अब हर हफ्ते मिलेगा बिजली बिल, जानिए क्या है नया नियम?
देश में बिजली की अजीब विडंबना हो चली है। अगर बिजली कट जाए तो सरकार दोषी है, बिल भरने के लिए कहा जाए तो भी सरकार दोषी है।
देश में बिजली की अजीब विडंबना हो चली है। अगर बिजली कट जाए तो सरकार दोषी है, बिल भरने के लिए कहा जाए तो भी सरकार दोषी है। बिजली का बिल रेट बढ़ा दिया जाए तो फिर सरकार के अलावा कौन दोषी हो सकता है। लेकिन अगर बिजली के इस पूरे क्रम को चेक किया जाए तो पता चलता है कि इन सब के पीछे कोयले का बहुत बड़ा हाथ है। कोयला महंगा हुआ तो किसी भी हालत में बिजली सस्ती नहीं रह सकती। अगर सरकार सस्ते दर पर बिजली दे रही है और वह विदेशों से महंगे दाम में कोयला खरीद रही है तो बिजली महंगी होगी। बिजनी उत्पादक कम्पनियो को समय पर भुगतान भी करना पड़ता है। इन सब परेशानियों के बीच बिजली उत्पादकत्र कंपनियां हर हफ्ते बिजली का पैसा मांग रही है। ।
क्या है कारण
अगर कारणों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि इस भीषण गर्मी में बिजली की खपत बढ़ी हुई है। देश में कोयले का उत्पादन कम होने की वजह से बिजली उत्पादक कंपनियां विदेशों से महंगे दाम पर कोयला खरीद रही हैं। लेकिन समय पर पूरी बिलिंग न होने से कंपनियों के पास कोयला खरीदने के लिए पैसा नहीं बचा है। अब मरता क्या न करता वाली स्थिति है। कंपनी हर हफ्ते बिल एकत्र होने वाले पैसे से कोयला खरीदेगी।
क्या कह रही सरकार
कोयला और बिजली संकट पर अगर गौर किया जाए तो पता चलता है कि राज्य की विद्युत वितरण कंपनियां यानी डिस्कॉम बिजली उत्पादन कंपनियों की उधारी नहीं चुका रही हैं। पावर सेक्टर में गहराते वित्तीय संकट को हल करने के लिए सरकार ने एक प्लान तैयार किया है। जिसके तहत कहा गया है कि वह अपने बिजली डिस्ट्रीब्यूटर से हर हफ्ते भुगतान मांग सकते हैं। यह सब पावर सेक्टर में गहराते वित्तीय संकट को हल करने के लिए किया गया है।
अब ऐसे में प्रश्न उठता है कि अगर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियां जो पहले से कर्ज में दबी हुई हैं वह हर हफ्ते बिजली प्रोड्यूसर को भुगतान कैसे कर पाएंगे। अगर हर हफ्ते भुगतान का दबाव बनाया गया तो इसका असर उपभोक्ताओं पर भी पड़ना निश्चित है। क्योंकि बिजली कंपनियां महीने की जगह हर हफ्ते बिजली बिल का भुगतान करने को कह सकती हैं।
सरकार ने कहा
सरकार ने सुझाव देते हुए डिस्कॉम को कहा है कि 1 हफ्ते के भीतर बिजली उत्पादक कंपनियों को स्थाई बिल का कम से कम 15 फ़ीसदी भुगतान किया जाए। अगर ऐसा करने में चूक हो जाती है तो बिजली कंपनियां अपने कुल उत्पादन का 15 प्रतिशत बिजली पावर एक्सचेंज पर बेचने के लिए स्वतंत्र हैं।