Muharram 2022: मुहर्रम क्यों मनाया जाता है? भारत में कैसे हुई मुहर्रम शुरुआत
Muharram 2022: इस्लामिक आक्रांता तैमूर लंग ने हिंदुस्तान में मुहर्रम के दिन ताजिया और जुलुश निकलवाने की प्रथा शुरू की थी। इससे पहले भारत में इस तरह से इस पर्व को नहीं मनाया जाता था, जैसे अभी मनाया जाता है।
Muharram 2022/ Date/ History and Importance of Ashura: मोहर्रम इस्लामी कैलेण्डर का पहला महीना (Moharram Month) होता है, और यह महीना इस्लाम में गम और मातम का महीना माना जाता है, जिसे मुस्लिम संप्रदाय के लोग मनाते है। मोहर्रम बकरीद के ठीक 20 दिनों के बाद मनाया जाता है। इसे आशूरा (Ashura) भी कहा जाता है, आज हम आपको बताएँगे की, मोहर्रम क्यों मनाया जाता है? भारत में मुहर्रम की शुरुआत कब से हुई? मुहर्रम या आशूरा कैसे मनाई जाती है? तथा Mohharam 2022 में कब है? इस बार मुहर्रम का महीना 31 जुलाई से शुरू हुआ है। ऐसे में 8 या 9 अगस्त को आशूरा या मुहर्रम मनाया जाएगा। इस्लाम में यह महीना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, यह इस्लाम के चार पाक महीनों में से एक होता है। क्योंकि इसी महीने हजरत इमाम हुसैन (Hazrat Imam Hussain) कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे. प्रतिवर्ष लोग उनकी शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को लोग मातम के तौर पर मनाते हैं, जिसे आशूरा भी कहा जाता है। चलिए जानते हैं मुहर्रम के इतिहास, महत्व, हजरत इमाम हुसैन और ताजियादारी (Tajiyadari) के बारे में सबकुछ;
मोहर्रम क्यों मनाया जाता है
Muharram Kyu Manaya Jata Hai? इस्लाम की मान्यता के अनुसार इराक में यजीद नाम का बादशाह था, जो की बहुत ही अधिक जालिम था। तथा उसे अल्लाह के ऊपर भी विश्वास नहीं था. यजीद चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन (Hazrat Imam Hussain) भी उसका साथ दें। हजरत इमाम को यह मंजूर न था, दोनों के बीच जंग छिड़ गई और यजीद ने हुसैन और उनके 72 साथियों को लेकर कर्बला में मैदान में बड़ी ही क्रूरता से हत्या कर दी। इस जंग में वह अपने बेटे, घरवाले और अन्य साथियों के साथ शहीद हो गए।
हजरत इमाम हुसैन कौन थे?
Hazrat Imam Hussain koun The? हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे (नाती) थे। उनके पिता का नाम मोहतरम 'शेरे-खुदा' अली था, जो कि पैगंबर साहब के दामाद थे। तथा माँ का नाम बीबी फातिमा थीं। शेरे-खुदा अली उस समय के मुसलमानों के राजनीतिक मुखिया थे। उन्हें खलीफा बनाया गया था। तथा उनके निधन के बाद लोग इमाम हुसैन को खलीफा बनाना चाहते थे, परन्तु हजरत अमीर मुआविया नाम के एक सख्स ने खिलाफत पर कब्जे के बाद अपने बेटे यजीद को वहां का खलीफा बना दिया।
मुहर्रम कैसे मनाया जाता है?
