Nagpanchami 2022: नागपंचमी क्यों मनाई जाती है? जानें रोचक कहानियां

Nag Panchami 2022: नाग पंचमी का दिन भगवान शिव की आराधना के साथ नागों को समर्पित होता है। इस दिनों सांपो को दूध से स्नान कराने की परंपरा है।

Update: 2022-08-01 13:40 GMT

Nag Panchami Kyun Manaya Jata Hai: नाग पंचमी का त्यौहार बेहद ही खास त्यौहार है, पौराणिक काल से ही सनातन संस्कृति में इस दिन सर्प की पूजा का महत्त्व है। नागपंचमी (Nagpanchami) का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण मास (Shravan Mas)के शुक्ल पक्ष (Shukla Paksha) की पंचमी तिथि (Panchami Tithi) के दिन मनाया जाता है, जो की इस बार 2 अगस्त (Nag Panchami Kab hai) को है। यह दिवस भगवान शिव की आराधना के साथ सर्पों को समर्पित होता है। इस दिनों सांपो को दूध से स्नान कराने की परंपरा है। तथा घर के द्वार में सर्प के प्रतीक चिन्ह भी बनाये जाते हैं. ऐसा माना जाता है की नागदेवता की पूजा करने से सांपो की ओर से होने वाला किसी भी प्रकार का भय समाप्त होता है। यह दिन रुद्राभिषेक के लिए भी उत्तम माना जाता है, कई लोग इस दिन उपवास भी रखते हैं। आज हम जानेंगे की प्रतिवर्ष नाग पंचमी क्यों मनायी जाती है। 

Nag panchami Katha: नागपंचमी कथा-1 पौराणिक कथाओं (Nag Panchami Story) के अनुसार एक बार एक किसान था जो की अपने परिवार के साथ रहता था. उसके दो पुत्र व एक पुत्री थी। सावन का महीना था और किसान अपने खेत की तैयारी में लगा हुआ था। एक दिन किसान अपने खेत की जुताई कर रहा था क्योंकि हल देशी था अतः गहरे कूड़ बना रहा था अचानक उसके हल के नीचे नागिन के तीन बच्चे आ गए और वे मर गए लेकिन नागिन किसी तरह से बच गई थी। किसान के इस कृत्य से सपोलों की मृत्यु हो जाने से उसने वियोग में आकर अपने बच्चों का प्रतिशोध लेने का प्रण किया।

एक रात किसान का परिवार सो रहा था।  तभी नागिन ने उसकी पुत्री को छोड़कर सभी को डस लिया था जिससे की सभी की मृत्यु हो गई थी. अगले दिन नागिन पुनः कन्या को डसने आती है लेकिन नागिन को देखते ही लड़की ने दूध से भरा हुआ पात्र नागिन को अर्पित किया और अपने पिता की भूल के लिए क्षमा मांगी। देवतुल्य नागिन को उसपर दया आ गयी और अपने दुःख को भूलकर कन्या से वरदान मांगने को कहा, जिसपर किसान की पुत्री ने अपने परिवार का पुनर्जीवन माँगा। और नागिन ने उसे वरदान दिया। किसान के परिवार के पुनः जीवित होने की बात पूरे गांव में फ़ैल गई, और इस चमत्कार के बाद नाग देवता की पूजा की जाने लगी।  चूँकि यह दिन श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की तिथि ही थी अतः इस दिन को याद में रखकर नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाने लगा। 

Nagpanchami Katha-2: द्वापरयुग में यमुना नदी के किनारे ब्रज नाम का गांव हुआ करता था, यह वही स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण का बचपन बीता था। उसी नदी में कालिया नामक विषैला नाग रहता था। जिस ने अपने विष के प्रभाव से नदी के जल को विषैला बना दिया था, कालिया नाग के कारण कोई भी यमुना के पास नहीं जाता था न ही उसके जल का प्रयोग करता था। गलती से अगर कोई चला जाता तो उसकी मृत्यु निश्चित होती थी। एक बार कृष्ण अपने मित्रों के साथ गेंद से खेल रहे थे तभी उनकी गेंद यमुना नदी में चली गई थी, गेंद का पीछा करते हुए कृष्ण भी यमुना नदी में कूद गए, और नदी से काफी देर तक नहीं निकले वे कालिया नाग से युद्ध करने लगे काफी देर के युद्ध के बाद कालिया नाग युद्ध में पराजित हुआ और बालकृष्ण से क्षमा मांगी और जल को विषरहित कर दिया व पाताल में चला गया। जिसके बाद से नागपंचमी का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। 


Nagpanchami Katha-3: नागपंचमी मनाये जाने के लिए एक और कथा जो की सबसे अधिक प्रचलित है जो की द्वापरयुग के अंत की समय की है। महाभारत के युद्ध के बाद अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित की सर्पदंश से मृत्यु हो गई थी। जिस पर उनके पुत्र यानि की अर्जुन के प्रपौत्र राजा जनमेजय ने नागों से बदला लेने के लिए सर्पसत्र यज्ञ शुरू कर दिया। यज्ञ के शुरू होते ही सभी सर्प उसमें आकर समाने लगें और अग्नि से भस्म होने लगे। नागों के अस्तित्व को मिटने से बचाने के ऋषि आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को रुकवाया था तथा संसार भर के सर्प जाती की रक्षा की थी। चूँकि यह दिन भी श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथी ही था। अतः नागों की रक्षा के उपलक्ष्य में इस दिन नागपंचमी मनाया जाने लगा। तथा आस्तिक मुनि ने अग्नि से जले हुए साँपों के ऊपर कच्चा दूध डालकर उन्हें शीतल किया था, अतः सर्पों को दूध भी अर्पित करने की परंपरा यहीं से प्रारम्भ हुई थी। 

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