Lok Sabha Election 2019: मध्यप्रदेश में 'कर्जमाफी के भंवरजाल' में फंसी 'कांग्रेस'

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Update: 2021-02-16 06:05 GMT

भोपाल। 'राहुल गांधी का कहना साफ, दस दिनों में किसानों का कर्जा माफ'। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इसी स्लोगन के सहारे जीत हासिल की थी लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी की राह आसान नहीं है। इसी बात का अहसास होने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ओबीसी कार्ड खेला है। लोकसभा चुनाव में नैया पार लगाने के लिए कांग्रेस ने प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण अध्यादेश जारी कर लागू कर दिया है।

अब तक प्रदेश में ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण का लाभ मिल रहा था। प्रदेश की सियासत इन दिनों किसान और ओबीसी वोट बैंक के बीच झूल रही है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो कांग्रेस के ये दोनों दांव लोकसभा चुनाव में उसके लिए ज्यादा असरकारी नहीं रहेंगे। कमलनाथ सरकार बनने के 77 दिन बाद भी कांग्रेस के दावे के मुताबिक सारे किसानों का दो लाख रुपए तक का कर्ज माफ नहीं हो पाया है, न ही युवाओं और कर्मचारियों सहित अन्य वर्ग से किए वादे जमीन पर उतर पाए हैं। ऊपर से थोकबंद तबादलों और चौपट कानून व्यवस्था ने कमलनाथ सरकार की साख खराब कर दी है।

पंद्रह साल बाद विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस की इन्हीं कमजोरियों के भरोसे अपनी वैतरणी पार लगाने की कोशिश में है। प्रदेशभर में वह इन मुद्दों को कैश कराने के लिए शनिवार को धिक्कार आंदोलन किया। विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत तो बढ़ा लेकिन सीट घटी हैं, भाजपा इस कोशिश में है कि लोकसभा चुनाव में वह विधानसभा चुनाव का बदला ले। इसके अलावा पाकिस्तान पर की गई एयर स्ट्राइक का फायदा भी भाजपा को मिल सकता है। जानकारों की मानें तो भाजपा इस पूरे मामले को भुनाने की तैयारी कर रही है।

भाजपा संगठन हुआ सक्रिय कांग्रेस के 113 विधायकों के सामने विपक्ष का संख्या बल 109 विधायकों का है पर सरकार के खिलाफ असली विपक्ष की भूमिका में अब तक पार्टी नहीं आ पाई है। कार्यकर्ता भी अब तक हार के सदमें से बाहर नहीं आया है। विधायक सरकार की घेराबंदी नहीं कर पा रहे हैं। इन परिस्थितियों से जूझते हुए भाजपा ने शनिवार को प्रदेशभर में कलेक्टोरेट का घेराव किया। लगभग सभी जगह पार्टी के बड इस आंदोलन का मकसद साफ है कि कर्जमाफी से उभरी नाराजगी को उठाकर किसानों को वापस भाजपा के खेमे की ओर लाया जाए। पार्टी कांग्रेस की घेराबंदी में सफल रही तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अनुमान के मुताबिक सफलता नहीं मिल पाएगी।

जनता को वादे पूरे होने का अहसास नहीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश में 78 दिनों की एंटीइनकमबेंसी भारी पड़ रही है। इसकी वजह है उसका वचन पत्र और साख। कांगेस ने भले ही 83 वादे पूरे करने का दावा किया हो लेकिन जनता को इसका अहसास नहीं हो पा रहा है। ताबड़तोड़ तबादलों ने कमलनाथ सरकार के दामन पर दाग लगा दिया। ये बात कांग्रेस के विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह ने ट्वीट कर कही थी। सिंह ने कहा था कि पहले तबादला करना और फिर रद्द करने से संदेह तो होता ही है। किसान कर्जमाफी पर भी प्रदेश में कई जगह आंदोलन हो रहे हैं।

एक दिन पहले सिवनी जिले के बरघाट में आंदोलनरत किसानों को कांग्रेस विधायक अर्जुन काकोड़िया ने खुलेआम धमकी दी। ये वीडियो पूरे प्रदेश में वायरल हुआ। यही हाल कर्मचारी वर्ग का है। कांग्रेस ने वेतन विसंगति से लेकर कई वादे किए थे। अस्थाई और संविदा कर्मचारियों को भी नियमित करने का वादा किया था पर आर्थिक हालत बदतर होने के कारण सरकार इन्हें नकद लाभ कुछ भी नहीं दे पाई। जिसके चलते कर्मचारी वर्ग भी खफा है। पेंशनर भी नाराज हैं।

कमलनाथ सरकार झूठ के पांव पर चलने वाली सरकार कांग्रेस अपने झूठ के लॉलीपॉप से गरीबों का कुपोषण दूर करना चाहती है। कर्जमाफी के जो प्रमाण पत्र बैंक मैनेजर को देना चाहिए, वो मुख्यमंत्री बांट रहे हैं। हालत ये हैं कि कर्ज मुक्ति के प्रमाण पत्र देने से बैंक इनकार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दस फीसदी सवर्ण आरक्षण देशभर में लागू कर दिया परंतु कमलनाथ तुष्टिकरण की राजनीति के तहत सवर्णों का समर्थन नहीं कर रहे हैं। ओबीसी को खुश करने के लिए 27 फीसदी आरक्षण का झूठा वादा किया है जो कभी पूरा नहीं हो सकता है। कमलनाथ सरकार झूठ के पांव पर चलने वाली सरकार है जो जल्द ही औंधे मुंह गिरेगी। - डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रदेश प्रभारी, भाजपा मप्र

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