Muharram Kaise Manaya Jata? मुहर्रम में ख़ास तौर पर ताज़िया इमाम हुसैन कि याद में बनाया जाता है। आशूरा के दसवें दिन ताजियादारी की जाती है. इराक में इमाम हुसैन की दरगाह है, जिसकी हूबहू नक़ल कर ताजिया बनाई जाती है क्योंकि ताजिया निकालने की परंपरा केवल शिया समुदाय में होती है। अतः शियाओं के मुताबिक, मोहर्रम का चाँद निकलने की पहली तारीख होती है उसी दिन ताजिया रखी जाती है। ताजिया इमाम हुसैन की कब्र की निशानी के तौर पर होती है, जिसे बांस की कमाचियों और रंग-बिरंगे कागज आदि चिपकाकर बनाते हैं। जिसके आगे बैठकर मातम मनाते हैं और मर्सिये पढ़ा जाता है. और अंतिम दिन जुलुश निकाला जाता है व इसे दफन कर दिया जाता है।
मुहर्रम में मातम कैसे मनाते हैं
Muharram Me Matam Kaise Manate Hain: मुहर्रम शिया और सुन्नी दोनों ही मनाते हैं लेकिन फर्क बस इतना है की शिया मातम करते हैं, अपने शरीर को तीर चाकुओं से घायल करते हैं, अंगारों पर नंगे पाँव चलते हैं लेकिन सुन्नी ऐसा नहीं करते हैं. सुन्नी इस दिन का शोक मनाते हैं लेकिन खुद को घायल नहीं करते क्योंकि उनका मानना है की खुद को घायल करने की इजाज़त अल्लाह नहीं देता. परन्तु मुहर्रम का 11वें दिन शिया और सुन्नी दोनों ही मुहर्रम ताजिया सजाकर जुलुस निकालते हैं.
अरब देशों में मुहर्रम क्यों नहीं मनाया जाता है?
Arab/ Muslim Deshon Me Muharram Kyun Nahi Manate? बात करें ताजिया मुहर्रम की तो यह कोई त्यौहार नहीं है यह केवल इस्लामिक महीना है. जिस दिन हजरत इमाम हुसैन का क़त्ल हुआ था अतः उस दिन मुस्लिम संप्रदाय में मातम मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने की प्रथा है। लेकिन यह केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही सीमित है क्योंकि ताजिया पूरी तरह से भारतीय मुसलमानों की परंपरा या कहें कि प्रथा है। जिसकी शुरुआत भारत से हुई है।
Bharat Me Muharram Ki Shuruaat Kisne ki? भारत में मुहर्रम की शुरुआत तैमूर लंग (Taimur Lang) ने की थी। वह शिया संप्रदाय से ताल्लुख रखता था, तैमूर तुर्की का रहने वाला था जो दाहिने हाथ व दाएं पाँव से पंगु था। वह हर साल मुहर्रम माह में इराक जाता था लेकिन जब वह भारत में था तब वह हृदयरोग से ग्रसित था, हकीमों ने उसे सफर न करने की हिदायद दी थी। ऐसे में उसके दरबारियों ने अपने बादशाह को खुश करने के लिए ठीक इमाम हुसैन की कब्र को याद में रखकर कलाकारों से बांस की किमाचिया से ढांचा तैयार किया गया और इसे ही ताजिया का नाम दिया गया। और ताजिया को तैमूर के महल में रखा गया।
तैमूर के ताजिया के खबर हर जगह पहुँचने लगी. जिससे अन्य रियासतों के नवाबों ने भी तैमूर को खुश करने के लिए ताजिया की परम्परा को सख्ती से लागु कर दिया। तैमूर लंग के भारत आने से पहले भी यहाँ मुसलमान रहा करते थे लेकिन इससे पहले उन्होंने कभी इमाम हुसैन की याद में इस तरह से ताजिया निकालकर इस पर्व को नहीं मनाया था। धीरे-धीरे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सभी जाती की पंथ के मुसलमानों ने इसे मनाना शुरू कर दिया।अतः इसे भारत के आसपास के देशों में ही मनाया जाता है जबकि तैमूर के जन्मस्थान कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों में मुहर्रम मनाने का उल्लेख नहीं मिलता है।
मुहर्रम किन देशों में मनाया जाता है
Muharram Kin Deshon Me Manaya jata Hai: भारत,पाकिस्तान, म्यांमार में और इससे लगे आसपास के कुछ देशों में भी मोहर्रम मनाया जाता है। लेकिन ज्यादातर इस्लामिक देशों में उस तरह से आशूरा नहीं मनाया जाता जैसे हिंदुस्तान में मनाया जाता है।