रीवा (विपिन तिवारी ) । घपले-घोटाले अब लोगों को चौंकाते नहीं हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ चाहे जितना भी हो-हंगामा हो, नए-नए कानून बना दिए जाएं, किंतु धरातल पर उसका कोई ठोस परिणाम दिखाई नहीं पड़ता। उम्मीद भले ही कभी-कभी जाग जाए, लेकिन आमतौर पर लोग भी अब मानकर चलते हैं कि कुछ होने वाला नहीं है। यह उनकी निराशा भर नहीं है, बल्कि यह उनका अब तक का अनुभव है।
भ्रष्टाचार हटाने के नाम पर सत्ता में पहुंचने वाले अंत में भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा बन जाते हैं। लोकपाल की पिछली लड़ाई का नतीजा हमारे समाने है। लोकपाल कानून भी बन चुका है, हालांकि लोकपाल की नियुक्ति अभी होनी है। यह कानून लागू हो, इसके पहले ही उसकी खामियों की चर्चा शुरू हो चुकी है।
इससे संदेह तो पैदा हो ही गया है कि भ्रष्टाचार को हटाने का नुस्खा कारगर होगा भी या नहीं? लेकिन लोकपाल भ्रष्टाचार को रोकने का अकेला कानून नहीं है। हमारे पास ऐसे बहुत सारे कानून हैं, फिर भी घोटाले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं।
ये कानून कारगर तो नहीं ही हैं, भ्रष्ट लोगों में भय भी पैदा नहीं करते। उनका अनुभव यही है कि अंत में कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। उनकी करनी-धरनी का मूलमंत्र बड़ा सरल है- घूस लेते पकड़े जाओ, रिश्वत देकर बच जाओ।