद, खुदा की खुदाई करके मुस्लिमों ने लाठी-डंडे और रोड जुटाई। इस भीड़ का नेतृत्व खुद ख्वाजा नजीमुद्दीन और सुहरावर्दी कर रहे थे. दोनों ने भाषण दिया और मुस्लिमों की भीड़ दंगाई हो गई. 

 कहा जाता है कि कलकत्ता में हिन्दुओं के नरसंहार के लिए ट्रक भर-भर कर मुस्लिमों को बाहर से लाया गया था. रिपोर्ट्स कहती हैं कि करीब 5 लाख मुस्लमान इकठ्ठा हुए थे जो हिन्दुओं के खून के प्यासे थे. इसके बाद राजा बाजार, केला बागान, कॉलेज स्ट्रीट, हैरिसन रोड और बर्राबाजार जैसे इलाकों में हिन्दुओं के घरों और दुकानों को जलाया जाने लगा। शाम होते-होते दंगा प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया और रात 8-9 के बीच सैनिकों की तैनाती शुरू हो गई।

एक दिन बीत गया 17 अगस्त को लगा कि अब कोई मारने नहीं आएगा लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा, 16 अगस्त तो सिर्फ शुरुआत थी 17 अगस्त को मुसलमानों ने हिन्दुओं को घर में घुस-घुसकर मारा, उनके घर जला दिए. पूर्वी बंगाल के नोआखाली में भी हिन्दुओं का भीषण नरसंहार हुआ। जहाँ सेना नहीं पहुंच पाई वहां तो मुस्लिम भीड़ ने हिन्दुओं पर भूखे भेड़ियों की तरह शिकार किया 


कहा जाता है कि 16 अगस्त से शुरू हुआ जिहाद 20 अगस्त तक चला. हिन्दुओं का पलायन शुरू हो गया. कहा जाता है कि सिर्फ 72 घंटों में मुस्लिम भीड़ ने 6000 हिंदुओं को मार डाला था. मजहबी दंगाइयों ने 20,0000 हिंदुओं को घायल किया  था और लगभग एक लाख हिन्दू अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए थे.  

लेकिन प्रांतीय सरकार ने इन मौतों के आंकड़ों को छिपा लिया, बतया कि यह नरसंहार नहीं दंगा था. जिसमे मरने वाले सिर्फ 750 लोग थे. लेकिन सरकार ने ये नहीं बतया कि धू-धू कर जल रहे सैकड़ों घरों में कितने हिन्दू जलकर मर गए, कितने हिन्दुओं को हुगली में फेंक दिया गया. कितनों की लाशें मिली, कितनो को दफना दिया गया. कितने बंद पड़े नालों में घुटकर मर गए? 


देखने वाले लोगों ने बताया था कि उन्होंने ऐसे 4 ट्रक देखे थे जिसमे लाशें ठूंस-ठूंस कर भरी गई थी. उस दिन कलकत्ता में हर तरफ सिर्फ 'अल्लाह-हु-अकबर', 'नारा-ए-तकबीर', 'लड़ के लेंगे पाकिस्तान' और 'कायदे आजम जिंदाबाद' ही सुनाई दे रहा था। 

तथागत रॉय की किताब 'My People, Uprooted: A Saga of the Hindus of Eastern Bengal' में बताया गया है कि किस तरह मुस्लिमों ने एक प्लान के तहत हिन्दू विरोधी दंगों की तैयारियाँ की और अंततः 16 अगस्त 1946 को उन तैयारियों को नरसंहार के रूप में अंजाम दिया। कलकत्ता के मेयर और कलकत्ता मुस्लिम लीग के सचिव एसएन उस्मान ने बांग्ला भाषा में लिखे हुए पत्रक बाँटे थे जिनमें लिखा हुआ था, "काफेर! तोदेर धोंगशेर आर देरी नेई। सार्बिक होत्याकांडो घोतबे", जिसका मतलब था, "काफिरों! तुम्हारा अंत अब ज्यादा दूर नहीं है। अब हत्याकांड होगा।"  


ये सिर्फ 1946 की खुनी कहानी है, विवेक अग्निहोत्री 1946, 1947 और 1971 में हुए नरसंहार को मिलाकर फिल्म बना रहे हैं. देखा जाए तो इस नरसंहार को बताने के लिए 3 घंटे की फिल्म बहुत कम समय है. 

जाहिर है आपको इस नरसंहार की कहानी के बारे में कोई आईडिया नहीं होगा। होता भी कैसे? किताबों में कभी पढ़ाया ही नहीं गया. अब आप तय कर लीजिये ये कहानी मुस्लिम फोबिया प्रोपगैंडा है या फिर जिहाद की सच्ची दास्तान 





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