Shaheed Diwas: आज ही के दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी हुई थी, सज़ा के बाद जो हुआ वो नहीं पढ़ाया गया

Shaheed Diwas: देश का युवा जिस उम्र में PUBG और Tick tock बैन होनेपर रोता है उस उम्र में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू देश के लिए सूली पर चढ़ गए थे

Update: 2023-03-23 05:15 GMT

Shaheed Diwas: आज शहीद दिवस है, आज ही के दिन भारत को आजाद कराने की लड़ाई लड़ने वाले  तीन क्रांतिकारियों को क्रूर ब्रिटिश शासन ने फांसी पर चढ़ा दिया था, बचपन से हमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को हुई सज़ा के बारे में पढ़ाया जाता रहा है, उन्होंने देश के लिए क्या कुछ नहीं किया इसके बारे में बताया जाता है लेकिन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी देने के बाद अंग्रेजों ने उनके शव के साथ क्या सुलुख किया यह कभी स्कूल में नहीं बताया गया. 

जिस उम्र में देश का युवा टिकटोक और PUBG के बैन होनेपर रोता है उस उम्र में शहीद भगत सिंह को फांसी हो गई थी. इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाने वाले भगत सिंह को जब मौत की सजा सुनाई गई थी तब वो सिर्फ 23 साल के थे. देश के लोगों को लगता है आज़ादी चरखा चलाने और अहिंसा के मार्ग में चलने से मिली, असल में गलती देशवासियों की नहीं उन लोगों की है जिन्होंने हमें सिर्फ वही इतिहास पढ़ाया जो वह पढ़ाना चाहते थे. आज कुछ ऐसे लोग भी हैं जो भगत सिंह सहित अन्य क्रंतिकारियों को आतंकी कहते हैं, बेशक उनका आतंक था, अंग्रेज उनके नाम से कांपते थे, लेकिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रन्तिकारी सच्चे राष्ट्रभक्त थे. 

उन्हें यह फिक्र है हरदम , नई तर्ज ए जफ़ा क्या है? हमे यह शौक हैं देखें,सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें चर्ख का क्या गिला करें। सारा जहां अदू सही आओ मुकाबला करें।

भगत सिंह का इतिहास 

  • भगत सिंह विद्वान् थे, वह कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों का पालन करते थे और खुद को वामपंथी कहते थे (आज के वामपंथी नहीं आज वाले सब फर्जी हैं) उन्हें हिंदी, उर्दू, इंग्लिश, पंजाबी और बांग्ला भाषा का बखूबी ज्ञान था. 
  • जब भगत सिर्फ 12 साल के थे तब जलियावाला बाग़ कांड हुआ था, वह अपनी स्कूल से 12 किलोमीटर दूर भागकर वहां पहुंचे थे. भगत सिंह गांधी जी से उस वक़्त नाराज़ हो गए थे तब चरखा चलाने वाले बापू ने अंग्रेजों के खिलाफ शुरू किए गए असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था, भगत जानते थे देश को आज़ाद कराना है तो हिंसा करनी पड़ेगी। 
  • क्रांतिकारी आंदोलन में उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु और अन्य क्रांतिकारियों से हुई थी. इसके बाद सभी ने मिलकर काकोरी कांड किया था, जिसके बाद 4 क्रांतिकारियों को फांसी और 16 को आजीवन कारावास की सज़ा हुई थी. इसके बाद भगत सिंह ने 1927 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन का गठन किया था. 

जब लिया लालजी की मौत का बदला 

साइमन कमीशन के बहिष्कार में अंग्रेजों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया था, जिमसे लाला लाजपतराय शहीद हो गए थे, भगत, राजगुरु और जय गोपाल सहित आज़ाद उनकी हत्या का बदला लेने के लिए घात लगाकर बैठे थे. 17 दिसम्बर 1927 को जैसे ही ASP सॉन्डर्स के बाहर निकला राजगुरु ने उसके माथे में गोली मार दी. वह मर गया था लेकिन भगत के अंदर इतना गुस्सा था कि उन्होंने ASP सॉन्डर्स के सीने में चार राउंड गोलियां दागी। 

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का इतिहास 

भगत सिंह चाहते थे कि एक धमाका हो और उस धमाके की आवाज ब्रिटेन में बैठे फिरंगियों तक पहुंच जाए, 7 अप्रेल 1929 के दिन भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त, ब्रिटिश असेम्बली में गए और बम फेंक दिया, हर तरफ धुआँ-धुआँ हो गया. लेकिन वो वहां से भागे नहीं, वो गिरफ्तार होने के लिए ही गए थे. बम फेंकने के बाद भगत इंकलाब जिंदाबाद-साम्राजयवाद मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे. तभी उन्हें अंगेजों के सिपाहियों ने पकड़ लिया। वह इसके लिए 2 साल जेल में रहे और 64 दिन तक भूख हड़ताल किए जिसमे उनके साथी यतीन्द्रनाथ की मौत हो गई थी. 

भगत सिंह मानते थे कि गरीबों का शोषण करने वाले उनके दुश्मन है भले ही वो कोई हिंदुस्तानी ही क्यों न हो। जेल में रहते हुए उन्होंने ने अंग्रेजी में एक किताब लिखी ' मैं नास्तिक क्यों हूँ? ।


भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी क्यों हुई थी 

26 अगस्त 1930 ब्रिटिश हुकूमत ने उनपर धारा 302, 129 और IPC 120 के हिंसा, हत्या और विस्फोटक पदार्थ के इस्तेमाल में दोषी ठहराया, 7 अक्टूबर 1930 को अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सज़ा सुनाई। उन्हें फांसी से बचाने के लिए गाँधी जी ने वाइसराय से बात की लेकिन भगत माफ़ी नहीं मांगना चाहते, वो कहते थे सिर कटा सकते हैं लेकिन सिर झुका सकते नहीं। 

29 मार्च 1931 के दिन शाम 7 बजकर 33 मिनट में तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया. तीनों फांसी पर चढ़ने से पहले एक दूसरे को हसंते हुए गले लगाया और कहा ठीक है अब चलो...

जब भगत सिंह को फांसी के लिए ले जाया जा रहा था तब वह निडर होकर मेरा रंग दे बसंती चोला माय रंग दें.. गा रहे थे. उन्हें देखने वाले अंग्रेज और उनके सिपाही हैरान थे. 

भगत सिंह की मौत के बाद जो हुआ वो पढ़ाया नहीं गया 

तीनों क्रांतिकारियों को फांसी में चढ़ाने के बाद अग्रेज डर गए, कहीं इस फांसी के बाद देश के लोग क्रांति न मचा दे, इसी लिए अंग्रेजों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, उन्हें अंगो को बहकर फिरोजपुर ले गए और मिट्टी का तेल डालकर जलाने लगे. गांव वालों ने यह सब देख लिया, वो अंग्रेजों के पीछे दौड़े, तभी उन फिरंगियों ने अधजले शवों के टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंक दिया और भाग निकले।  बाद में गांव वालों ने उन टुकड़ों को इकठ्ठा किया और विधिवत उनका अंतिमसंस्कार किया। 



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